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Tuesday, September 10, 2019

जीना इसी का नाम है



जीना इसी का नाम है   

6सितम्बर के दरमियाँ की वो रात देश में एक गमगीन माहौल सा बना गई। चन्द्रयान द्वितीय की चाँद की सतह पर असफल लैंडिंग ने पूरे देश में गम्भीर माहौल पैदा कर दिया। यह भी शायद पहली बार ही हुआ की पूरा देश आधी रात को जाग कर पूरे उत्सुकता के साथ यह एतिहासिक पल देख रहा था। अगली सुबह आए एक वीडियो  ने सारे देश को गमगीन कर दिया। जब इसरो प्रमुख़ श्री के सिवान अपनी भावुकता संभाल नहीं पाए और प्रधानमंत्री के गले लग उन्होंने अपना अश्रु बाँध तोड़ दिया। 

यह कोई साधारण पल नहीं था, जिसने भी इस विडीओ को देखा वह अपने आप को रोक नहीं पाया और ख़ुद भी भावुक हो गया। चन्द्रयान प्रथम से चन्द्रयान द्वितीय तक के मिशन पर इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी ज़िंदगी के बहुमूल्य ग्यारह साल दिए। लाख 80 हज़ार किलोमीटर के सफ़र पर निकला चन्द्रयान द्वितीय महज़ दो किलोमीटर पीछे रह कर असफलता के अंधेरों में खो गया। यह बात बताती है कि कामयाबी के लिय 99 सही क़दम उठाने के बाद भी अगर आपका आख़िरी क़दम ग़लत पड़ जाए तो आप असफ़ल हो जाते हैं। पूरी दुनिया आपसे असफलता भुलाकर आगे बढ़ने के लिय कहती है, पर उनकी हर बात बेइमानी सी लगती है। दुनिया आपको अपनी मेहनत में सकारातमक्ता ढूँढने को कहने लगती है, मगर वो आख़िरी क़दम का लड़खड़ना आपको टीस देता रहता है। श्रीमान सिवान का भावपूर्ण हो जाना यह दिखाता है कि उन्होंने मेहनत की थी। इस तरह भावुकता तभी आती है जब व्यक्ति पूर्ण निष्ठा के साथ एक स्वप्न देखता है, एवं उसे साकार करने के लिय पुरज़ोर मेहनत करता है। परंतु जब वह स्वप्न अंतिम क्षणों में बिखर जाता है तब दिल की भावना आँखों के रास्ते बाहर आ जाती हैं। एक पल तो आदमी अपने को टूटा हुआ महसूस करने लगता है और फ़ेलीयर उसके ऊपर हावी होने लगता है। 

इस पल को हर वो व्यक्ति महसूस कर सकता है, जिसने एक सपना देखा हो और उसको पूरा करने के लिय बेहद मेहनत करी हो एवं अपनी ज़िंदगी के बहुमूल्य दिन गँवाये हों। अब तक चाँद पर जाने के 110 प्रयोगों में से 45 असफल हुए हैं। इसी का उदाहरण है कि, इस बार क्रिकेट वर्ल्ड कप में फ़ाइनल की हार के बाद न्यूज़ीलैंड के कई खिलाड़ियों ने कहा कि वो जीते जी इस हार को कभी भूल नहीं पाएँगे। महान टेनिस खिलाड़ी रॉजर फेडरर कहते हैं कि दो  चैंपियनशिप प्वाइंट होने के बाद भी विम्बलडन की हार ने उन्हें सोने नहीं दिया। 1994 वर्ल्ड कप फ़ुट्बॉल फाइनल में रोबेर्टो बाग्गीयो अपनी मिस पेनल्टी को सारी उम्र भुला नहीं पाए। चार साल आइ॰ए॰एस॰ की तैयारी करने पर जब कोई छात्र मात्र दो अंक से मेरिट सूची से बाहर हो जाए तब वह इस पल को महसूस करता है। मात्र दो सेकंड से जब कोई अभिलाषी सेना की भर्ती से दूर हो जाए तब वह इस क्षण को जीता है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीतोपदेश में यह ही कहा, “हे अर्जुन! तुम्हारा नियंत्रण अपने बाणों पर हो सकता है, परंतु उस आखेट पर नहीं जिसे  तुम साध रहे हो”।     

मगर बड़े सपने देखने वालों की यही नियति होती है। चलना ही ज़िंदगी का नाम है, उन्हें बड़े सपने देखते हुए बड़ी असफलताएं देखनी होती है। बड़ी ज़िल्लत सहनी पड़ती है, बड़े दुख देखने पड़ते हैं। दुनिया व अपनों के अट्ठहास से कई बार अपने को बेआबरू सा हुआ महसूस होते हुए भी सहना पड़ता है। आने वाले समय के लिय मनोविज्ञानिक तनाव भी झेलना पड़ता है। कुछ अपने ख़ास भी आपकी इस असफलता को अपका पागलपन क़रार दे देते हैं, और अपने रास्ते अलग कर लेते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम ख़ुद से किए हुए वादे को पूरा ना कर पाए।        

मगर उसी दर्द को पीते हुए फिर खड़ा होना पड़ता है। चाहे शरीर कितना भी टूट क्यों न गया हो, आत्मा कितनी भी थक क्यों न गई होक्योंकि कोशिश करना छोड़ देना कभी विकल्प नहीं होता। महान व्यक्तियों ने ठीक ही कहा है, जब आप सोना ढूंढने के लिए खुदाई करते होतो आखिर में ये नहीं देखते कि कितनी मिट्टी खोदी वरन यह देखते हैं कि कितना सोना हासिल हुआ। एवरेस्ट पर चढ़ाई की अपनी पहली असफल कोशिश के बाद एडमंड हिलेरी ने एवरेस्ट पर्वत से कहा था -“मैं फिर आऊंगा तुम्हें फ़तह करने, क्योंकि एक पर्वत के तौर पर तुम और बढ़ नहीं सकते, मगर एक इंसान के तौर पर मेरा हौसला और बड़ा हो सकता है"। इसके बाद जो हुआ वो इतिहास है। 

ऐसे में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार एक कुशल लीडर की तरह वर्ताव किया, उसका शब्दों में वर्णन करना बेहद मुश्किल है। उन्होंने एक सच्चे सर्वोच्च नेता की तरह वज्ञानिकों का उत्साहवर्धन किया एवं श्री सिवान को गले लगा संतवना दी। मोदी ने कहा कि वे तथा पूरा देश उनके साथ है और भविष्य में चाँद को छूने की कामना की। आज श्री सिवान हर उस भारतीय युवा के प्रयाय हो गए जिसने बड़े सपने देखने की ज़रूरत करी और फ़ेल हुए; परंतु हौसला नहीं खोया और गिरने के बाद पुनः खड़े हुए एवं फिर आस्मां में छेद करने का प्रण किया। गोपाल दास नीरज की यह पंक्तियाँ आज अमर हो गयी – “छिप-छिप अश्रु बहाने वालोंमोती व्यर्थ बहाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने सेजीवन नहीं मरा करता है”।
           
-    जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद 

Thursday, September 5, 2019

नए भारत का नवीन शिक्षक


नए भारत का नवीन शिक्षक

आज सम्पूर्ण भारत शिक्षक दिवस मना रहा है। यह परम्परा 1962से शुरू हुई, जब भारत ने अपने द्वितीय राष्ट्रपति श्री सर्वपल्ली राधाक्रिश्नन के जन्म दिवस को भारतीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का प्रण लिया। तब से आज तक निरन्तर हम पूरे हर्षौल्लास से शिक्षक दिवस मना रहे हैं। विद्यालयों में तो आज का दिन उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ‘शिक्षा’ शब्द सामने आते ही हमारे ज़हन में अपने प्रिय शिक्षक की तस्वीर बन उठती है। सिर्फ़ तस्वीर ही नहीं उस शिक्षक के साथ बिताए गए सुनहेरे पल भी दिल-ओ-दिमाग़ में ज़िंदा हो उठते हैं। युग युगांतरों से शिष्य अपने हिस्से का सुख छोड़ कर गुरु सेवा को ही अपना अग्रिम धर्म समझता था। गुरु का स्थान तो भगवान से भी ऊपर बताया गया है। यही कारण है कि शिक्षक दिवस का हमारे देश में बहुत महत्व है।    

आज के इस आधुनिक युग में पुरातन हो चुकी शिक्षक की परिभाषा बदल चुकी है। इक्कीसवीं सदी का शिक्षक महज़ अध्यापक नहीं है, बल्कि वह छात्रों के लिय एक पूर्ण पैकेज बन कर उभरा है। आज वह अपने छात्रों का फ़्रेंड, मेंटॉर, काउन्सिलर एवं फ़सिलिटेटर बन चुका है। रूढ़िवादिता का स्थान रिक्त होता जा रहा है, तथा नवीन सोच व कार्यशैली वाले शिक्षक नए भारत का निर्माण कर रहे हैं। 

समय एवं छात्रों की माँग के अनुरूप हर शिक्षक को बदलना होगा। आधुनिकता के इस दौर में हर छात्र होशियार हो चुका है, आज हर सूचना उसकी ऊँगली की एक क्लिक पर उपलब्ध है। ऐसे में उसे रूढ़िवादी अध्यापक नहीं बल्कि एक स्मार्ट सहयोगी की ज़रूरत है जो उसके विचारों को सुन सके तथा उन्हें सही दिशा में संचार एवं सँवार सके। पिछले एक दशक से भी ज़्यादा शिक्षा के जगत में सक्रिय मनोविज्ञानिक श्री विकास अत्रि बताते हैं कि आज के युग में जहाँ परिवार सिकुड़ते जा रहे हैं व माता पिता के पास समय का आभाव है, ऐसे में छात्र अपने अध्यापक में अपनी दुनिया तलाशने लगता है। हर अध्यापक को आज पहले से बहुत ज़्यादा सजग होना होगा। उसे हर बच्चे की बारीकी एवं निजी जीवन का ज्ञान रखना पड़ेगा, आपको छात्र का मित्र बनना पड़ेगा जिसके कि वह खुल कर आपके सामने अपनी बात रख सके। अगर ज़रूरत पड़े तो अध्यापक को छात्र एवं उसके अभिवावकों के बीच एक पुल का काम भी करना पड़ेगा, क्यूँ कि याद रहे आपका हर एक क़दम एक छात्र का भविष्य निर्धारित कर रहा है। श्री अत्रि अपनी हर वर्क्शाप में अध्यापकों को उनकी नयी परिभाषा एवं कार्यक्षेत्र बताते नहीं थकते कि आज़ छात्र की मानसिक प्रसन्नता पर ज़्यादा बल दिया जाना चाहिए ना कि सदियों पुरानी रट्टा लगवाने एवं परीक्षा लेने की पद्दती पर।                                  

आज समय की यह माँग है की हर शिक्षक अपने इस व्यवसाय की नवीन परिभाषा को चरित्रार्थ करे एवं इसकी खोई हुई बुलंदियों तक ले जाए। अगर जल्दी ही हर शिक्षक ने अपने को नहीं बदला तो वह इस दौड़ में बहुत पीछे रह जाएँगे क्यूँ कि आज छात्र किसी भी साधन का मोहताज नहीं है वरन वह प्रेम, मातृत्व एवं एक कुशल मार्गदर्शन का अभिलाषी है, और यही एक शिक्षक का परम धर्म व कर्तव्य भी है।   

-    जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद  

हथीनवासियों के मन भा रहे हैं कर्नल रावत



हथीनवासियों के मन भा रहे हैं कर्नल रावत

हरियाणा की राजनीति दिन प्रतिदिन करवट बदलती जा रही है। लोकसभा चुनाव के बाद अब विधानसभा चुनाव की सरगर्मी चरम पर है। हथीन विधानसभा सीट हमेशा से ही दक्षिण हरियाणा में महत्वपूर्ण रही है। जैसे-जैसे हरियाणा के चुनावों की सरगर्मी का मौसम पास आ रहा है, वैसे-वैसे हथीन में नए नेता भी मैदान में उतर रहे हैं। आज ना सिर्फ़ हथीन परंतु पूरे दक्षिण हरियाणा क्षेत्र को एक मज़बूत नेता की ज़रूरत है, जो ना सिर्फ़ जनता के हक़ की लड़ाई लड़ सकें अपितु सम्पूर्ण क्षेत्र का मान बढ़ा उसे प्रदेश में एक नयी पहचान दिलवा सकें। यह तो स्पष्ट है कि अभी कोई भी नेता कोसों दूर तक दिखाई नहीं देता। सरकार लोक लुभावने वादे कर रही है, परंतु इतिहास साक्षी है कि दक्षिण हरियाणा की सदैव उपेक्षा ही हुई है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव का महासमर आरम्भ ही समझो। चुनावों में अब कुछ ही महीनों का समय रह गया है। जहाँ एक ओर होडल विधान सभा सीट आरक्षित है वहीं पलवल विधान सभा सीट बड़ी एवं जटिल लड़ाई वाली है। यही कारण है कि हथीन विधान सभा सभी नेताओं को बहुत लुभा रही है। ई॰ने॰लो॰ की टिकट से जीते विधायक श्री केहरसिंह रावत भी भा॰जा॰पा॰ में शामिल हो गए हैं। प्रदेश की राजनीति में अब भा॰जा॰पा॰ के इलावा किसी भी पार्टी में दम-ख़म नज़र नहीं आ रहा है। लोकसभा की दस में से दस सीट जीत कर भा॰जा॰पा॰ एवं मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर जी का क़द शीर्ष पर पहुँच चूका है। औसतन रोज़ ही नेता अपनी पार्टियाँ छोड़ कर भा॰जा॰पा॰ में शामिल हो रहे हैं। चुनावी बरसात में कुकरमुत्ते  की तरह नए नेता भी पैदा हो रहे हैं।  

ऐसे में अगर सही माईने में कोई भा॰जा॰पा॰ का नेता कहलाने का दावेदार हैं, तो वो हैं कर्नल (डॉक्टर) राजेंद्र सिंह रावत। श्री रावत ने भा॰जा॰पा॰ का दामन तब थामा था जब पार्टी का हरियाणा में कोई बड़ा जनादेश नहीं था। उन्होंने घर घर जाकर, लोगों को पार्टी से जोड़ा एवं एक विशाल जनाधार तैयार किया। कर्नल रावत ज़मीन से जुड़े एक ईमानदार नेता हैं, जिन्हें जनता के प्यार ने चुनावी दंगल में उतरने को मजबूर किया।

कर्नल रावत का जन्म हथीन हल्के के अहरवाँ गाँव में हुआ। माँ के लाड़ले रहे बड़े बेटे होने के नाते उन्होंने अपनी दोहरी ज़िम्मेवारियों को बचपन से ही बख़ूबी निभाया। पढ़ाई में अव्वल रहे राजेंद्र सिंह ने महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक से एम॰बी॰बी॰एस॰ की पढ़ाई की, तत्पश्चात् भारतीय सेना में नौकरी पायी एवं कर्नल के पद से सेवानिवृत हुए। कर्नल रावत ने भारतीय सेना में रह देश के विभिन्न स्थानों  में काम किया तथा माँ भारती की पूरे तन-मन-धन से सेवा करी। सेवानिवृति के बाद रावत गुरुग्राम में रहने लगे एवं वहीं के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में नौकरी करने लगे। अपने खाली समय में डाक्टर राजेंद्र लोगों को निशुल्कडाक्टरी परामर्श देते एवं अपने ग्रामवासियों की सेवा में लगे रहते। उनके इसी निस्वार्थ सेवा भाव ने उनको जनमानस का दुलारा बना दिया एवं लोगों ने उनको बाध्य कर दिया कि वे राजनीति में आकर सम्पूर्ण क्षेत्र का चौतरफ़ा विकास करें। कर्नल राजेंद्र लोगों की इसी माँग की उपेक्षा ना कर पाए एवं राजनीति में उतर भा॰जा॰पा॰ का दामन थामा।           

रावत ने जनमानस के विकास कार्यों को प्राथमिकता देते हुए हमेशा जनता के हक़ की लड़ाई लड़ी। कर्नल रावत के खेमे के लोग कहते हैं कि डॉक्टर साहब कभी भी जातीय राजनीति नहीं करते, वे हमेशा ही छत्तीस बिरादरियों को साथ ले कर चलते हैं, एवं हथीन जैसे विधानसभा क्षेत्र जिसमें हिंदू एवं मुस्लिम दोनो धर्मों के मतदाता हैं, डॉक्टर रावत ही एक मात्र ऐसे नेता हैं जिनकी साफ़ छवि है, एवं दोनों समुदाय के लोग इनको पसंद करते हैं। हमेशा चेहरे पर मुस्कान सजाए रावत दिनभर अपने क्षेत्र के लोगों की समस्याएँ सुनने, उनको हल करने एवं लोगों के सुख दुःख में शामिल होकर हि बिताते हैं। क्षेत्र के लोग तो यहाँ तक कहते नहीं सकुचाते कि भा॰जा॰पा॰ के फ़रीदाबाद लोकसभा सीट जीतने में कर्नल रावत का भी बड़ा योगदान है।                   

ऐसे में अगर कर्नल राजेंद्र रावत हथीन से विधायक बनने में सफल हुए तो यह क्षेत्र  के लिए अत्यंत गर्व का विषय होगा। एक ओर जहाँ इस क्षेत्र को प्रदेश की विधानसभा में प्रतिनिधित्व मिलेगा वहीं दूसरी ओर एक साफ़ छवि का बिना दाग़दारकर्मठजूझारूपढ़ा-लिखा नेतृत्व भी प्राप्त होगा। यह पूरे पलवल जिले, फ़रीदाबाद लोकसभा क्षेत्र एवं सम्पूर्ण दक्षिण हरियाणा के लिए सकारात्मक पहल होगी।

-    जगदीप सिंह मोरशिक्षाविद