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Tuesday, February 19, 2019

The Art of Mindfulness



The Art of Mindfulness

The recent news from UK has buzzed up the entire education sector. Till now the students were learning conventional subjects like mathematics, science, history and language, but hundreds of schools in the island country are planning to expand their age old curriculum boundaries by introducing a new subject called mindfulness. The British Government said on Monday that, at least 370 English school students will start practicing the art of mindfulness as part of their study to improve their mental health.

The government news release announces that, “the students will work with mental health experts to learn relaxation techniques, breathing exercises and other methods to help them regulate their emotions”. In the world of rapid change, these programs will work best for the students. Damian Hinds, the British education secretary said, “As a society, we are much open about our mental health than ever before, but the modern world has brought new pressures for children”. He further added that the introduction of this programme in the British schools will be one of the largest programme of its kind in the world. Here, the children will start to be introduced gradually to issues around mental health, well-being and happiness right from primary school.

Renowned psychologist and child pedagogy expert Vikas Attry hails this as a welcome move. He describes mindfulness as the basic human ability to be fully present, aware of where we are and what we’re doing, and not overly reactive or overwhelmed by what’s going on around us. He said, although the western world traces the origin of mindfulness practices from Buddhist literature and Zen philosophy, it can further be traced from the ancient Indian texts like Vedasand Bhagwatam. Attry believes that mindfulness is natural but it can still taught and cultivated amongst young children through proven techniques likes meditation, and dhyana

Yoga and sports play a pivotal role in inculcating mindfulness. Short pauses in everything we do strengthens it. When we are mindful, we reduce stress, enhance performance, gain insight and awareness through observing our own mind and increase our attention span. We also focus on the wellbeing of others. The is exactly what the philosophy of ‘Vasudhaiva Kutumbakam’ teaches us.     

The UK’s National Health Service survey found that 1 in 8 children in England between the ages of 5 to 19 suffered from at least one mental disorder. The survey, which was published in November, also indicated an increase in mental disorders in 5 to 15 year old kids. Disorders like anxiety and depression were the most common, affecting 1 in 12 children and early adolescents, and appeared more often in girls. Imran Hussain, director of policy and campaigns for Action for Children calls it a “children’s mental health crisis.” While the formal implementation of mindfulness programmes in schools can be traced form USA, but they were restricted to certain institutions only. The recent implementation by UK government will prove a milestone for world education system and will provide the much needed impetus to the programme worldwide.

The applications of mindfulness in schools are aimed at calming and relaxation of students as well as for educators to build compassion and empathy for others. An additional benefit to mindfulness in education is to reduce anxiety and stress in students. Within educational systems, the application of mindfulness practices shows an improvement of pupils’ attention and focus, emotional regulation, critical thinking, creative thinking, and problem solving skills.  

The best part of it is that it is not something which is coming from the outside world or something which needs experts to teach. Mindfulness is from within. It is related to everything we do and practice. One doesn’t need to chance in order to learn the art of mindfulness, rather it shapes the best of us. Collective mindfulness has the potential to transform a society. It can bring in the much needed positive change the society aspires for today. Mindfulness is for every and anybody can practice it. It requires the universal human qualities rather than religious orientations. Mindfulness is a way of living and sparks innovation.

India also needs a constructive change like this in our education system. The best part is, mindfulness practices are fully aligned to our ‘Sanatana Dharma’. It’s just to know it’s high worth and spread positivity amongst our kids.

Jagdeep S. More, Educationist  

Thursday, February 14, 2019

एक प्यार ऐसा भी




एक प्यार ऐसा भी

इनायत का जन्म हिमाचल के ऊना जिले में रहने वाले एक साधारण से शर्मा परिवार में हुआ। परिवार में सबसे छोटी लड़की थी तो लाड़ली होना स्वाभाविक ही था। प्यार से सब प्यार से उसे इना बुलाया करते। इना के आने से मानो परिवार मुक्कमल हो गया था। सबकी प्यारी इना ही अब माँ-बाप के जीने की आरज़ू बन गई थी। गोरा रंग, मोटी-मोटी आखें, सुर्ख़ लाल होंठ, लम्बे बाल उसके एक परिपक्व पहाड़ी सुंदरी होने की गवाही देते। 

ब्राह्मण माता-पिता, भगवान को बेहद मानने वाले थे, घर में पूजा पाठ लगा ही रहता था। ये संस्कार ही इना के अंदर बचपन से आए थे कि वो भी बहुत पूजा पाठ करती। समय बीता और इना ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी की। पिता जी की पदोन्नति हुई एवं तबादला दिल्ली हो गया। समय अनुकूल था और इना का दाख़िला भी दिल्ली यूनिवर्सिटी के बी॰एस॰सी॰ कोर्स में हो गया। कॉलेज की दुनिया ही अलग थी। बला की ख़ूबसूरत इना पर कितने ही लड़के जान छिड़कते पर वो किसी को भी भाव ना देती। पता नहीं क्यूँ, इना हमेशा कहती की उसे कभी भी शादी नहीं करनी। उसको परिवार के बंधन आकर्षित नहीं करते थे, वो तो स्वछंद आस्मां की सैर करना चाहती थी। उसे आशियानों का शौक़ नहीं था, वह तो तिनकों को मानों अपने परों पर उठा कर ही चलती। स्नातक में अच्छे नम्बर पाए, और स्नातकोतर में दाख़िला ले लिया। दाख़िला लेने का मक़सद पढ़ना कम एवं शादी से भागना ज़्यादा था। अब घर पे उसकी शादी की बात अक्सर होने लगी थी, कभी कोई रिश्ता तो कभी कोई। माँ-बाप का कोई बहाना अब चल भी नहीं रहा था, आख़िर वो भी अपनी ज़िम्मेवरियों से फ़ारिक होना चाहते थे। इना को यह बात बिल्कुल भी गवाँरां नहीं थी कि उसके ऊपर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती करे। एक दिन उसने अपने पिता को साफ़ कह दिया, “मैं शादी किसी क़ीमत पर नहीं करूँगी, अगर आप मुझे भगाना ही चाहते हो तो बोल क्यूँ नहीं देते”। कहते कहते उसकी आँखों में आँसू भर आए। पिता अपनी लाड़ली के आँसू देख ना सके और उन्होंने भी कह दिया, ‘तेरी ख़ुशी में हमारी ख़ुशी’। 

अब तो इना खुली हवा सी हो चली। अपनी मन मर्ज़ी की मालिक, जहाँ ज़रा सा भी दवाब महसूस होता वहाँ मुड़ कर भी नहीं देखती। अगर कोई रिश्तेदार भी शादी को ले के कुछ कहता, तो उनसे भी वो पत्ता काट लेती। क़िस्मत की धनी तो वो सदा से ही थी। एम॰एस॰सी पास कर अब नौकरी की बारी आयी तो वो भी फ़टाक से मिल गयी। गुरुग्राम की एक नामी कम्पनी में नौकरी मिली और बहुत जल्द ही उसने कार्यशाला में अपनी एक जगह बना ली। पूरी कम्पनी में सबसे तेज़ काम करने से नाम से इना मशहूर हो गयी। अपने सभी साथियों में वो अपनी ज़िंदादिली की वजह से ख़ूब जानी जाने लगी। 

इना और जय का लगभग एक साथ ही कम्पनी में चयन हुआ था, पहले दिन जब दोनों साक्षात्कार के लिए आए थे तो एक साथ ही बैठे थे, दोनों के दिलों की धड़कन तेज़ थी। जय, क्वालिटी डिपार्टमेंट में चयनित हुआ वहीं इना आई॰टी॰ में चयनित हुई। कभी-कभी दोनों का आमना सामना हो जाता, तो दोनों औपचारिकता निभाते हुए मुस्कुरा देते, एक दूसरे से वास्ता कम ही पड़ता था। जय पहले दिन से इना को पसंद करता था, इना में बात ही कुछ ऐसी थी कि कोई भी उसकी तरफ़ आकर्षित हो जाता, पर अभी तक कभी बात नहीं हो पायी तो कुछ बन भी ना पाया। 

कम्पनी भी तरक़्क़ी कर रही थी, और इत्तफ़ाक़ यूँ हुआ की दिसम्बर में एक नया प्रोजेक्ट आया, और क्वालिटी व आई॰टी॰ डिपार्टमेंट को साथ काम करने के अवसर बने। संयोग यूँ बने कि इना और जय को उस प्रोजेक्ट में साथ काम करने का अवसर मिला। जय की ख़ुशी का ठिकाना ही ना था, पर साथियों ने उसे पहले ही बता रखा था कि भाई इस से दूर ही रहियो, ये भाव नहीं देती किसी को। पर जय का दिल तो मानों उडरियाँ भर रहा था। वो तो बस ख़ुशी से झूम रहा था कि इना उसके साथ काम कर रही थी। अब क्या था, बातों का दौर शुरू हुआ, दोनों ने बड़े ही खुले दिल से एक दूसरे के नम्बर ले लिए और वट्सऐप पर ख़ूब चैट करने लगे। दोनों साथ में लंच भी एक साथ कर लिया करते। जय भी खुले विचारों वाला इक्कीसवीं सदी का लड़का था। इना और जय की अच्छी दोस्ती हो गयी थी, प्रोजेक्ट को भी अब दो महीने पूरे होने को आए थे। दिन – दिन जय के दिल में इना बसती जा रही थी, थोड़ी देर की दूरी भी अब उसे बेचैन कर देती। उसने ठान लिया था कि वह इना को अपने दिल की बात बता ही देगा। 

एक शाम दफ़्तर के बाद दोनों अपने-अपने घर गए और वट्सऐप पर चैट कर रहे थे, कि जय ने बातों-बातों में इना को सब कुछ कहने का पूरा मन बना लिया था। जय ने जल्दी ही इना से पूछा की ‘तुमने अपने फ़्यूचर के बारे में क्या सोचा है, आई मीन, सेटल होने के बारे में’ । इना इस बात पर तपाक से हँस दी, और बोली, ‘यू नो जय, आई ऐम नोट द मैरिंग काइंड ओफ़ गर्ल, ये शादी-वादी अपने बस की बात नहीं, और वैसे भी अभी मुझे अपना करियर बनाना है’। जय ने भी बाज़ी सम्भाली और पूछा, ‘पर क्यूँ नहीं, कोई तो वजह होगी?’ इना ने ख़ूब सफ़ाई दी, पर सच तो ये था की वो अपनी ही बातों में और उलझती चली गयी। उसके पास कोई परिपक्व जवाब  नहीं था, सिवाए अपने शादी ना करने के फ़ैसले पर अड़े रहने के। घंटों चली चैट के बाद जय ने कह ही दिया कि, ‘यू नो इना, ई हैव कृश ऑन यू’। इतना सुन इना कुछ देर चुप सी हो गयी फिर बोली, ‘बट आई कन्सिडर यू माई बेस्ट फ़्रेंड ओन्ली, यू आर माई बेस्टी’। उस दिन बात आगे ना बढ़ सकी और दोनों ने एक दूसरे को गुडनाईट बोला और फ़ोन रख दिया, पर जय को नींद कहाँ आने वाली थी। वह इस भारी असमंजस में था की इना को अपने दिल का हाल साफ़ साफ़ बता दे या नहीं, और अगर उसने मना कर दिया तो सब बेकार हो जाएगा। वो अपने अरमानों का मखौल नहीं बनते देखना चाहता था। इना वो पहली और आख़िरी लड़की थी, जिसके बारे में उसके मन में सच्चे विचार थे। वो उसके साथ कोई पल दो पल के नहीं बल्कि पूरी ज़िंदगी बिताने के सपने संजोये हुए था। 

अगले दिन 10 फ़रवरी को कम्पनी में दोनों वैसे ही सहज भाव से मिले, जैसे रोज़ मिलते थे पर जय के चेहरे पर गहरायी के भाव साफ़ झलक रहे थे। दोपहर होते-होते जय के मैनेजर ने उसे बुलाया और कहा, ‘गुड न्यूज़ यंग मैन, द कम्पनी हैस सलेक्टेड यू तो गो टु अमेरिका फ़ोर दिस प्रोजेक्ट’। जय का मन हर्ष से भर उठा, आख़िर उसकी मेहनत रंग लायी, पर पता नहीं क्यूँ उससे अपनी ख़ुशी ज़ाहिर नहीं हुई। थोड़ी देर में पूरी टीम को यह बात पता चल गयी। सभी बारी-बारी से जय को बधाई देने लगे। इना भी जय के पास आयी, और चेहरे पर बड़ी सी हँसी सजाए जय की तरफ़ हाथ बढ़ा कर बोली, ‘कोंगरैट्स जय’। जय ने भी हाथ आगे बढ़ा ‘थैंक यू’ बोला। पर आज इना की आँखों में वो चमक नहीं थी, उसकी आँखें कुछ नम सी दिखाई दे रही थी। जय भी ख़ुश नहीं लग रहा था। 

जय को अब अपने ऊपर यक़ीन हो चला था कि वह इना से प्यार करने लगा है, और ये दूरी ही उसकी उदासी का कारण है। वो अमेरिका चला जाएगा और पता नहीं पीछे से इना कम्पनी में रहे ना रहे, उसकी ज़िंदगी में क्या बदलाव आ जाएँ, उसकी शादी कहीं और हो जाए, ये ख़याल उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहे थे। वो इना के बिना कहीं जाना ही नहीं चाहता था। इना, इना और सिर्फ़ इना उसके दिमाग़ में अब चौबीसों घंटे बस यही ख़याल कौंध रहा था कि कैसे वो अपने दिल का इजहार करे। पर इना की आँखों में नमी क्यूँ थी? इसका जवाब तो शायद किसी के पास नहीं था। क्या इना के दिल में भी कहीं जय के लिए कोई भावना तो नहीं। पर वो तो रिश्तों के बंधन में पड़ना ही नहीं चाहती, वो तो आज़ाद गगन की पंछी है। 

13 फ़रवरी को जय ऑफ़िस आया ही नहीं, पूरी रात सो ना सकने के कारण सुबह उसकी हिम्मत जवाब दे गयी। जय को लग रहा था कि वो किसी से गले मिल कर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे। इना को सब बता दे, पर उसका इनकार भी उसे स्वीकार नहीं था। स्वाभिमानी जय को समझ नहीं आ रहा था की वो करे तो करे क्या? उधर कम्पनी में जय की अनुपस्थिति इना को खटक रही थी, उसका भी काम में बिलकुल दिल नहीं लग रहा था। उसके तपाक से अपना फ़ोन उठाया और जय को मेसिज लिख भेजा, ‘वट डू यू थिंक ओफ़ योरसेल्फ़, छुट्टी ले ली और मुझे एक मेसिज भी नहीं किया’। इना का इस प्रकार हक़ जताना कितना स्वाभाविक था, यह समझना उसके ख़ुद के लिए भी चुनौती ही था। जय ने मेसिज पढ़ा और असमंजस में सोचने लगा कि क्या जवाब लिखूँ अब इस बात का। शाम को जय का सबसे परम मित्र विकास उससे मिलने आया, जय और विकास में मानो ख़ून का सा गहरा रिश्ता था। विकास को एक पल भी नहीं लगा अपने दोस्त की हालत समझने में, और उसके पूछने पर जय के सब्र का बाँध भी टूट गया, वो विकास के गले लग रोने लगा। जय ने विकास को सारी बात कही और विकास ज़ोर से हसने लगा। उसकी हँसी देख जय हैरान हो गया, थोड़ा ग़ुस्सा भी आया। विकास ने तंज़ कसते हुए कहा, ‘तू बड़ा ज़रूर हो गया है, पर पढ़ अब भी तू छटी में ही रहा है’। विकास की बात सुन जय भी मुस्कुरा दिया। दिल हल्का कर दोनों कॉफ़ी पीने लगे, विकास के अपने यार के कंधे पर हाथ रखा और बोला, ‘कल बोल दे तू अपने दिल की बात, कल एक दम पर्फ़ेक्ट दिन है’। यह सुन जय थोड़ा चौंका, उसने कहा क्यूँ कल ऐसा क्या है। विकास बोला, ‘अरे मेरे भोले दोस्त, कल है वैलेंटाइन डे, पर्फ़ेक्ट डे टू शेअर योर फ़ीलिंग्स’। जय उसे हैरानी से देखता रहा। विकास ने उसे समझाया की ‘अगर बोलेगा नहीं तो इना को पता कैसे चलेगा पागल, और फिर जो होगा देखा जाएगा, वैसे भी, यू डोंट हैव एनीथिंग टू लूज़’। यह सुन जय बोला, ‘आई काँट लूज़ हर विकास’। ‘एस इफ़ यू ऑल्रेडी हैव हर स्टूपिड’, यह कहते हुए विकास हसने लगा। जय को अब बात समझ में आ गयी कि उसे अपने दिल का इज़हार करना ही होगा। उसने अपना फ़ोन उठाया और इना को मेसिज लिखा, ‘आई वोंट टू मीट यू टूमोरो - अर्जेंट’। इना का जवाब आया, ‘वी आर एनीवेज़ मीटिंग इन ऑफ़िस टूमोरो’। जय ने कहा, ‘नोट इन ऑफ़िस, क्या तुम मुझे ऑफ़िस के सामने वाले कैफ़े में मिल सकती हो’। इना बोली, ‘पर बात क्या है?’। ‘वो मैं मिलकर ही बताऊँगा’, जय ने उत्तर दिया। ‘ओके’, इना के इस जवाब पर जय की बाछें खिल उठी। 

वो रात ऐसे बीती जैसे हर पल एक साल हो। जय पूरी रात यही सोचता रहा कि कल अपने दिल की बात उसे कैसे बोलूँगा। एक दो बार तो शीशे के सामने रिहर्सल भी कर ली। जैसे तैसे रात बीती और सुबह हुई। दोनों ऑफ़िस पहुँचे। इना ने सफ़ेद सलवार क़मीज़ पहन रखी थी और ऐसी लग रही थी की मानो अप्सरा आसमान से ज़मीं पर उतर आयी हो। दोनों ने एक दूसरे को गुड मोर्निंग विश किया और अपने-अपने काम में लग गए। आज ऑफ़िस में काम कुछ ज़्यादा ही था, लंच भी नसीब नहीं हुआ। शाम पाँच बजे इना के कम्प्यूटर स्क्रीन पर एक ईमेल आया। जय ने लिखा, ‘आज हमें मिलना था - याद है, ऑफ़िस के बाद मिलते हैं, बस आधा घंटा और’। ‘आराम से काम ख़त्म कर लो, आई विल वेट फ़ोर यू’, इना ने जवाब लिखा। 

शाम क़रीब छः बजे दोनों ऑफ़िस से बाहर निकले और सामने वाले कैफ़े में जा एकांत सी कौने वाली बेंच पर बैठ गए। जय की धड़कनें मुँह को आ रही थी। जैसे तैसे उसने पूछा, ‘कुछ खाओगी’। इना बोली, ‘हाँ सैंड्विच ठीक रहेगा, और कॉफ़ी भी, हॉट कॉफ़ी मेरे लिए’। जय ने जा कर ऑर्डर दिया और फिर वहीं बेंच पर आकर बैठ गया। इना ने शांति तोड़ी और बोली, ‘यू वॉंट तो से समथिंग, और यू वॉंट तो कीप क्वाइट’। जय ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘इना, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ, शायद मुझे सुनने के बाद तुम मुझसे कभी बात भी न करो, बट इट्स ओके’। इना ने बड़ी-बड़ी आँखें करते हुए उसकी तरफ़ देखा। जय ने हिम्मत करके इना का हाथ अपने हाथ में रख लिया और बोला ‘इना, आई लव यू’। इना ने गर्दन उसकी तरफ़ घुमा कर देखा और आवाज़ थोड़ी लम्बी करते हुए कहा, ‘वटटट’। इस पर जय थोड़ा चुप हो गया, इना का हाथ अब भी उसके हाथ में था। जय बोला, ‘एस, आई लव यू, एंड आई वॉंट तो सपेंड माई एंटाइअर लाइफ़ विद यू’। इना थोड़ी देर के लिए ख़ामोश हो गयी, मानो वो वहाँ थी ही नहीं, मानो वो एक हसीन ख़्वाब देख रही हो। अब तक वेटर ने उनका ऑर्डर उनकी मेज़ पर लगा दिया था। 

जय ने उसका हाथ थोड़ा दबाया, और बोला, ‘कहो कुछ’। इना ने शब्दों को सम्भालते हुए बोलना शुरू किया, ‘देखो जय, इट इज़ अ फ़ैक्ट डेट आई हैव फ़ीलिंग्स फ़ोर यू, पर मुझे नहीं पता कि ये प्यार है या कुछ और’। इना थोड़ी देर चुप हुई फिर बोली ‘पर मुझे तुम पर भरोसा है, और मैं एक माडर्न लड़की हूँ, वट इफ़ आई से, विल यू बी माई वैलेंटाइन?’। यह सुन जय ज़ोर से हँसा और बोला, ‘एस, आई विल’, और उसने इना का हाथ चूम लिया। दोनों वहाँ से उठे और अपने-अपने घर को जा ही रहे थे की जय ने इना को ज़ोर से गले लगाया और उसके कान में कहा, ‘आई लव यू इना एंड आई एम शॉर अबाउट माई फ़ीलिंग्स’। इना ने भी मुस्कुराते हुए कह हि दिया, ‘आई लव यू जय’ और दोनों ने अपनी एक नयी ज़िंदगी की शुरूवात की नींव रखी।

-    लेखक : जगदीप सिंह मोर                                                                                                                                              
            

                                                                                                                                 

पी.एम. मोदी के दिए मन्त्रों पर अमल करें छात्र : मोर





पी.एम. मोदी के दिए मन्त्रों पर अमल करें छात्र : मोर 
फरवरी आते ही परीक्षाओं का दौर शुरू हो जाता है एवं छात्रों के दिलों की धड़कन बढ़ जाती है | बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्रों की तो मानो रातों की नींद ही गुम हो गयी हो, ज्यों-ज्यों परीक्षा पास आती जा रही हैं, त्यों-त्यों बच्चों के ऊपर दवाब बढ़ता जा रहा है | इसी विषय पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने छत्रों से परीक्षा पर चर्चा की एवं उनको परीक्षा से पहले तनावमुक्त रहने के मन्त्र दिए |  
बोर्ड परीक्षा में विद्यार्थियों के ऊपर सफल होने के साथ-साथ मेरिट सूची में अपनी जगह बनाने का दवाब बना रहता है| फरवरी के आखिरी महिने में छात्र अगर अपनी मेहनत दुगनी कर दें तो वे निसंकोच बोर्ड परीक्षा में बहुत अच्छे अंक प्राप्त करेंगे| विद्यार्थियों को ज़रूरत है योजनाबद्ध तरीके से मेहनत करके आखिरी के इन दिनों का भरपूर फ़ायदा उठाने की| सभी छात्र अपना एक टाइम-टेबल बनाये एवं पाँचों विषयों को बराबर का समय दें| रोज़ कम से कम छः से आठ घंटे ज़रूर पढ़ें| टाइम-टेबल इस प्रकार बना हो जिसमें सात घंटे की नींद का भी पूर्ण प्रावधान हो| पहले हर विषय का आधा सिलेबस अच्छे से पूरा करें, उसे याद करें, फिर बाकी का सिलेबस पूरा करें| छात्र सिर्फ मौखिक रूप से पढ़ने पर निर्भर न रहें, उसे लिख कर सुनिश्चित करें कि जो उन्होंने पढ़ा है वो अच्छे से तैयार भी हुआ है या नहीं? इस तरह पढ़ने से बच्चों का विषय के प्रति डर भी दूर होगा एवं उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा| 
ज्यादातर छात्र कुधारणा का शिकार हो जाते हैंएवं या तो वे निराश हो जाते हैं या फिर सिर्फ तीन मुख्य विषयों पर ही अपना सारा ध्यान केंद्रित करते हैं। छात्र सबसे अधिक इंग्लिश (भाषा) विषय को नज़रंदाज़ करते हैं, उन्हें लगता है कि इंग्लिश तो आसान है आखिरी समय में देख लेंगे। इसी कारण उनकी पर्सेन्टेज कम रह जाती है। अंग्रेजी विषय एक चौथाई अंक समेटे हुए है एवं 12वीं के बाद के लगभग सभी कोर्सेज इसी भाषा में हैं। बारहवीं कक्षा के अंग्रेजी के पेपर पैटर्न में सी.बी.एस.ई. ने कुछ बदलाव किये हैं, छात्र हर विषय में सी.बी.एस.ई. के ब्लू प्रिंट के अनुरूप ही तैयारी करें| विद्यार्थी सी.बी.एस.ई. द्वारा प्रकाशित सैंपल पेपर ज़रूर हल करें। यह सी.बी.एस.ई. की वेबसाइट पर मुफ्त उपलप्ध हैं। सैंपल पेपर निर्धारित समय में ही पूरा हल करनें की कोशिश करें,  जिससे अपनी खामियों का अंदाज़ा लगाया जा सकें। सी.बी.एस.ई. की वेबसाइट पर गत वर्षों के प्रश्न पत्र भी मुफ्त उपलप्ध हैं, सभी विद्यार्थी कम से कम पिछले दस वर्षों के प्रश्न पत्र ज़रूर हल करें|    
दसवीं कक्षा की भी बोर्ड परीक्षा होगी, इस बार उनके सिलेबस में भी सी.बी.एस.ई. ने बदलाव भी किये हैं, पूरी किताब में से ही उनका प्रश्नपत्र बनाया जायेगा| इस आखिरी समय पर बारीकी से की गई पढ़ाई ही मेरिट सूची में बदलाव लाती है| जहाँ कुछ बच्चे रात भर जाग-जाग कर पढ़ रहे हैं वहीँ कुछ छात्र अपने ऊपर परीक्षा का दबाव भी महसूस कर रहे हैं| छात्रों के ऊपर दोस्तों, परिवार, विद्यालय एवं समाज का दवाब हमेशा रहता है जिस कारण कई बार वे घबराहट भी महसूस करने लग जाते हैं| प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी में बच्चों से अपील की है की वो इन परीक्षाओं को एक उत्सव के रूप में स्वीकार करें| जिस प्रकार हम त्यौहार मानते हैं उसी तरह परीक्षा भी त्यौहार ही है, तो क्यूँ ना इनकी तैयारी भी धूम धाम से की जाये| छात्र परीक्षा के परिणाम की बिल्कुल भी चिंता ना करें बल्कि तैयारी में अपना शत प्रतिशत दें|  
इस समय अभिवावकों का उत्तरदायित्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है| अभिवावकगण बच्चों के ऊपर नकारात्मक दबाव बनाने से बचें, उनकी तुलना दुसरे बच्चों से बिल्कुल ना करें| मौसमी बदलाव से भी छात्र अपने को बचाएं, परीक्षा के दिनों में बीमार पड़ना परिणाम पर असर दिखा सकता हैं| 
-       जगदीप सिंह मोर, सी.बी.एस.ई. मास्टर ट्रेनर एवं शिक्षाविद