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Thursday, April 6, 2023

तेरे नाम का टैटू भी मिटाना है




तेरे नाम का टैटू भी मिटाना है  

पंजाब के फाजिल्का के एक छोटे से कस्बे में जन्मे सूरज और सोनिका को भाग्य ने मिलवाया भी और अलग भी किया। सूरज के पिता अपने इलाके के एक जाने माने उच्च कुल में जन्मे व्यापारी थे, रातिब (पशुधन चारा) की दुकान से शुरू कर एक फैक्ट्री के मालिक तक का सफ़र उन्होंने जल्द ही पूरा किया। प्रतिस्पर्धा में सबको पीछे छोड़ कामयाबी के शिखर तक पहुँचे। इकलौते बेटे सूरज ने कभी अभाव नहीं देखा। परंतु पंजाब की पृष्ठभूमि ही कुछ ऐसी है यहाँ बैंक लोन से ज़्यादा आपसी उधार एवं ब्याज पर पैसे का लेन देन चलता है, जल्दी ही सूरज के पापा भी इसी झमेले में उलझ गए और फ़ैक्टरी की कुर्की की नौबत आ गयी। दिन बिगड़े और पिता जी के देहावसान के पश्चात सूरज और उसकी माँ को सब कुछ बेच कर शहर ही छोड़ना पड़ा। 

वहीं सोनिका के पिता एक मध्यमवर्गीय कर्मी थे, जाती व्यवस्था को तोड़ अपनी बेटियों को पढ़ाया और मेहनत कर उन को स्वावलंबी बनाया। स्कूली पढ़ाई पूरी कर सोनिका ने बैंक का इम्तिहान पास कर सरकारी नौकरी प्राप्त की और जल्द ही पदोन्नति भी पाई। सोनिका स्वभाव से ही चंचल और मोहक मुस्कान की धनी थी, ऐसा कोई ना होता जो उसकी मुस्कान पर ना मर मिटता। 

सोनिका को मुरादाबाद में पोस्टिंग मिली और एक लड़के से उसकी दोस्ती हो गयी, कुछ साल साथ रहने के बाद भी उनकी शादी ना हो सकी और दोनो अलग हो गए। वहीं सूरज ने भी दिल्ली आ हर इल्म में हाथ आज़माए। सूरज छह फूट तीन इंच लम्बा, भरपूर बदन वाला हट्टा-कट्टा पंजाबी मुंडा था, जो जीवन को आज में जीता और कल की चिंता नहीं करता था। कॉल सेंटर की नौकरी, नाइट शिफ्ट में काम किया, कभी फ़ोटोग्राफ़ी की, कभी सॉफ़्ट्वेर भी लिखे। हर काम में हुनर हासिल कर उसने अपना एक अलग मुकाम बनाया और पैसा भी। गुरुग्राम में रह उसने अपना फ़्लैट ख़रीदा और हर वो चीज़ हासिल की जिसकी उसको हसरत थी। 

समय ने अपना चक्र घुमाया और फाजिल्का के एक कॉमन दोस्त ने सूरज का परिचय सोनिका से करवाया। दोनों ने पाया कि वे एक ही स्कूल में पढ़े थे और एक दूसरे को जानते हैं, सूरज ने एक बार फिर अपने आप को अपनी सरजमीं के क़रीब पाया। वह मन ही मन बहुत हर्षित हुआ। सोनिका को भी सूरज किसी अपने जैसे लगा, दोनों में बहुत कुछ एक जैसा था। सोनिका उस से घंटों बात करती और बेहद खुश थी। जल्द ही दोनो में प्यार हुआ और उन्होंने शादी कर ली। सूरज का पहला जन्मदिन आया तो सोनिका ने पूरा घर फूलों और गुब्बारों से सजाया और शाम को केक काटते वक्त अपनी कलाई पर रूमाल बांधे सूरज के नज़दीक खड़ी रही। सूरज ने गंभीरता ना दिखाते हुए पूछा, “ये क्या नया फैशन है?”। सोनिका के हंस कर कहा, ये तुम्हारा बर्थ्डे गिफ़्ट है। सूरज ने उसका हाथ पकड़ रूमाल खोला तो देखा की सोनिका की कलाई पर पाँच इंच का टैटू बना था, एक तीर का निशान जिसपर ई॰सी॰जी॰ जैसी लाइन के मध्य में अंग्रेजी में ‘सूरज’ लिखा था और पीछे की तरफ दिल की आकृति थी। सोनिका की गोरी कलाई पर यह टैटू एक दम विस्मयादिबोधक लग रहा था। सूरज एक टक उसे निहारता रहा और फिर उसने सोनिका को बाहों में भर चूम लिया। शायद किसी के नाम का टैटू बनवाना इस युग में प्रेम की पराकाष्ठा बन गया है, अगर कोई किसी से बेइंतहा मोहब्बत करे तो उसका नाम अपने शरीर पर गुदवा ले। सोनिका भी अपने प्रेम को जाहिर करने का कोई और तरीक़ा ना ढूँढ पाई तो उसने सूरज का नाम अपनी कलाई कर अंकित करवा लिया। 

समय बीता और दोनों के बीच तल्खियाँ खूब बढ़ी। सूरज की माँ ने तानों का दंश देना शुरू किया और सोनिका की जाती पर प्रहार किये। सोनिका का भी सब्र का बांध जब टूट गया तो सूरज की माँ को खूब सुनाया। आए दिन दोनों की लड़ाई होने लगी। कभी सूरज घर नहीं आता तो कभी सोनिका अपनी सहेलियों के घर रात बिताने को मजबूर हो जाती। दोनों ने एक दूसरे पर खूब लांछन लगाए। जहां सोनिका ने सूरज के सभी रिश्तेदारों को फोन कर उसकी नामर्दगी के परचम बुलंद किए वहीं सूरज ने सोनिका के रिश्तेदारों को फ़ोन कर उसके मल्टिपल अफ़ेर्ज़ की चर्चा की। दोनों ने जम कर एक दूसरे को वाणी के प्रहारों से नग्न किया। सोनिका ने कहा की ये मुझे बच्चा ना दे सका, वहीं सूरज ने कहा की इसमें लेश मात्र भी वफ़ा नहीं। आखिरकार एक दूसरे के फोन रिकॉर्ड किए गए, चोरी छिपे मेसिज पढ़े गये और पैसों को ले कर दोनों ने एक दूसरे पर खूब तंज कसे। नौबत तलाक तक आ गयी, आपसी रजामंदी से दोनों ने तलाक की अर्जी अदालत में लगा दी। 

तलाक लगभग मंज़ूर हो ही गया और सोनिका ने अपना ट्रांसफर जैसलमेर ले लिया। अब उसको अपनी कलाई फिर छुपानी पड़ती थी क्योंकि पूरे बैंक में उसने कह दिया था कि मैं डिवोर्सी हूँ। उसने कलाई पर फिर से रूमाल बांधना शुरू कर दिया था। वह जब भी अपने हाथ पर सूरज का नाम देखती तो गुस्से से लाल हो जाती, जैसे वो अपनी ज़िंदगी की किताब से यह प्रष्ठ ही निकाल देना चाहती हो। मन ही मन सोचती कि मैं भी कितनी नादान थी जो कुछ भी ना समझ पाई।  

कुछ रोज़ उपरांत जैसलमेर में प्रसिद्ध मेला लगा। इस मेले में देश विदेश के अनेकों कलाकार आते और अपनी कला का प्रदर्शन करते। सोनिका अपने सह कर्मचारियों के विशेष आग्रह पर एक शाम उनके साथ मेला देखने गयी। बेल्जियम के कुछ टैटू कलाकार भी उस मेले में आए हुए थे, उन्होंने अपने टेंट बहुत ही  खूबसूरत ढंग से सजाए थे। शाम को उनके टेंट की छटा देख पर्यटक अपने आप को उनमें दाखिल होने से रोक ना पाते, और सहज ही लोग उन टेंटों की तरफ़ खिचे चले आते। उनकी ख्याति देख सोनिका ने ऐसे ही एक टेंट में दस्तक दी। यह मैक्सवेल नामक प्रसिद्ध टैटू आर्टिस्ट का टेंट था। मैक्सवेल ने सिर्फ़ बरमूडा पहना हुआ था और उसकी छाती, बाजू और पीठ पूरी टैटू से गुदी हुई थी, मानों उसका जन्म ही टैटू करने के लिए हुआ हो। टेंट में एक भीनी-भीनी खुशबू वाली अगरबत्तियाँ जल रही थी। ऐसे में सोनिका ने काम चलाऊ अंग्रेज़ी में मैक्सवेल को समझाते हुए अपनी कलाई दिखाई और बोली, “कैन यू इरेज़ दिस?” मैक्सवेल ने कुछ क्षण गौर से देखा और बोला, “आइ कैन इरेज़ दिस विद अनदर टैटू ओवर दिस”। सोनिका ने सहज ही पूछा, “आर यू शोर?” मैक्सवेल ने बड़े ही आत्मविश्वास से जवाब दिया, “पास्ट कैन बी ओवर-शैडोड बाई फ़्यूचर, ‘सूरज’ विल डिसअपियर इंटू यू एंड न्यू फ़्लावर्ज़ विल ब्लूम”। इतना कह वो मुस्कुराने लगा। सोनिका ने अपना हाथ उसको थमा दिया और समर्पण की मुद्रा में वहीं स्टूल पर बैठ गयी। 

मैक्सवेल ने भी उसका हाथ ऐसे थामा जैसे कोई जीवन का महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट उसके हाथ लगा हो। उसने एक फूलों का गुलदस्ता रूपी फोटो अपने लैपटॉप पर निकाला और सोनिका के हाथ की पैमाइश कर उसको उसी हिसाब का कम्प्यूटर पर एडजस्ट किया। फिर प्रिंटाऊट निकाल सोनिका की कलाई पर ट्रेस करना शुरू किया। उधर मैक्सवेल फूलों को सोनिका की कलाई पर ट्रेस कर रहा था और इधर सोनिका की मोटी मोटी आँखों से अश्रुधारा फूट पड़ी, जैसे वो पुराने दिन उसकी आँखों के सामने फ़िल्म की भाँति चल रहे हों। कैसे उसने बड़े गुमान से सूरज का नाम लिखवाया था और आज कैसे सबसे छुपते-छुपाते हुए इसको मिटवा रही हूँ। वक्त का शायद यहीं फेर है, सबको सब कुछ नहीं मिलता। 

अब मैक्सवेल ने ट्रेस करी हुई आकृति पर रंग भरने शुरू किए। सोनिका को जैसे आभास तो हो रहा था पर उसका शरीर कुछ भी महसूस नहीं कर पा रहा था, मानों वह बर्फ की बन गई हो। कितना भी दर्द हो पर ‘तेरे नाम का टैटू मिटाना है’ यहीं उसके जीवन का आखिरी मक़सद बन कर रह गया हो।मैक्सवेल रंग भारता रहा और क़रीब तीन घंटे की मशक्कत के बाद सोनिका की पूरी कलाई पर एक खूबसूरत रंग बिरंगा फूलों का गुलदस्ता सज चुका था, सूरज के नाम वाले टैटू के कहीं नामों निशान बाक़ी ना थे, तीर की वो डंडी अब फूल की डाली बन चुकी थी, सूरज नाम कहीं पीले फूल के नीचे समा चुका था, दिल की आकृति ने लाल रंग की कली का रूप ले लिया था। मानों जैसा मैक्सवेल ने कहा था बिल्कुल वैसा ही हुआ हो, सूरज जैसे सोनिका में ही कहीं खो गया, नए टैटू के उभरने पर कतरा-कतरा वो जैसे सोनिका के खून में समा गया। मानो वो उसके भीतर है भी पर दिखाई कहीं नहीं देगा, जैसे वो उसकी आत्मा में ही  मिल गया हो और इस विलक्षण मेल से कुछ चुनिंदा फूलों का जन्म हुआ हो। सूरज सोनिका को बच्चा तो ना दे सका पर जैसे ये फूल ही उनके ही बच्चे हों और सोनिका सूरज से वफ़ा ना कर के भी अमर प्रेम कथा लिख रही हो। 

सोनिका आईने में बार बार अपने हाथ को निहार रही थी, मानो वो उन फूलों के बीच सूरज को ही ढूँढ रही हो। उसके दिल में एक तरफ़ गुमान भी था तो बयान ना करने वाली पीड़ा भी थी। ये बिलकुल ऐसा ही था जैसे मिट्टी के किसी पुतले में उसने ही जान फूंकी हो और उसी ने उसका क़त्ल भी किया हो। रात के करीब ग्यारह बज रहे थे, और मैक्सवेल के टेंट में रेडीओ पर बहुत ही धीमी आवाज में एफ॰एम॰ बज रहा था, उस पर आबिदा परवीन की आवाज में गाना चल रहा था – “एक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है; सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है।“ सोनिका की आँखों में नमी अब भी थी। मैक्सवेल ने कहा, “कम हेयर मेम, लेट्स हेव आ पिक, आइ ऑल्वेज़ क्लिक पिक विद माई क्लाइयंट। आई कीप माय मेमोरी इंटैक्ट”। इतना कह उसने अपना कैमरा सेट किया, टाइमर लगाया और ठीक सोनिका के साथ खड़ा हो गया। सोनिका ने भी अपना हाथ कैमरा की तरफ़ किया ताकि टैटू साफ दिख सके। मैक्सवेल के चेहरे पर जंग जीतने वाले भाव थे, जैसे सोनिका उसके लिए कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक जीती हुई ट्रॉफी हो। मैक्सवेल ने कैमरे की तरफ़ देखते हुए कहा “स्माइल”, सोनिका ने मुस्कुरा दिया। होठों पर मुस्कुराहट और आँखों में नमी की विहंगम निशानी कैमरे के अंदर कैद हो गयी।           

 (इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं, उनका जीवित और मृत किसी भी व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है।) 

-    जगदीप सिंह मोर