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Tuesday, November 23, 2021

ना ख़ुदा ही मिला ना विसाल -ए -सनम


ना ख़ुदा ही मिला ना विसाल -ए -सनम 

विगत एक वर्ष चर्चा में रहे तीनों कृषि कानूनों की यात्रा भी कानूनों की तरह ही दिलचस्प रही| जैसे कोरोना काल में चुपके से अध्यादेश ला इनका सृजन किया गया था, वैसे ही प्रधानमंत्री ने देश के नाम संबोधन कर इनका विसर्जन भी कर दिया | कानूनी भाषा में कहें तो यथा स्थिति बनी रहेगी, ना कोई नया नियम लागू हुआ, ना पुराने में कोई संशोधन | परंतु कृषि क़ानूनों से उत्पन्न आंदोलन के कारण देश के हालात यथा स्थिति में नहीं रहे, इस एक साल में देश ने बहुत कुछ बिगड़ते देखा और अपने लगभग सात सौ सपूतों को खोया | बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया तो कहीं माताओं ने अपने जिगर के टुकड़े को जाते देखा | बहनों का बलिदान भी कम नहीं रहा, अनेक बहनों ने अपनी जमीन बचाने लिए देह त्याग दिए | 

इस आंदोलन से पूरे भारत को बहुत कुछ सीखना चाहिए | अगर हम अब भी कुछ ना सीखे तो हमारा भविष्य में टूटना तय है | सर्वप्रथम हर भारतवासी को यह बात स्वीकार करनी होगी कि नेताओं का किसी भी नवीन नीति, कानून या कार्य निर्धारण से निजी तौर पर कुछ भी नहीं जाता, उनकी छवि जस की टस बनी रहती है, पर जनता आपस में जन्मों के बैर पाल लेती है | नेता जी कानून पारित करने पर भी महान थे और कानून वापिस लेने पर भी महान ही बने रहे, परंतु देश और समुदाय अलग-अलग हो गए | जब क़ानून लाए गए तब भी इसको मास्टर स्ट्रोक बताया गया, वापिस लेने पर भी मास्टर स्ट्रोक ही कहा गया। नेता जी ज्यों के त्यों मास्टर ब्लास्टर बने रहे, आउट हुई तो भोली भाली जनता, जो कभी राजनीतिज्ञों के जाल में फंसी तो कभी धर्म-समुदाय के ठेकेदारों के। 

आंदोलन में सबसे ज्यादा रोटियां सेकी टी॰वी॰ न्यूज़ चैनलों के एंकरों ने। टी॰वी॰ डिबेटों ने कोई कसर नहीं छोड़ी देश का ध्रुवीकरण करने में। आंदोलन में एक ऐसा मोड़ भी आया जब इसको सिख बनाम हिन्दू बनाया गया, जाट बनाम छत्तीस बिरादरी कहा गया तथा अनेकों अनेक बिंदुओं पर ध्रुवीकरण किया गया | खालिस्तानी, पाकिस्तानी, चीनी, कम्युनिस्ट, नक्सल, अर्बन नक्सल, माओवादी एवं ना जाने क्या क्या अलंकारों का प्रयोग आंदोलनकारियों के लिए इन टी॰वी॰ एंकरों ने किया | जहां एक ओर समूचे सिख समुदाय का पर्याय बन कर दिलजीत दुसांज उभरे वहीं कंगना रनौत सत्ता पक्ष की कार्यकर्ता बन गई, और इन दोनों ने ट्विटर पर बखूबी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया | आज जब ये दोनों महान कलाकार फुर्सत में बैठेंगे तो अपनी ही कही बातों पर शर्मा जाएँगे | मशहूर शायर बशीर बद्र ने खूब ही कहा है - "दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों" | बीते एक वर्ष में कृषि क़ानूनों से जुड़ी गतिविधियों पर मुड़ कर देखा जाए तो हर व्यक्ति अपने कृत्यों पर लजा जाए | 

संसद में स्वयं प्रधानमंत्री ने आंदोलनजीवी, परजीवी जैसे शब्दों का प्रयोग किया तो उत्तर प्रदेश के मंत्री ने दो मिनट में ठीक कर देने की बात कही | करनाल के अफसर ने सिर फोड़ने का आदेश दिया तो मुख्यमंत्री महोदय ने कहा कि "ठा लो लठ्ठ" (बाद में इस बयान को उन्होंने वापिस ले लिया) | आज अगर देखा जाए तो इस सब से क्या हासिल हुआ? सिर्फ समाज में मतभेद पैदा हुए और मतभेद मनभेद में परिवर्तित भी हुए | सोशल मीडिया पर ना जाने कितने ही दोस्त दुश्मन हो गए, वे आज जरा भी अगर सोचते होंगे तो अपने को ठगा सा पाते होंगे | टी॰वी॰ वाद-विवाद सर्कस एवं सोशल मीडिया ट्रोल जंबुरे जिन्होंने पक्ष समर्थन में पूरा ज़ोर लगा दिया था  और चारों ओर अपने कटाक्षों के विषैले बाण चलाए आज अचानक क़ानून वापस होने की घोषणा पर सोचते तो ज़रूर होंगे, "ना ख़ुदा ही मिला ना विसाल-ए-सनम"। उधर क़ानून विरोधियों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी, २६ जनवरी की घटना देश के इतिहास में हमेशा काले अक्षरों में लिखी जाएगी। पिछले एक साल से दिल्ली की गर्दन तीन तरफ से दबाई हुई है एवं देश भर में जगह-जगह बंद किए गए, जिस से साधारण जनमानस को कितनी परेशानी उठानी पड़ती है इसका कोई ज़िम्मेदार नहीं है। टीकरी एवं सिंघु बॉर्डर पर लगने वाली अनेकों व्यावसायिक केंद्र, फ़ैक्टरी, मॉल एवं दुकान वालों का पूरे एक साल से काम चौपट हो गया एवं करोड़ों का नुकसान हुआ जिसका कोई ज़िक्र भी नहीं करता। आज कोई उनकी तरफ़ देख कर बोले कि हमने क्या पाया? क्या अब क़ानून वापिस होने पर किसानों की आय बढ़ जाएगी? क्या अब उनकी जीवन शैली में कोई बड़ा सकारात्मक बदलाव होने वाला है?           

यह समझना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि फैसला बदलने का कारण क्या है? जब सत्ता पक्ष को लगा कि चुनाव सिर पर है और राजनीतिक जमीन सरक रही है तो यह कदम उठाना ही बुद्धिमानी होगी | 

आज समस्त भारत के नागरिकों को यह समझना होगा कि वे इन नेताओं के चक्कर में आ कर सामाजिक ताना बाना खराब नहीं करें | हिन्दू-मुसलमान, हिन्दू-सिख, सुवर्ण-दलित की राजनीति से दूर रहें एवं अपने और अपने परिवार का ध्यान रखें | मरने वाले के घर जाकर देखें कि बाकी रह गए परिवारजनों पर क्या बीत रही है | "वो जो बन के दुश्मन हमें जीतने निकले थे, कर लेते अगर मोहब्बत तो हम खुद ही हार जाते।"

- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद



Sunday, November 14, 2021

बदलते परिप्रेक्ष्य में बाल दिवस


 बाल दिवस विशेषांक

बदलते परिप्रेक्ष्य में बाल दिवस

हर सुबह विद्यालयों की ओर जाते हंसते खेलते बच्चों की क़तारें दिखना मानो पिछली सदी की बात हो गई। हर शहर में प्रातः किताबों की दुकानों के सामने विभिन्न स्कूलों की वर्दी पहने छात्रों की भीड़; साइकिल, रिक्शा, आटो एवं बसों से सरपट आते बच्चे, दौड़ते भागते विद्यार्थी अब प्राचीन बातें लगती हैं।


मार्च 2020 में जब प्रथम लॉकडाउन लगाया गया तब यह किसी ने भी नहीं सोचा था कि आने वाले दो साल कोरोना का ग्रास बन जाएँगे। अगर यह कहा जाए कि इस सर्वव्यापी महामारी ने सबसे ज़्यादा विद्यार्थी जीवन को प्रभावित किया तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जहां एक ओर कोरोना का पुराना डर अभी समाप्त नहीं हुआ है, वहीं दूसरी ओर डेंगू, वायरल बुखार एवं वायु प्रदूषण ने समस्या दोगुनी कर दी है।   

            

14 नवंबर का दिन हर विद्यालय में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। कोरोना काल से पहले इस दिन बच्चे अपने पूरे उमंग में रहते थे एवं विद्यालयों में एक पर्व जैसा उत्सव का माहौल हुआ करता था। बच्चों को इस दिन का इंतज़ार महीनों से रहता था, आज के दिन विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती थी परंतु विभिन्न प्रस्तुतियों के ज़रिए छात्र समाँ बांध दिया करते थे। परंतु विगत दो वर्षों से सब सूना सूना है । यूँ तो कुछ स्कूल खुल गए हैं, किंतु वह पहला सा उल्लास नहीं लौटा। आज जहां कोरोना दिशानिर्देशों के कारण कोई भी ग्रुप एक्टिविटी करने में विद्यालय सकुचा रहे हैं वहीं अभिभावकों के मन का डर भी अभी निकला नहीं है। छोटे बच्चों को टीका ना लगना भी एक कारण है कि कोई सकारात्मक पहल नहीं कर रहा है। कोरोना काल के बाद की स्कूली दुनिया पूर्णतः बदल चुकी है। टर्म-1 बोर्ड परीक्षा के निकट होने का असर भी बाल दिवस कार्यक्रमों पर दिखाई दे रहा है।  


शिक्षा का नया दौर चुपके से दबे पाओं आ अपनी जगह बना चुका है। अब यह है ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का युग। बीते दो सालों में यही न्यू नॉर्मल हो चला है। और अब अगले सत्र से स्कूल पूर्णतः खुल भी जाए फिर भी यह नवीन शिक्षा पद्दती जाने वाली नहीं हैं। स्कूली शिक्षा का एक बड़ा भाग अब सदा के लिए ऑनलाइन ही हो चला है। शुरुआती दौर में विद्यालयों, शिक्षकों, अभिभावकों एवं छात्रों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा परंतु सभी ने इसको सहज ही स्वीकार भी लिया और अब यहीं कार्यरत शिक्षा प्रणाली बन चुकी है। आज समय की मांग देखते हुए बाल दिवस भी ऑनलाइन ही हो चला है। हरियाणा सरकार द्वारा हर जिले के बाल भवन में होने वाले कार्यक्रम भी विगत वर्ष ऑनलाइन हो गए। 


आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्यूँकि वे बच्चों से बहुत प्यार किया करते थे। बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कह कर पुकारते और नेहरू जी उनमें भविष्य के भारत को देखते। तब से यह परम्परा निरंतर चली आ रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का बाल प्रेम चाचा नेहरू से कम नहीं है। मोदी ने अनेकों कार्यक्रमों के ज़रिए पिछले सात सालों में बच्चों से वार्तालाप लिए। जिनमें से परीक्षा पर चर्चा, शिक्षक दिवस, बाल दिवस एवं मन की बात प्रमुख़ रहे। 


कोरोना के बाद शिक्षा जगत की परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल चुकीं हैं। ऐसे में केंद्र एवं राज्य सरकारों को आज बाल दिवस के दिन यह संकल्प लेना चाहिए कि भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिये बच्चों की ज़रूरतों को हर हाल में पूरा करना होगा। अगर हम अपने सपनों का स्वर्णिम भारत बनाना चाहते हैं तो शिक्षा एवं बाल सुधार पर विशेष बल देना होगा। आज भारत के छात्रों को अमरीका, सिंगापुर, अंग्रेज़ी एवं चीनी युवा वर्ग से कड़ी चुनौती मिल रही है।

     

आज समय की माँग यह है कि अगर शिक्षा को सुचारु रूप में चलाना है तो हर छात्र तक तकनीक को उपलब्ध करवाना होगा। सरकार एवं अभिभावकों को अब यह समझ लेना होगा कि उनके बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए तकनीकी आवश्यकताएँ पूरी करनी होंगी। हर घर में अब एक कंप्यूटर तथा डाटा कनेक्टिविटी होना अनिवार्य हो चुका है। स्कूली ही नहीं वरन विश्वविद्यालय शिक्षा भी अब इसी ओर अग्रसर है। भविष्य में होने वाली सभी परीक्षाएं भी ऑनलाइन प्रारूप में ही ली जाएँगी। इस बार जब नीट, आई॰आई॰टी॰ जे॰ई॰ई इत्यादि परीक्षाएँ ऑनलाइन ली गयी, तो बहुत छात्रों को समस्याओं का सामना करना पड़ा। 


नेताओं की भाषण बाज़ी से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। सरकार को बजट में प्रावधान कर देश के छात्रों के लिय नवीन बुनियादी ढाँचा तैयार करना होगा, जिसमें देश के अंतिम कोने में बने विद्यालय तक तकनीक एवं डाटा कनेक्टिविटी की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। 


प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्री विकास अत्री कहते हैं कि गत दो वर्षों में विद्यार्थियों का बहुत नुक़सान हुआ है। बच्चों के स्कूल बंद थे, रिश्तेदारों के घर भी आना जाना नहीं हुआ, ऐसे में बच्चों का समाजीकरण बिल्कुल शून्य हो गया। इसे मनोविज्ञान में बहुत बड़ी चुनौती माना गया है। श्री अत्री कहते हैं कि इसके दुष्परिणाम भविष्य में दिखायी देंगे। खेलों से भी बच्चे दूर हो गए, जिसका असर उनकी शारीरिक विकास पर दिखने लगा। निरंतर कम्प्यूटर स्क्रीन को निहारने से आँखों पर मोटे चश्में लग गए। 


शिक्षा सत्र 2021-22 को तो पूर्ण ही समझो। नए सत्र से शिक्षा के मानक भी बदले जा चुके होंगे। यह महामारी कब तक चलेगी, कोई नयी बीमारी या अड़चन, सुरसा रूपी मुँह कब खोल ले, यह कहा नहीं जा सकता। ऐसे में स्कूली शिक्षा कब तक अपने पहले प्रारूप में आ पाएगी यह कहना बहुत मुश्किल है, तथा विवेकी व्यक्ति वही है जो समय के बदलाव को स्वीकारे, ना कि उसकी आलोचना में ही समय गंवाता रहे। 


अगर सच्चे अर्थ में बाल दिवस को साकार करना है तो हमें अपने बच्चों से यह वादा करना होगा की हम उनको विश्वस्तरीय विद्यालय एवं महाविद्यालय प्रदान करेंगे। उनके सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता दे बाल स्वास्थ्य एवं खेल कूद पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। वरना आज का दिन भी साल के अन्य किसी दिन की तरह ही हो कर रह जाएगा एवं अपनी प्रासंगिकता खो देगा। समाज को भी एक जुट हो आगे आना चाहिए एवं अपने नन्हें मुन्नों को एक सुनहरा अवसर प्रदान कर खोए हुए समय की आपूर्ति करनी चाहिए।  

                           

हर छात्र को भी इस बदलाव को स्वीकारना होगा एवं अपनी शिक्षा पद्धति में यथा अनुचित बदलाव कर अपने को शीर्ष तक ले जाना होगा। छात्र टाईम-टेबल बना अपनी पढ़ाई करें, पूरा दिन मोबाइल की स्क्रीन को ना निहारें। शीत ऋतु में बच्चे अपनी सेहत का ध्यान रखें एवं अपनी पढ़ाई जारी रखें। बोर्ड परीक्षा वाले विद्यार्थी सैम्पल पेपर ज़रूर हल करें एवं बदले हुए सिलेबस के अनुसार ही पढ़ाई करें। सभी छात्रों को बाल दिवस की हार्दिक बधाइयाँ।

           

- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

Saturday, November 13, 2021

सी.बी.एस.ई. ने जारी की टर्म-1 की डेट-शीट


सी.बी.एस.ई. ने जारी की टर्म-की डेट-शीट  


सी.बी.एस.ई. टर्म-परीक्षा  -  डेट-शीट

कक्षा दसवीं

कक्षा बारहवीं

30 नवम्बर – समाजिक विज्ञान  

3 दिसम्बर – अंग्रेज़ी 

2 दिसम्बर – विज्ञान  

6 दिसम्बर – गणित 

4 दिसम्बर – गणित 

7 दिसम्बर – शारीरिक शिक्षा 

8 दिसम्बर – कम्प्यूटर 

8 दिसम्बर – बिज़नेस स्टडी 

9 दिसम्बर – हिंदी 

10 दिसम्बर – फ़िज़िक्स 

11 दिसम्बर – अंग्रेज़ी 

13 दिसम्बर – अकाउंटन्सी 

 

14 दिसम्बर – रसायनिक विज्ञान  

15 दिसम्बर – अर्थशास्त्र 

16 दिसम्बर – हिंदी 

17 दिसम्बर – समाजिक विज्ञान  

18 दिसम्बर – बायआलॉजी 

(सम्पूर्ण डेट शीट बोर्ड की वेब साइट से प्राप्त करें)

सी.बी.एस.ई. ने कक्षा दसवीं एवं बारहवीं की प्रथम टर्म परीक्षा की डेट- शीट जारी कर दी है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर कई दिनों ने चल रही अटकलें शांत हो गयी। शिक्षकों एवं छात्रों ने चैन की साँस ली। 

कक्षा दसवीं की परीक्षा 30 नवम्बर एवं कक्षा बारहवीं की परीक्षा 1 दिसम्बर से प्रारम्भ होंगी। डेट-शीट के साथ ही बोर्ड ने अहम दिशानिर्देश भी जारी किए। इस बार की परीक्षा अपने विद्यालय में ही ली जाएँगी। छात्रों का अपना स्कूल ही बोर्ड सेंटर होगा। परीक्षा बहु विकल्पीय प्रश्नपत्र के रूप में ली जाएगी जिसका प्रश्नपत्र बोर्ड की तरफ़ से ही आएगा। हर सेंटर पर बोर्ड बाहर से निरीक्षक नियुक्त करेगा। 

परीक्षा केंद्र में कोरोना गाइड-लाइन का पालन होगा। छात्रों को उत्तर पुस्तिका में सिर्फ़ पेन का इस्तमाल करना होगा। प्रश्नपत्र में हर प्रश्न के चार विकल्प होंगे, जिसमें से एक सही उत्तर पर ओ॰एम॰आर॰ उत्तर पुस्तिका में सही निशान लगाना होगा। विद्यार्थियों की सहूलियत एवं प्रथम बार इस प्रकार की परीक्षा देने के कारण बोर्ड ने उत्तर पुस्तिका में कुछ बदलाव किए हैं। ओ॰एम॰आर॰ उत्तर पुस्तिका में एक अतिरिक्त गोल बिंदु दिया गया है, जिससे हर प्रश्नअंक के लिए पाँच गोल बिंदु होंगे। अगर छात्र गलत बिंदु भर देता है तो उसे काट के पाँचवें बिंदु में सही विकल्प का अंक (क, ख, ग, घ) लिख सकता है। हर प्रश्नपत्र 80 अंक का होगा तथा छात्रों को 90 मिनट में प्रश्नपत्र हल करना होगा। प्रश्नपत्र ‘रीडिंग-टाइम’ अतिरिक्त 20 मिनट दिया जाएगा। परीक्षा का समय 11:30 से 1:00 बजे तक निर्धारित किया गया है।  


सभी छात्र अपना एक टाइम-टेबल बनाये एवं पाँचों विषयों को बराबर समय दें, रोज़ कम से कम छः घंटे ज़रूर पढ़ेंटाइम-टेबल इस प्रकार बना हो जिसमें सात घंटे की नींद का भी पूर्ण प्रावधान होबोर्ड  ने सभी विषयों के सैम्पल पेपर एवं उत्तर पुस्तिका पहले ही जारी किए हुए  हैं। यह सी.बी.एस.ई. की वेब-साइट पर निशुल्क उपलब्ध हैं। छात्र इन्हें अच्छे से हल करें एवं प्रश्नपत्र नियमित समय में ही पूरा करने की कोशिश करें। इस परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग नहीं है। 


इन दिनों छात्र किसी भी कुधारणा का शिकार होने से बचें, व्यर्थ समय ना गवाएँ एवं मौसमी बदलाव व डेंगू के प्रकोप से अपने को बचाएं। परीक्षा के दिनों में बीमार पड़ना परिणाम पर असर दिखा सकता हैं

             

-       जगदीप सिंह मोरशिक्षाविद