'Scrapbook of my Thoughts' is a platform to share my views on things happening around me. I try to express my ideas, opinions, feelings and emotions candidly. All my creations are purely for my happiness and fulfilment. Read, enjoy and move on. Share if you like!

Saturday, December 16, 2023

बेअसर होते एग्जिट पोल

 बेअसर होते एग्जिट पोल


देश के चार बड़े राज्यों के चुनाव एवं उनके परिणाम बहुत कुछ सीख देने वाले हैं। ज्यादातर एग्ज़िट पोल्ज़ जनता के मूड को भांपने में विफल रहे। इस सब से राजनीतिक पंडितों को बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है। टी॰वी॰ पर आने वाले डिज़ाइनर पत्रकार भी सच से कोसों दूर दिखाई दिए।

इस परिणाम से यह बात बिल्कुल साफ रूप से कही जा सकती है कि एग्ज़िट पोल्ज़ के पुरातन फ़ॉर्म्युला को बदलने का उचित समय आ गया है। ज्यादातर एग्ज़िट पोल्ज़ संपलिंग पद्धति एवं थर्ड पार्टी आउट्सॉर्सिंग का उपयोग करते हैं। इसमें परिणाम तभी सटीक आते हैं जब संपलिंग में सत्य डाटा जुटाया जा सके। परंतु आज के इस तकनीकी युग में सत्य डाटा जुटा पाना इतना सरल नहीं है। आज से क़रीब एक दशक पहले तक चुनावी विशेषज्ञ गाँव, कस्बे, मोहल्ले के नाम से यह बता दिया करते थे की वहाँ किसके पक्ष में वोटिंग होगी। कुछ क्षेत्र तो एक पार्टी विशेष के गढ़ के रूप में प्रसिद्ध होते थे। वहाँ से सिर्फ़ अमुख पार्टी ही जीतेगी यह पूर्वानुमान होता था। परंतु आज ऐसा नहीं है, आज का सामान्य वोटर भी स्मार्ट वोटर बन गया है। जब से हर हाथ में इंटर्नेट युक्त मोबाइल आया है, तब से जनमानस के दिल की बात जान पाना इतना आसान नहीं रह गया है। वोटर किसको वोट दे कर आए हैं, यह बात एक ऑनलाइन सर्वे द्वारा खोज पाना जटिल कार्य है, क्यूँकि वोटर सत्य को इतनी सरलता से उजागर नहीं करता। आज के परिपेक्ष में जनता किसी को भी नाराज़ करना नहीं चाहती। दोनों प्रमुख पार्टियों की रैलियों में भीड़ बराबर ही होती है, चुनाव से पहले यह स्पष्ट हो पाना की कौन जीत रहा है बहुत मुश्किल होता है। 

प्रमुख उम्मीदवारों के शामियानों में जमघट लगा ही रहता है, आम जनता दोनों ओर की पूड़ी-सब्ज़ी जम कर छकती है। परंतु वोट किसे देना है इसका ज़रा भी आभास नहीं होने देती। ख़ास कर महिलाओं का वोट बहुत शांत होता है परंतु चोट बहुत जोर की करता है।      

यह बात छत्तीसगढ़ एवं तेलंगाना के संदर्भ में समझी जा सकती है। जहां छत्तीसगढ़ में कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी एवं बस्तर जैसे क्षेत्र में पिछली बार बारह में से ग्यारह सीट जीती थी। इस बार भी रैलियों में भीड़ कम ना थी परंतु तीन सीटों पर ही सिमट कर रहना पड़ा वहीं हैदराबाद में अगर प्रधान मंत्री के रोड शो की बात करें तो ऐसा लग रहा था जैसे अबकी बार भा॰जा॰पा॰ कुछ करिश्मा कर ही देगी परंतु वहाँ कांग्रेस को मजबूती मिली। 

इन एग्ज़िट पोल्ज़ ने यह सिद्ध कर दिया कि ऐ॰सी॰ स्टूडियो में बैठ कर जनता का मन नहीं पढ़ा जा सकता। इन चुनावों ने ज़मीनी पत्रकारों का क़द बहुत ऊँचा कर दिया है, क्षेत्रीय अख़बारों ने जो रिपोर्टिंग करी उसका कोई विकल्प नहीं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के लोकल अखबारों एवं पत्रकारों की जितनी भूरी भूरी प्रशंसा की जाए उतनी कम है, क्यूँकि सिर्फ़ वो ही जनता से संवाद कर पाए। ज़मीन पर काम करने वाले पत्रकार ही जनता के मन की बात टटोल पाए तथा असल अंक संख्या के क़रीब पहुँच पाए।

यह बात तो अब स्पष्ट है कि 2024 का चुनाव बहुत मनोरंजक होने वाला है। एग्ज़िट पोल्ज़ करने वाली संस्थाओं के सामने अपनी साख बचाने की चुनौती होगी। उनको या तो अपने आप को अधिक वैज्ञानिक बनाना होगा या फिर अट्टहास का कारण बनना होगा। 

- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद