मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के 200 वर्ष: मानसिक गुलामी से मुक्ति और 2035 के स्वदेशी भारत की नींव
पिछले एक महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब तीन बार विभिन्न महत्वपूर्ण मंचों से कहा है कि किस प्रकार 1835 में ब्रिटिश शासन के दौरान लागू की गई लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति ने भारत के आत्मविश्वास की रीढ़ तोड़ कर रख दी है। उन्होंने इसे “मनोवैज्ञानिक गुलामी” कहा और देशवासियों से आह्वान किया कि वे आने वाले दस वर्षों (2035 तक) को “मैकाले माइंडसेट” से मुक्त होने का दशक बनाएं।
उनके द्वारा अयोध्या में श्री रामलला जन्मभूमि मंदिर के ध्वजारोहण समारोह में इस विषय को उठाने का एक महत्वपूर्ण मकसद था। उनके इस बयान को देश में सांस्कृतिक और दार्शनिक पुनरावलोकन के रूप में देखा जा रहा है, जैसे कि अब न सिर्फ़ इतिहास, बल्कि वर्तमान शिक्षा-नीति और भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी यह वक्त है कि हम तय करें: की हम किस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं। श्री मोदी द्वारा ‘एच.टी. लीडरशिप समिट’ में कहा की कैसे भूतकाल में मार्क्सवादी अर्थशास्त्रियों ने दो प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर को ‘हिन्दू ग्रोथ रेट’ कहा, परंतु आज जब वृद्धि दर सात-आठ प्रतिशत है तो कोई इसको नया नाम नहीं दे रहा है? यह उन सभी वामपंथियों के मुहँ पर तमाचा था जिन्होंने योजनाबद्ध तरीके से गरीब व कमजोर होने को एक धर्म विशेष से जोड़ा जिससे बहुसंख्यक आबादी अपने आप को हीन भावना से ही देखे ।
मोदी ने कहा कि इस नीति ने केवल अंग्रेज़ी भाषा और पश्चिमी साहित्य को श्रेष्ठ माना, बल्कि हजारों साल की हमारी ज्ञान-परंपराओं, कला, विज्ञान और संस्कृति को लगभग “कूड़ेदान” में फेंक दिया। उन्होंने यह जिक्र किया कि इस वजह से भारत में हमने अपनी स्थानीय भाषाओं, अपनी सोच, अपनी आत्म-पहचान को नीचा माना — और अपने को “विदेशी” समझने लगे।
आज से दस वर्ष बाद जब साल 2035 में थॉमस बैबिंगटन मैकाले के कुख्यात ‘मिनट्स ऑफ एजुकेशन’ के दो सौ वर्ष पूरे होंगे, तब भारत निश्चित रूप से स्वाभिमानी, नवाचारी, स्वदेशी और विश्व नेतृत्व के लिए तैयार खड़ा होगा। यह दस वर्ष हमारे लिए आत्ममंथन का अवसर होने चाहिए। दो सदियों से अधिक समय तक हमारी शिक्षा उस ढांचे में बंधी रही जिसे औपनिवेशिक शासन ने अपनी सुविधा के लिए गढ़ा था। इस शिक्षा का उद्देश्य विद्वान, नवाचारी या मूल्यसम्पन्न मानव बनाना नहीं, बल्कि प्रशासनिक कार्यों के लिए “औपनिवेशिक दिमाग” तैयार करना था। आज, जब भारत स्वतंत्रता के 100 वर्षों की ओर बढ़ रहा है, यह आवश्यक है कि हम समझें कि नई शिक्षा नीति 2020 कैसे इस मैकाले मॉडल से मुक्त होकर 2035 के नए भारत की नींव रख रही है।
मैकाले की शिक्षा प्रणाली ने भारतीय भाषाओं को पिछड़ा बताते हुए अंग्रेज़ी को श्रेष्ठ घोषित किया। परिणामस्वरूप एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ जिसने अपनी जड़ों, परंपराओं और ज्ञान प्रणालियों को हीन समझना शुरू कर दिया। शिक्षा रटने, परीक्षा देने और नौकरी पाने तक सीमित हो गई। भारतीय इतिहास, गणित, विज्ञान, संगीत, कालिदास से लेकर आर्यभट्ट तक—हमारी अपनी बौद्धिक विरासत—पाठ्यक्रमों में हाशिये पर चली गई।
समय के साथ यह मानसिकता सामाजिक असमानता और आत्मविश्वास की कमी का कारण बनी। आज भी हम भाषाई विभाजन, सांस्कृतिक दूरी और विदेशी मानकों की ओर झुकाव देख सकते हैं। इसलिए 2035 का यह पड़ाव हमें मजबूती से याद दिलाता है कि मानसिक स्वतंत्रता केवल राजनीतिक स्वतंत्रता से ही नहीं आती—वह शिक्षा से आती है।
नई शिक्षा नीति 2020 केवल एक नीतिगत दस्तावेज नहीं है, यह मैकाले मॉडल से बाहर निकलने की औपचारिक घोषणा है। इसमें ऐसे सुधार शामिल हैं जो सीधे भारतीयता, भाषाई स्वाभिमान, नवाचार और कौशल विकास पर आधारित हैं। इसमें प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा/भारतीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाकर औपनिवेशिक मानसिकता को चुनौती दी है। इससे बच्चे अपनी जड़ों से जुड़ते हुए सहजता से सीखते हैं। भविष्य में भारतीय युवा को मैकाले पुत्र नहीं कहा जाएगा ।
नवीन शिक्षा नीति भारतीय ज्ञान-परंपरा की वापसी करवा रही है: योग, आयुर्वेद, भारतीय गणित, शास्त्रीय कला, दर्शन, साहित्य—इनका व्यवस्थित पुनर्समावेश किया गया है, ताकि बच्चों को पता हो कि उनका देश ज्ञान की भूमि रहा है। अब कौशल आधारित शिक्षा और बहु-विषयक मॉडल तैयार किया जा रहा है जहां रटने वाली व्यवस्था हटाकर प्रयोगशाला-केंद्रित, व्यावहारिक, शोधपरक शिक्षा की ओर बढ़ना 2035 की ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की पूर्व तैयारी है। मैकाले के कठोर ढांचे को हटाकर विकासात्मक मनोविज्ञान पर आधारित नया ढांचा तैयार किया गया है, जिससे बच्चे अपनी रुचि के अनुरूप विकसित हो सकें, ऐसा लचीला पाठ्यक्रम अपनाया जाए। नई शिक्षा नीति में डिजिटल शिक्षा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को मद्देनजर रखते हुए तकनीक आधारित शिक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कोडिंग, ड्रोन टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप इकोसिस्टम को शिक्षा में शामिल कर 2035 के डिजिटल भारत की नींव रखी है।
मैकाले की शिक्षा प्रणाली ने हमारे आत्मविश्वास पर गहरा प्रहार किया था। परंतु आज भारत उस दौर से बाहर निकल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का संदेश और नवीन शिक्षा नीति 2020 का ढांचा मिलकर उस भारत का निर्माण कर रहे हैं जो अपनी परंपरा पर गर्व करेगा और आधुनिकता के साथ कदम मिलाएगा।
- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

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