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Sunday, May 27, 2018

रिजल्ट का बारीकी से विश्लेषण करें




कोर्स चयन करने में जल्दबाज़ी ना करें छात्र 

कल सीबीएसई कक्षा 12वीं का परिणाम घोषित हुआ | ज्यादातर बच्चों ने अच्छे अंक ला कर सफलता प्राप्त की | अब कॉलेज एडमिशन की दौड़ शुरू हो गयी है | सारे बच्चे जल्द से जल्द अच्छे कॉलेज में दाखिला लेना चाहते हैं | एनसीआर के बच्चों की पहली पसंद दिल्ली यूनिवर्सिटी ही होती है | साल दर साल दिल्ली यूनिवर्सिटी की कट-ऑफ आसमान छूती जा रही है | नार्थ कैंपस के महाविद्यालयों में जगह पाना हर छात्र का सपना होता है | इसी दौड़ के चलते अक्सर बच्चे कोर्स चुनने में गलती कर देते हैं | छात्र अनुभव की कमी के कारण ज्यादातर उन कोर्सेज की तरफ़ चले जाते है जिनमें उनके दोस्त एडमिशन ले रहे होते हैं | 

बहुत ज़रूरत है कि छात्र अपने रिजल्ट का बारीकी से विश्लेषण करें एवं जिन विषयों में उनको अच्छी सफलता मिली है उन्हीं विषयों में आगे कि पढ़ाई करें | स्नातक में सही विषयों का चयन ही करियर में सफलता की कुंजी है | छात्र वोकेशनल कोर्सेज भी चुन सकते हैं | भारत सरकार की 'स्किल इंडिया' स्कीम के तहत हरियाणा कौशल यूनिवर्सिटी पलवल ऐसे कोर्सेज को बढ़ावा देती है तथा ये रोज़गार की गारंटी भी देती हैं | ऐसा अक्सर देखा जाता है की बच्चे स्नातक के बाद निराश हो जाते है तथा  बाद में सब्जेक्ट बदलते है; तब बहुत कष्ट होता है एवं मानसिक व आर्थिक व्यय भी उठाना पड़ता है | दिल्ली यूनिवर्सिटी के अलावा भी बहुत से अच्छे विश्वविद्यालय है जिनमें उत्कृष्ट कोर्सेज उपलब्ध हैं जैसे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक, गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय हिसार, पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़, इन्द्रप्रथ यूनिवर्सिटी, जामिआ मिलिया यूनिवर्सिटी दिल्ली आदि | एनसीआर  में  बहुत सी डीम्ड यूनिवर्सिटी भी हैं जिनमें बहुत से अच्छे कोर्सेज चल रहे हैं |  जिन विषयों में अच्छे अंक नहीं आये, जो विषय कठिन लगते थे, अथवा जिन विषयों में इंटरेस्ट नहीं था उन्हें बच्चे आगे ले कर ना चलें | ऐसे विषय चुने जिनमें रूचि हो, ऐसा करने पर पढ़ाई सरल एवं आनंदायक होगी | 

कला संकाय के कोर्सेज में बहुत स्कोप है | छात्र नवीन एवं विविध आयामों वाले विषय चुने जैसे मनोविज्ञान, मॉस कम्युनिकेशन (जर्नलिज्म) एवं समाज-शास्त्र | बी.ए. इंग्लिश ऑनर्स जैसे कोर्सेज बहुआयामी हैं, इसके बाद पोस्ट-ग्रेजुएशन में बहुत से विषय चुनने की छूट मिल जाती है एवं नौकरी मिलने के आसार कई गुणा बढ़ जाते हैं | 

जिन विद्यार्थियों की कम्पार्टमेंट आयी है, वो निराश न हों | सी.बी.एस.ई. ऐसे विद्यार्थियों को दूसरा मौका देती है | कम्पार्टमेंट की परीक्षा जुलाई में होगी | छात्र इन दिनों को व्यर्थ न करें एवं अपनी गलतियों को सुधारते हुए मेहनत करें | एक सकारात्मक सोच के साथ आगे बढें व अपना साल ख़राब ना होने दें | यूनिवर्सिटी में एडमिशन अगस्त तक चलते हैं, इन बच्चों को भी दाखिला लेने में कोई परेशानी नहीं होगी | फेल विद्यार्थी ओपन स्कूल के माध्यम से अब भी अपनी बारहवीं कर सकते हैं |  ऐसा प्रायः देखा गया है कि जो बच्चे किन्हीं कारणों से पढाई में ज्यादा अच्छा नहीं कर सके, वे भी अपनी रूचि के अनुरूप अगर कार्य करें तो भविष्य में सफलता उनके कदम चूम लेती है |  

- जगदीप सिंह मोर

Friday, May 25, 2018

'Change in the Election System'




चुनावी बदलाव : समय की मांग

भारत जब आज़ाद हुआ तो हमारे सामने विकल्प खुले थे कि हम राजशाही को अपनाये या लोकतंत्र को | लोकतंत्र में भी हमारे सामने अमेरिका की तरह राष्ट्रपति शासन अपितु ब्रिटेन की तरह प्रधान मंत्री शासन दोनों विकल्प उपलप्ध थे | संविधान को बनाने वाले इतने प्रबल दार्शनिक थे कि उन्होंने एक ऐसे शशक्त संविधान की रचना की जिसमें पूरे संसार की राजनीतिक खूबियों का समावेश किया | उन्होंने भारत के लिए संघीय लोकतंत्र का एक ठोस ढ़ाचा तैयार किया | संविधान को एक लिखित स्वरुप दिया गया जिसके हर अनुच्छेद पर उचित बहस के बाद बारिकी से गढ़ा गया | संविधानिक पदों की क्षमताओं की व्यापक व्याख्या करी गयी | संविधानिक द्वन्द होने पर नैतिकता एवं विवेक के आधार पर फैसला लेने का विकल्प रखा गया | शायद यहाँ ही संविधान के रचनाकारों से सबसे बड़ी भूल हो गयी की उन्होंने आज के नेताओं से नैतिकता की उम्मीद रख ली | आज वो महान लोग अगर कहीं से अपने इस सपनों के भारत को देखते होंगे तो उनका दिल बहुत दुःख पाता होगा | 

उचित समय आ गया है की भारत के संविधान में शंशोधन किये जाएँ | हमारी चुनाव प्रणाली यह चीख चीख कर पुकार कर रही है की उसमें कुछ मूलभूत बदलाव किये जाएँ | अभी हाल ही में हुए कर्नाटक विधान सभा चुनाव एवं उसके बाद चला सियासी ड्रामा इस बात का ज्वलंत उदाहरण है की चुनाव प्रणाली को अब दीमक खाने लगी है | पांच साल राज करने वाली पार्टी को जनता नकारती है, परन्तु फिर भी वह सरकार बनवाने में सफल हो जाती है | तीसरे नंबर पर रहने वाली पार्टी, 222 (224) विधान सभा सीटों में से 38 सीट ला पाती है, फिर भी सरकार बनाती है एवं मुख्य मंत्री भी उन्हीं का होता है, वहीँ 104 सीटें ला कर प्रथम स्थान पर रहने वाली पार्टी हाथ मलती रह जाती है | गवर्नर के पद की गरिमा को भी जितनी ठेस इस चुनाव ने पहुचाई है उतनी कभी भी नहीं पहुंची | तीन दिनों तक चौबीसों घंटे टीवी चैनल इसी बात पर बहस करते रहे की क्या राज्यपाल ने जो किया वो सही है या गलत | दुःख की बात यह की वो सिर्फ विधि एवं कानून में ही उलझते रहे, नैतिकता पर किसी का ध्यान गया ही नहीं |             

भारतीय निर्वाचन व्यवस्था में चुनाव से पहले एवं चुनाव के बाद, दोनों प्रकार के गठबंधन की सम्भावना रखी गयी है | चुनाव से पहले राजनीतिक दल आपस में हाथ मिला लेते हैं एवं सीटों का बटवारा अपनी सहुलियत अनुसार करते हैं | जिसके बाद शुरू होता है चुनावी जमघट | जनता मुख्यतः राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र, नेताओं के भाषण, एवं चुनावी वादों के आधार पर अपने वोट का इस्तमाल करती है | चुनाव-पूर्व गठबंधन संविधान स्वरुप है, जिसमें कम से कम जनता तो यह तो पता है कि कौन दोस्त है कौन दुश्मन | 

संविधान पर अगर सबसे बड़ी चोट किसी ने की है, तो वो है चुनाव के बाद बनने वाले गठबंधन ने | चुनाव के दौरान जो नेता एक दुसरे को गालियाँ दे रहे थे, लांछन लगा रहे थे, एक दुसरे के विरुद्ध लड़ रहे थे , वे चुनाव के बाद सिर्फ अपने राजनीतिक स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए अचानक से प्रगाढ़ मित्र हो जाते हैं, मीडिया के सामने गलबइयां डालने लगते हैं | भोली भाली जनता यह सब मूक होकर देखती रह जाती है, इस से बड़ा संविधानिक छल कोई नहीं हो सकता | सत्ता की अफीम का नशा इन नेताओं पर कुछ इस कदर चढ़ता है की वो अपने ज़मीर तक तो बेच देते हैं फिर राजनीतिक खरीद-फरोख्त की एक ऐसी विसात बिछाई जाती है जिसमें नेताओं के ईमान की बोली लगाईं जाती है | सौ-सौ करोड़ रुपए ऐसे उछाले जाते हैं जैसे पार्टी के सरगना अपने घरों में टकसाल खोले बैठे हों | 

चुनाव के बाद होने वाला गठबंधन, लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है | आज सबसे बड़ी ज़रूरत है की इस अनैतिक चुनावी स्टंट को अपनी चुनावी प्रणाली से उखाड़ फैका जाये | संसद तो कभी ऐसा कानून लाएगी नहीं, क्यूँ की अगर वो ऐसा करते हैं तो उनकी राजनैतिक दुकानें बंद हो जाएँगी | इस संविधानिक बदलाव की उम्मीद सिर्फ सुप्रीम कोर्ट से ही लगायी जा सकती है | 

-      जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद                    

          

Friday, May 18, 2018

Disaster Mismanagement




Disaster (Mis)management

The recent thunderstorm has taken the country to a standstill. The sheer chaos made by dust storm, rain, hails and wind is colossal. May 2 and May 13 saw the biggest damage. These thunderstorms took about three hundred lives and injured thousands. Hundreds of vehicles got damaged and numerous trees got uprooted. Property worth millions has been damaged due to these natural calamities. This shows our poor state of preparedness.

As rightly said, ‘If you fail to prepare, you prepare to fail’. Our country has no mechanism to fight with these disasters. We have surrendered before strong winds, and the administration remained mute spectator of the damage. Road traffic went berserk while telephone and electricity infrastructure remained paralyzed for days. Railway, metro and airport services remained halted for hours together keeping the country on its knees. This happens just because of strong winds, one can imagine the quantum of damage to be done by a hurricane or a cyclone, if it ever occurs in our country. It seems, a ‘Katrina’ or a ‘Harvey’ will wipe away the entire subcontinent. Another failure was the prediction of the storm. IMD turned into a mockery as its prediction seldom meets the result. States like Haryana declared two days holiday bringing the system to a standstill. Thousands of memes and jokes flooded the social media when the IMD’s prediction failed to meet its dates. It is our gross failure that even after seventy years of independence we have failed to erect a good system of weather forecast. For a vast country like ours, we need a robust weather prediction infrastructure. The worst part is that majority of India is under seismic zone, yet there is no preparedness. The geographers are of the view that a major earthquake is due which will jolt India from Kashmir to Arunachal. This will bring damage one could have never anticipated. We should ask ourselves this question, ‘Are we prepared for it?’. 

It is high time we should learn from countries like USA, Russia, Japan and China. Despite having atrocious climatic conditions, these countries perform exceptionally well on infrastructural grounds. They make sure that the supply of essential amenities to the affected areas should not stop. Even in heavy snowfall and torrential rainfall conditions, the electricity and communication services are least affected in these countries. Benjamin Franklin once said, ‘An ounce of prevention is worth a pound of cure’.

The Indians are amongst the least skilled in terms of disaster management. We lack even the basic first-aid training and emergency guidelines. Our households are neither equipped with emergency tools nor the infrastructure to sustain a higher order natural calamity. High speed winds and a couple of treefalls are enough to trigger panic amongst the Indian people. Disruption in electricity supply paralyze the entire post-accident operations. Every year, our country faces numerous natural calamities ranging from floods, droughts, dust storms, hailstorms, thunderstorms, cyclones, forest fires to earthquakes, yet we have failed to formulate a strong disaster management mechanism.  

The secret of crisis management is not good vs. bad, it’s preventing the bad from getting worse. The only solution to encounter natural disasters in a diverse country like ours is to train the people in disaster management. Institutions like Scouts and Guides, NDRF, NCC and Red Cross should come forward and play a crucial role in capacity building of the common people. Training should start at the school level. Disaster management exercises should be made compulsory at the school level and if needed it should be treated at par with the other scholastic grades. Every household should procure an emergency kit equipped with all the essential tools like torch, rope, knife, first-aid box etc. needed at the time of an emergency. Basic medical training camps should be held at block levels where exercises like administering CRP, dressing of wounds etc. should be taught to common folks. A team of such trained individuals should be constituted at every panchayat and block level. If needed, the Government of India should formulate a full fledged department or a ministry for disaster management which should be held responsible for providing men, material and services to all natural and manmade disasters. The recent example of an over-bridge pillar collapse in Varanasi is again an alarming call. It took the city administration two days just to lift the pillar from the sight of accident. There were no machines available and NDRF teams from Delhi have to rush in order to prevent the further damage. Such a sorry state of affairs nullifies all our efforts to be a developed nation.   

Preparedness is the only way we can combat a disaster. If we fail to prepare now, we will only regret the delay. These natural disasters are giving us strong signals of warning that we should stop playing havoc to the mother earth. It seems while the western world is learning something new with each disaster and equipping themselves with means to tackle the menace, we still prefer to close our eyes and blame the destiny.

-          Jagdeep S. More, Educationist

Friday, May 4, 2018

समय बड़ा बलवान - A Story by me



समय बड़ा बलवान

उत्तरप्रदेश के एक छोटे से कसबे कर्नलगंज के एक मद्धमवर्गी परिवार में जन्मा नवदीप, जन्म से ही होनहार छात्र था | उसने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की व मुंबई की एक प्रसिद्ध कंपनी में नौकरी पायी | परिवार में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी और नवदीप भी अपनी सपनों की दुनिया बुनने में लग गया | परिवार में पिता जी, माँ व छोटी बहन थे, ढेर सारी खुशियाँ थी बस पैसे थोड़े कम रहते थे | नवदीप ने बचपन से पैसों का आभाव देखा था | मुंबई में नवदीप की मुलाकात भक्ति से हुई, भक्ति भी नवदीप के शहर की ही थी और टाटा कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजिनियर के पद पर आसीन थी | नवयुगल में प्रेम पनपा और दोनों में नजदीकियां भी बढ़ने लगी, अब तो रोज़ का मिलना-जुलना आम हो चला | भक्ति शहर के प्रसिद्ध सर्राफ की बेटी थी, उनका परिवार अभी भी रुढ़िवादी बेड़ियों में बंधा हुआ था वहीँ नवदीप क्षत्रिय जाती से था व उसका परिवार खुले विचारों का था | नवदीप का घर भी पुराना ही था, भक्ति महलों में पली-बढ़ी लाडली थी |

मुंबई में रहते हुए करीब देढ़ वर्ष ही हुआ था की किस्मत ने अपना फेर दिखाया ओर अक्समात ही नवदीप के पिता जी चल बसे | परिवार की खस्ता हालत देखते हुए नवदीप को मुंबई छोड़ना पड़ा | यूँ तो पिता जी की पेंशन आ रही थी, पर परिवार में आदमी की सख्त ज़रूरत थी, छोटी बहन भी अभी पढ़ ही रही थी और माँ की भी ढलती उम्र थी | छोटा शहर होने के नाते कोई कंपनी तो नहीं थी, नवदीप ने दिल पे पत्थर रख एक स्कूल में ही नौकरी करने का फैसला किया | भक्ति इस से बिलकुल भी प्रसन्न नहीं थी, मन तो नवदीप का भी नहीं था पर हालात ही कुछ ऐसे थे की और कोई चारा भी ना था | नवदीप ने अमेरिका की एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में नौकरी के लिए आवेदन दिया हुआ था, जिसके जवाब का उसको बहुत दिनों से इंतज़ार था पर अभी तक कोई सन्देश आया ही ना था | नवदीप नौकरी तो कर रहा था पर उसका मन अभी भी मुंबई में ही अटका हुआ था | उसके दोस्त भी उसके इस नए व्यवसाय से कोई ज्यादा खुश नहीं थे |

समय बीता और नवदीप ने भक्ति से शादी की बात की, अब तक दोनों के घरों में इस बात का खुलासा हो चुका था | बेटे की राज़ी में माँ भी राज़ी थी, पर भक्ति के घर वाले इस रिश्ते से ज्यादा खुश नहीं थे | उन्होंने अपनी बेटी पर दबाव बनाया पर भक्ति ने कहा की वह अपने पति को अपने साथ ले जाएगी | फिर बस नवदीप की बहन की शादी तक की ही तो बात है, एक बार बहन बिहाई गई, तो माँ को भी संग ही ले चलेंगे | सगाई का दिन तय हुआ और तैयारियां शुरू हुई | नवदीप अपनी प्रियसी को खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था, उसने सोचा हुआ था की वो अपनी सगाई में उसे कीमती हीरे की अंगूठी ही देगा | पर इतने पैसे नहीं थे, माँ ने बेटे के चेहरे की शिकन को पढ़ लिया ओर पिताजी की चैन उसके हाथ में थमा दी | नवदीप भौचाक्का रह गया | “ये क्या कर रही हो माँ, ये तो पिताजी की आखिरी निशानी है“, नवदीप ने रुआंसा सा होकर कहा | “पिताजी की निशानी तो तू है बेटा, ऐसी हजार चैन तेरे ऊपर कुर्बान हैं “, माँ ने अपने लाडले को समझाया | नवदीप ने अपनी आँखों में ही अपने आंसुओं को छुपाया और बाज़ार से भक्ति के लिए एक अच्छी सी अंगूठी खरीद ली |

सगाई का दिन आया और नवदीप अपनी माँ ओर बहन के साथ भक्ति से आलिशान घर पहुंचा | नवदीप का  मन हिलोरे ले रहा था, आखिर उसका सपना जो पूरा होने जा रहा था | बड़े ही रौब से उसने अपनी जेब से अंगूठी निकाली ओर भक्ति को पहनाई | भक्ति के पिता ने भी अपनी लड़की तो एक अंगूठी थमाई और उसने नवदीप को वह अंगूठी पहना दी | पंडित जी ने कुछ मन्त्र बोले और हवनकुंड में कुछ आहुति डलवाई ; सामग्री, घी इत्यादि से नवदीप के हाथ गंदे से हो गए थे | नवदीप बाथरूम में अपने हाथ साफ़ करने गया, साबुन अभी लगाया ही था की उसके हाथ में पहनी अंगूठी का चमकीलापन पानी में उतर गया | अब अंगूठी अपने मूल स्वरुप में थी, ना जाने वो चांदी थी, लोहा था या स्टील की बनी थी , पर एक बात तय थी की उसपर सोने की सिर्फ पॉलिश थी, जो अब उतर चुकी थी | नवदीप के पैरों तले ज़मीन ख़िसक चुकी थी | ऐसा लगा मानो उसको किसी ने उसकी औकात दिखा दी हो | उसकी आँखों में आसूं आ गए, उसको लगा जैसे किसी ने उसके कान में कहा हो – ‘गरीब नवदीप तुम इसी के योग्य हो’ | दर्पन में मानो भक्ति के पिताजी उससे कह रहे हो, “जिसकी जैसी औकात, उसका वैसा सम्मान” |

तमतमाता सा नवदीप बहार आया, और उसने भक्ति के सामने अपना हाथ आगे कर दिया | भक्ति ने ऐसे रियेक्ट किया जैसे कुछ हुआ ही ना हो, जैसे वो सब पहले से ही जानती हो | “ओ हो नवदीप, तुम भी ना छोटी-छोटी बात पर मुहं बना लेते हो, पापा इसे ठीक कर देंगे, अब इसे अपनी जेब में रख लो”, उसने तपाक से कहा | इतना सुनते ही मानो नवदीप जिंदा लाश बन के रह गया | अपमान का ये कड़वा घूँट उसके हलक के नीचे नहीं उतर रहा था | उसकी माँ ने उसे आँख के इशारे से चुप रहने को कहा, और कोई चारा भी नहीं था | “आओ मैं तुम्हे अपने जीजू से मिलवाती हूं“, भक्ति ने नवदीप का हाथ पकड़ा और अपनी बड़ी बहन व बहनोई के पास ले चली | भक्ति के जीजा ने हाथ में कॉफ़ी का कप पकडे हुए तंज़ किया, “अब दोनों मिल के ट्यूशन पढ़ाना, भई देखो एक से भाले दो” | नवदीप को ये बातें खंजर की तरह चुभ रहीं थी | बड़ी बहन ने भी कसर नहीं छोड़ी, उसने भी हसंते हुए कहा, “कोई ज़रूरत हो तो बताना, हम एक दिन बाहर खाना खाने नहीं जायेंगे, तुम्हारी एक महीने की तनख्वा निकाल आएगी” | भक्ति ने भी बहन के सुर में सुर मिलाया, “वैसे दीदी, आई हेट टीचर्स” | दोनों बहनें ठहाका लगा के हसं पड़ी | नवदीप की तो जैसे साँसे ही थम गई हो | उसकी माँ ये सारा मंज़र देख रही थी, वो भी खून का कड़वा घूँट पी कर चुप खड़ी रहीं | पंडित जी ने दो महीने बाद शादी का महूरत निकला और फिर सबने विदा ली |

नवदीप पूरी रात सो ना सका, पूरी रात उसने रो-रो कर काटी | उसके लिए यह सोच पाना भी मुश्किल था की भक्ति उसके साथ ऐसा करेगी | उसे ये सब एक डरावने सपने जैसा लग रहा था, मानो आँख खुलेगी तो ऐसा कुछ नहीं होगा | माँ भी अपने लड़के की मनोदशा भांप चुकी थी | सिवाए भगवान के आगे हाथ जोड़ने के उसके वश में कुछ नहीं था | अगले दिन नवदीप सुबह स्कूल जाने के लिए बे-मन से तैयार हुआ, आँखें सूज के लाल-लाल ओर मोटी हो गई थी | माँ भी अपने दिल के टुकड़े को सीने से लगा के रोना चाहती थी, पर इस समय एक अनजान सी ख़ामोशी ने घर को जकड़े हुआ था | नवदीप ने स्कूल फ़ोन किया ओर कहा की मैं आज हाफ –डे में आयूंगा | नाश्ता किये बिना ही वो फिर अपने कमरे में चला गया | दस बजे के करीब वो स्कूल जाने के लिए बहार निकला ही था, अभी अपनी एक्टिवा स्टार्ट ही की थी की दरवाज़े की घंटी बजी और डाकिये ने उसको एक लिफाफा थमा दिया | नवदीप ने रुआंसी सी आँखों से उसे देखा और खोल कर पढ़ने लगा | पत्र यु.एस. की एक विख्यात यूनिवर्सिटी का ऑफर लैटर था | पढ़ते पढ़ते नवदीप की आँखों से गंगा-यमुना बह निलकी | इतने में माँ भी आँगन तक आ गई | एक लाइन पर आ कर नवदीप की आँख अटक गई, उसमें लिखा था की यूनिवर्सिटी दो साल तक आपको कॉन्ट्रैक्ट पर रखेगी, इन दो सालों तक आप वापिस इंडिया नहीं आ सकते | दस दिन के अन्दर रिपोर्ट करें नहीं तो ऑफर रद्द किया जायेगा | नवदीप ने सारा मजमून अपनी माँ को बताया | माँ ने सूखे से मुहं से कहा, “बेटा, जाने की तैयारी करो”, उसमें बिना देरी किये अपने गले में पहना काला धागा उतरा, उसमें जो छोटा सा सोने का ओम वाला लॉकेट था वो नवदीप के हाथ में थमा दिया | नवदीप कुछ बोलता, इस से पहले ही माँ ने कहा, आज स्कूल से छुट्टी ले ले,और टिकेट बुक करवा ले | एक हफ्ते में नवदीप दिल्ली एअरपोर्ट पर खड़ा था, माँ ने नम-आँखों से उसको विदा किया ओर नई ज़िन्दगी शुरू करने के नसीहत दी | करीब एक महीने बाद भक्ति नवदीप के घर आई, और रौब से बताया की मैं पच्चीस दिन सिंगापुर रह के आई हूं, ‘माँ जी नवदीप कहाँ है?’ | माँ ने कहा, “वहीँ, जहाँ उसे होना चाहिए था, वो अमरीका चला गया है” | यह सुन भक्ति से होश-फाक्ता हो गए | वो जाने लगी तो माँ ने उसे रोका ओर कहा, ‘तुम्हारे लिए वो कुछ छोड़ के गया है’ | माँ ने भक्ति के हाथ में सगाई वाली अंगूठी रख दी ओर कहा खुश रहो बेटा | भक्ति बिना कुछ जवाब दिए वहां से चली गई मानो वक़्त ने उसको जवाब दे दिया हो | साल भर बाद नवदीप ने माँ ओर बहन को अमेरिका बुला लिया और भक्ति की भी एक सेठ परिवार में शादी हो गई |    
    
-      जगदीप सिंह मोर