'Scrapbook of my Thoughts' is a platform to share my views on things happening around me. I try to express my ideas, opinions, feelings and emotions candidly. All my creations are purely for my happiness and fulfilment. Read, enjoy and move on. Share if you like!

Saturday, December 16, 2023

बेअसर होते एग्जिट पोल

 बेअसर होते एग्जिट पोल


देश के चार बड़े राज्यों के चुनाव एवं उनके परिणाम बहुत कुछ सीख देने वाले हैं। ज्यादातर एग्ज़िट पोल्ज़ जनता के मूड को भांपने में विफल रहे। इस सब से राजनीतिक पंडितों को बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है। टी॰वी॰ पर आने वाले डिज़ाइनर पत्रकार भी सच से कोसों दूर दिखाई दिए।

इस परिणाम से यह बात बिल्कुल साफ रूप से कही जा सकती है कि एग्ज़िट पोल्ज़ के पुरातन फ़ॉर्म्युला को बदलने का उचित समय आ गया है। ज्यादातर एग्ज़िट पोल्ज़ संपलिंग पद्धति एवं थर्ड पार्टी आउट्सॉर्सिंग का उपयोग करते हैं। इसमें परिणाम तभी सटीक आते हैं जब संपलिंग में सत्य डाटा जुटाया जा सके। परंतु आज के इस तकनीकी युग में सत्य डाटा जुटा पाना इतना सरल नहीं है। आज से क़रीब एक दशक पहले तक चुनावी विशेषज्ञ गाँव, कस्बे, मोहल्ले के नाम से यह बता दिया करते थे की वहाँ किसके पक्ष में वोटिंग होगी। कुछ क्षेत्र तो एक पार्टी विशेष के गढ़ के रूप में प्रसिद्ध होते थे। वहाँ से सिर्फ़ अमुख पार्टी ही जीतेगी यह पूर्वानुमान होता था। परंतु आज ऐसा नहीं है, आज का सामान्य वोटर भी स्मार्ट वोटर बन गया है। जब से हर हाथ में इंटर्नेट युक्त मोबाइल आया है, तब से जनमानस के दिल की बात जान पाना इतना आसान नहीं रह गया है। वोटर किसको वोट दे कर आए हैं, यह बात एक ऑनलाइन सर्वे द्वारा खोज पाना जटिल कार्य है, क्यूँकि वोटर सत्य को इतनी सरलता से उजागर नहीं करता। आज के परिपेक्ष में जनता किसी को भी नाराज़ करना नहीं चाहती। दोनों प्रमुख पार्टियों की रैलियों में भीड़ बराबर ही होती है, चुनाव से पहले यह स्पष्ट हो पाना की कौन जीत रहा है बहुत मुश्किल होता है। 

प्रमुख उम्मीदवारों के शामियानों में जमघट लगा ही रहता है, आम जनता दोनों ओर की पूड़ी-सब्ज़ी जम कर छकती है। परंतु वोट किसे देना है इसका ज़रा भी आभास नहीं होने देती। ख़ास कर महिलाओं का वोट बहुत शांत होता है परंतु चोट बहुत जोर की करता है।      

यह बात छत्तीसगढ़ एवं तेलंगाना के संदर्भ में समझी जा सकती है। जहां छत्तीसगढ़ में कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी एवं बस्तर जैसे क्षेत्र में पिछली बार बारह में से ग्यारह सीट जीती थी। इस बार भी रैलियों में भीड़ कम ना थी परंतु तीन सीटों पर ही सिमट कर रहना पड़ा वहीं हैदराबाद में अगर प्रधान मंत्री के रोड शो की बात करें तो ऐसा लग रहा था जैसे अबकी बार भा॰जा॰पा॰ कुछ करिश्मा कर ही देगी परंतु वहाँ कांग्रेस को मजबूती मिली। 

इन एग्ज़िट पोल्ज़ ने यह सिद्ध कर दिया कि ऐ॰सी॰ स्टूडियो में बैठ कर जनता का मन नहीं पढ़ा जा सकता। इन चुनावों ने ज़मीनी पत्रकारों का क़द बहुत ऊँचा कर दिया है, क्षेत्रीय अख़बारों ने जो रिपोर्टिंग करी उसका कोई विकल्प नहीं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के लोकल अखबारों एवं पत्रकारों की जितनी भूरी भूरी प्रशंसा की जाए उतनी कम है, क्यूँकि सिर्फ़ वो ही जनता से संवाद कर पाए। ज़मीन पर काम करने वाले पत्रकार ही जनता के मन की बात टटोल पाए तथा असल अंक संख्या के क़रीब पहुँच पाए।

यह बात तो अब स्पष्ट है कि 2024 का चुनाव बहुत मनोरंजक होने वाला है। एग्ज़िट पोल्ज़ करने वाली संस्थाओं के सामने अपनी साख बचाने की चुनौती होगी। उनको या तो अपने आप को अधिक वैज्ञानिक बनाना होगा या फिर अट्टहास का कारण बनना होगा। 

- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

Wednesday, September 13, 2023

सच्चिदानंद है सनातन


        सच्चिदानंद है सनातन

आजादी के इस अमृत काल में जहां भारत एक ओर चाँद की ऊँचाइयों को छू रहा है वहीं दूसरी तरफ़ कुछ लोग भारत की अखंड विरासत एवं संस्कृति ‘सनातन’ को ही मिटाने की बात कर रहे हैं। पूरे विश्व में सिर्फ़ सनातन ही वो सभ्यता है जो अब तक जीवित है बाक़ी सभी पुरातन सभ्यताएँ तो धरातल के गर्भ में कबकि समा चुकीं हैं। अनंत काल से इस सभ्यता को बाहरी एवं भीतरी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। आज भी वही चुनौतियाँ ज़िंदा है, एक तरफ़ जहां हमारे पड़ोसी मुल्क इस देश के टुकड़े होते देखने का सपना बुनते हैं वहीं श्री स्टालिन उनके पुत्र श्री उदयगिरि उनके मंत्री श्री ए॰ राजा द्वारा सनातन के खात्मे के लिए दिए बयान कुछ ऐसी ही चिंताजनक बातें हैं। 

जो लोग सनातन को जानते ही नहीं वे ही ऐसी बचकानी बातें कर सकते हैं, यह उतना ही हास्यास्पद है जैसे विज्ञान को ना जानने वाला व्यक्ति नैनो तकनीक और नैनो कार का भेद नहीं समझ पता। जबसे यह बयान आया है तब से देश को प्यार करने वाले हर व्यक्ति ने अपनी नाराज़गी मुखर स्वर में दर्ज करवाई है। 

पंत एवं सम्प्रदाय विशेष को जानने के लिए उसके कर्म कांड को जान लो तो काम चल जाता है। पंत एवं सम्प्रदाय के अनुयायी इसी कर्म कांड द्वारा अपने अपने पंत एवं सम्प्रदाय को ऊंचा बताने में लगे रहते हैं। इस धरती के सभी पंत एवं सम्प्रदाय किसी ना किसी निर्धारित काल खंड में रचे गए और उनकी प्रगति की धारा को व्यक्ति विशेष से जोड़ा जा सकता है तथा समय रेखा पर उकेरा जा सकता है। किंतु सनातन एक ऐसी जीवन धारा है जिसका ना आदि है ना अंत। सनातन को समझने के लिए धर्म की परिभाषा को समझना होगा। अक्सर लोग धर्म को अंग्रेज़ी के शब्द रिलिजन के जोड़ देते हैं, किंतु धर्म रिलिजन से कहीं विस्तृत है। आसान भाषा में कहा जाए तो धर्म वह है जो अनंत सच है, जो परिस्थिति के काल में न्याय है, जो तार्किक है, जो चेतन को जड़ता के बोध से अलग करता है, धर्म जीवन जीने की मर्यादा है। व्यक्ति कोई भी हो धर्म सुदृढ़ है, धर्म वह संभल है जो परिस्थितियों से लड़ने में मदद देता है। यही सनातन धर्म, भाषाई अपभ्रंश के कारण कभी सिंधु धर्म के नाम से जाना गया तो कभी हिन्दू धर्म के नाम से विख्यात हुआ। उत्तर में विशाल हिमालय से ले कर दक्षिण में महासागर तक के बीच की धरती का यह भाग भारतवर्ष इसी महान सनातन धर्म के कारण आज तक कालजयी बना रहा है। 

सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, निरंतर हो, जो जन्म और मृत्यु से परे हो, जो मनुष्य उत्पत्ति से भी प्राचीन हो, सनातन मनुष्य मात्र का धर्म नहीं वरन सृष्टि की नियमावली है। सनातन ही शिव है, सनातन सच्चिदानंद है, यह तो वह अविरल धारा है, जिसके अनुसरण से मनुष्य कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होता है। सनातन समय की कसौटी पर खरा उतरा वह गुलदस्ता है जिसने काल की असंख अच्छाइयों को अपने अंदर समा लिया। इतनी समावेशी विचारधारा धरा पर कहीं देखने को नहीं मिलती। जहां दूसरे पंत एवं सम्प्रदाय अपनी हज़ारों वर्षों की जड़ताओं में जकड़े हुए हैं और लेश मात्र भी प्रगतिशील नहीं होना चाहते वहीं सनातन ने अपने अनुयायियों को खुला आसमान मुहैया करवाया। सनातन में कोई भी मनुष्य किसी भी एक विचारधारा का गुलाम नहीं हुआ। सबको अपने तरीके से अपने सच्चिदानंद तक पहुँचने की छूट दी। शिव, विष्णु, शक्ति, राम, कृष्ण, देवी, देवता, मनुष्य, पितर, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नर, नारी, पशु, अर्ध पशु, वृक्ष, पक्षी, प्रकृति सबको पूजने या माध्यम बनाने की छूट देने वाला है सनातन। पिछले कुछ हज़ार साल के इतिहास पर अगर नजर डालें तो पेगान, बुद्ध, जैन, इस्लाम, यहूदी, पारसी, ईसाई, सिख एवं अनेकों पंतों को मानने वाले जैसे साईं बाबा इत्यादि को चुन चुन कर मनोहर फूल की भाँति अपने गुलदस्ते में पिरोने वाला सनातन आज कुछ लोगों को चुभ रहा है। सनातन ने तो चार्वाकों, नास्तिकों, तांत्रिक एवं वामपंथियों को भी उचित स्थान दिया। ऐसी समावेशी जीवन शैली को मिटाने की बात करना कुछ गहरी साजिश की तरफ इशारा है। 

श्री स्टालिन का कहना है कि वे जातिवाद पर प्रहार कर रहे थे। कोई उनसे पूछे कि जातिवाद का खंडन करते हुए बौद्ध धर्म आया पर क्या बुद्ध बने नागरिकों में जातिवाद खत्म हो गया? इस्लाम ने बहुएकवाद का डंका बजाया, परंतु उसमें अनेक पंत उत्पन्न हो गए मसलन शिया, सुन्नी, अहमदिया, मेव इत्यादि क्या यह सब एक समान हैं? इनमें तो खुद लड़ाई हैं। ईसाइयों में अपने मसले हैं, कोई खुद को उच्च का ईसाई बताता है तो किसी को निम्न दृष्टि से देखतें हैं। जातिवाद एक राजनीतिक उत्पत्ति है, इसमें अर्थ के अवगुण भी समाहित हैं। जातिवाद को तोड़ना है को शिक्षा पर पुरज़ोर निवेश करना होगा, आर्थिक सशक्तिकरण ही एकमात्र साधन है जो इन विषमताओं को तोड़ पाएगा। परंतु ये राजनेता समाज में सौहार्द बनाना नहीं चाहते, अपने चुनावी कारणों के चलते समाज को बाँटना इनकी मजबूरी हो जाता है।              

‘टु अबॉलिश सनातन’ ऐसे आयोजन करना ही एक बड़े अनुसंधान की ओर इशारा है। एक पल के लिए मान लो कि सनातन नहीं है, फिर क्या यह लोग वहीं तक रुक जाएंगे? इस रिक्त स्थान को भरने के लिए क्या आसमानी किताब को लाया जाएगा या परमेश्वर के साम्राज्य के सिद्धांत का अनुकरण किया जाएगा या फिर कार्ल मार्क्स की दास कैपिटल इनकी नई नियमावली होगी? 

लोगों को यह समझना होगा कि सनातन तो मनुष्य की उत्पत्ति से पहले भी था वो तो उसके बाद भी रहेगा। परंतु क्या सनातन ने बिना मनुष्य मात्र को कोई अस्तित्व रह जाएगा? क्या मनुष्य खुद अपने पाँव में बेड़ियाँ पहनने को स्वीकार करेगा? सनातन धर्म को खत्म करने की बात करना शायद मनुष्य मात्र के खात्मे की बात करने जैसा ही है। परंतु इस जीवित संस्कृति को मिटाना इतना आसान नहीं होगा। मशहूर कवि इक़बाल का यह पंक्तियाँ इस दौर में सटीक बैठती हैं-“यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा, कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमां हमारा, सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा”।

- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद 

Friday, August 4, 2023

चंद्रयान तृतीय

देश का गौरवदेश का मान – चन्द्रयान

 

-    जगदीप सिंह मोरशिक्षाविद  

 

इतिहास गवाह है कि चाँद को अपनी ख़ूबसूरती पर हमेशा से ही गुमान रहा है। चाँद को पाने की चाह सभी ने की किंतु इसे पाना सब के नसीब में नहीं। दुनिया के हर महान देश ने चाँद तक पहुँचने की अनेकों पुरज़ोर कोशिश करीं पर सफलता बहुत कम देशों को ही प्राप्त हुईं। भारत उन चुनिंदा देशों में से है जिसने अपनी पहली ही कोशिश में चाँद को पा लिया।  


2008 में चंद्रयान-प्रथम की प्रचंड सफलता ने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के पटल पर विश्व के अग्रणी देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। चन्द्रयान-प्रथम ने अपने कम बजट के लिए खूब सुर्खियां बटोरी। ऑटो से भी कम किराए में चाँद तक का सफ़र करने वाला यह अपने आप में इकलौता हरफ़नमौला बना। यद्यपि यह अपने निर्धारित कार्यकाल से पूर्व ही ब्लैक आउट हो गया पर अपनी कम उम्र में भी करामाती बन गया। नासा जैसी विश्व विख्यात संस्था ने भी चन्द्रयान-प्रथम का लोहा माना एवं अंतरिक्ष मानचित्र पर इसरो का परचम बुलंद किया। 


2019 में चंद्रयान-द्वितीय प्रक्षेपण के समय पूरे देश का उत्साह चर्म पर थास्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इसरो मुख्यालय में मौजूद थे। सारा देश टकटकी लगाए टेलिविज़न सेट पर नज़रें गड़ाए बैठा था। परंतु चंद्रयान-द्वितीय की लैंडिंग असफल रहीरोवर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर पाया एवं वेग से गिरने के कारण मानकों पर सही नहीं बैठा और चंद्रमा की अंधेरी गहराइयों में कहीं खो गया। उस समय के प्रमुख श्री के॰ सिवान अपनी भावुकता संभाल नहीं पाए और प्रधानमंत्री के गले लग अपना अश्रु बाँध तोड़ दिया। यह कोई साधारण पल नहीं थाजिसने भी वह वीडियो देखा वह अपने आप को रोक नहीं पाया और ख़ुद भी भावुक हो गया। चन्द्रयान-प्रथम से चंद्रयान-द्वितीय तक के मिशन पर इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी ज़िंदगी के बहुमूल्य ग्यारह साल दिए। 3 लाख 80 हज़ार किलोमीटर के सफ़र पर निकला चंद्रयान-द्वितीय महज़ दो किलोमीटर पीछे रह कर असफलता के अंधेरों में खो गया। यह बात बताती है कि कामयाबी के लिए 99 सही कदम उठाने के बाद भी अगर आपका आख़िरी क़दम ग़लत पड़ जाए तो आप असफ़ल हो जाते हैं। पूरी दुनिया आपसे असफलता भुलाकर आगे बढ़ने के लिए कहती हैपर उनकी हर बात बेमानी सी लगती है। दुनिया आपको अपनी मेहनत में सकारात्मकता ढूँढने को कहने लगती हैमगर वो आखिरी क़दम का लड़खड़ाना आपको टीस देता रहता है। श्रीमान सिवान का भावपूर्ण हो जाना यह दिखाता है कि उन्होंने मेहनत की थी। इस तरह भावुकता तभी आती है जब व्यक्ति पूर्ण निष्ठा के साथ एक स्वप्न देखता हैएवं उसे साकार करने के लिए पुरज़ोर मेहनत करता है। परंतु जब वह स्वप्न अंतिम क्षणों में बिखर जाता है तब दिल की भावना आँखों के रास्ते बाहर आ जाती हैं। 


ऐसे में 2023 में चंद्रयान-तृतीय से देश को कितनी उम्मीदें होंगी इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। आज इसरो के वैज्ञानिक हर उस भारतीय युवा के पर्याय हो गए जिसने बड़े सपने देखने की ज़रूरत की और फेल हुएपरंतु हौसला नहीं खोया और गिरने के बाद पुनः खड़े हुए एवं फिर आसमान में छेद करने का प्रण किया। गोपाल दास नीरज की यह पंक्तियाँ आज अमर हो गयी – “छिप-छिप अश्रु बहाने वालोंमोती व्यर्थ बहाने वालोंकुछ सपनों के मर जाने सेजीवन नहीं मरा करता है या यूँ कहें कि चाँद का दीदार जिसने एक बार कर लिया होउसको पाने की चाहत कितनी प्रबल होगी ये तो वो शक्स ही समझ सकता है। ऐसे में नाकामी एक जुनून बन कर उभरती है। चंद्रयान-तृतीय पर इसरो द्वारा की गई मेहनत मानो वैज्ञानिक चाँद से आँखों में आँखें डाल कह रहे हों कि तू मेरा शौक़ देखमेरा इंतिज़ार देख। इस बार वैज्ञानिक कोई भी गलती नहीं कर सकते। उन्होंने बेहिसाब परिश्रम कर आधुनिक तकनीकों द्वारा यह कृतिम उपग्रह तैयार किया। चन्द्रयान चाँद की सतह पर 23 अगस्त 2023 को लैंडिंग करेगा। पिछली असफलता के कारण इस बार इसरो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगा। चाँद इस बार भारत के प्यार को अपनाएगा या ठुकराएगा यह राज तो वक्त के गर्भ में ही छिपा है।

परंतु यह बात अपने आप में अतिशयोक्ति है कि अपनी आज़ादी के महज 75 साल में भारत अनेकों चुनौतियों से जूझता हुआ एक भविष्यवादी वैज्ञानिक सोच वाला देश बन कर उभरा। ऐसे अनुसंधान करना एवं उनका प्रक्षेपण हर भारतवासी को गौरवान्वित करता है। कई दशकों तक गरीबी का दंश झेलते हुए भी भारत ने इसरो जैसे प्रतिष्ठित संस्थान स्थापित किए यह अपने आप में गर्व का विषय है। वीर भोग्या वसुंधरा’ से कहीं आगे निकलते हुए हमारे वैज्ञानिक वीर भोग्या ब्रह्मांड’ के सिद्धांत को चरितार्थ कर रहें हैं।  

चंद्रयान-तृतीय चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा एवं अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियाँ जमा करेगा। चंद्रमा पर पानी है या नहीं, जीवन संभव है या नहीं? चंद्रमा की गति का धरती पर क्या असर होता है एवं चंद्रमा से सौरमंडल का क्या विस्तार है? इस तरह की अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियाँ यह उपग्रह साझा करेगा। भविष्य में यह जानकारियाँ भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण मानवजाति के लिए वरदान साबित होंगी। हम ना केवल चाँद को क़रीब से जानेंगे अपितु धरती एवं सौरमंडल को भी और अच्छे से जान पाएँगे। चंद्रयान-तृतीय का सफल हो जाना भविष्य के नवीन आयाम खोलेगा, इसरो जापान, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका एवं रूस के साथ भविष्य में संयुक्त अनुसंधान करने की प्रबलता रखेगा एवं सम्पूर्ण दुनिया का परिचय चंद्रमा से करवाने की संभावनाएं प्रबल करेगा। भविष्य में चाँद पर मानव को भेजना भी इसरो की अनेकों योजनाओं में से एक है।   

भारत की चंद्र यात्रा किसी जातक कथा से कम नहीं, ‘नानी माँ चाँद पर चरखा कात रही है’, बच्चों की कहानियों से ले कर चाँद पर यान उतार देना अपने आप में जादुई लगता है। देखना यह होगा की क्या वाकई चाँद महबूब जितना खूबसूरत है एवं उसके दाग असली हैं या नहीं? 23 अगस्त को चंद्रयान तृतीय जब चाँद की सतह पर चुम्बन देगा तब शायद मशहूर कवि इंदीवर की ये पंक्तियां ही गुनगुनाएगा - ‘ऐ रात जरा थम-थम के गुजर, मेरा चाँद मुझे आया है नज़र’!  

Thursday, April 6, 2023

तेरे नाम का टैटू भी मिटाना है




तेरे नाम का टैटू भी मिटाना है  

पंजाब के फाजिल्का के एक छोटे से कस्बे में जन्मे सूरज और सोनिका को भाग्य ने मिलवाया भी और अलग भी किया। सूरज के पिता अपने इलाके के एक जाने माने उच्च कुल में जन्मे व्यापारी थे, रातिब (पशुधन चारा) की दुकान से शुरू कर एक फैक्ट्री के मालिक तक का सफ़र उन्होंने जल्द ही पूरा किया। प्रतिस्पर्धा में सबको पीछे छोड़ कामयाबी के शिखर तक पहुँचे। इकलौते बेटे सूरज ने कभी अभाव नहीं देखा। परंतु पंजाब की पृष्ठभूमि ही कुछ ऐसी है यहाँ बैंक लोन से ज़्यादा आपसी उधार एवं ब्याज पर पैसे का लेन देन चलता है, जल्दी ही सूरज के पापा भी इसी झमेले में उलझ गए और फ़ैक्टरी की कुर्की की नौबत आ गयी। दिन बिगड़े और पिता जी के देहावसान के पश्चात सूरज और उसकी माँ को सब कुछ बेच कर शहर ही छोड़ना पड़ा। 

वहीं सोनिका के पिता एक मध्यमवर्गीय कर्मी थे, जाती व्यवस्था को तोड़ अपनी बेटियों को पढ़ाया और मेहनत कर उन को स्वावलंबी बनाया। स्कूली पढ़ाई पूरी कर सोनिका ने बैंक का इम्तिहान पास कर सरकारी नौकरी प्राप्त की और जल्द ही पदोन्नति भी पाई। सोनिका स्वभाव से ही चंचल और मोहक मुस्कान की धनी थी, ऐसा कोई ना होता जो उसकी मुस्कान पर ना मर मिटता। 

सोनिका को मुरादाबाद में पोस्टिंग मिली और एक लड़के से उसकी दोस्ती हो गयी, कुछ साल साथ रहने के बाद भी उनकी शादी ना हो सकी और दोनो अलग हो गए। वहीं सूरज ने भी दिल्ली आ हर इल्म में हाथ आज़माए। सूरज छह फूट तीन इंच लम्बा, भरपूर बदन वाला हट्टा-कट्टा पंजाबी मुंडा था, जो जीवन को आज में जीता और कल की चिंता नहीं करता था। कॉल सेंटर की नौकरी, नाइट शिफ्ट में काम किया, कभी फ़ोटोग्राफ़ी की, कभी सॉफ़्ट्वेर भी लिखे। हर काम में हुनर हासिल कर उसने अपना एक अलग मुकाम बनाया और पैसा भी। गुरुग्राम में रह उसने अपना फ़्लैट ख़रीदा और हर वो चीज़ हासिल की जिसकी उसको हसरत थी। 

समय ने अपना चक्र घुमाया और फाजिल्का के एक कॉमन दोस्त ने सूरज का परिचय सोनिका से करवाया। दोनों ने पाया कि वे एक ही स्कूल में पढ़े थे और एक दूसरे को जानते हैं, सूरज ने एक बार फिर अपने आप को अपनी सरजमीं के क़रीब पाया। वह मन ही मन बहुत हर्षित हुआ। सोनिका को भी सूरज किसी अपने जैसे लगा, दोनों में बहुत कुछ एक जैसा था। सोनिका उस से घंटों बात करती और बेहद खुश थी। जल्द ही दोनो में प्यार हुआ और उन्होंने शादी कर ली। सूरज का पहला जन्मदिन आया तो सोनिका ने पूरा घर फूलों और गुब्बारों से सजाया और शाम को केक काटते वक्त अपनी कलाई पर रूमाल बांधे सूरज के नज़दीक खड़ी रही। सूरज ने गंभीरता ना दिखाते हुए पूछा, “ये क्या नया फैशन है?”। सोनिका के हंस कर कहा, ये तुम्हारा बर्थ्डे गिफ़्ट है। सूरज ने उसका हाथ पकड़ रूमाल खोला तो देखा की सोनिका की कलाई पर पाँच इंच का टैटू बना था, एक तीर का निशान जिसपर ई॰सी॰जी॰ जैसी लाइन के मध्य में अंग्रेजी में ‘सूरज’ लिखा था और पीछे की तरफ दिल की आकृति थी। सोनिका की गोरी कलाई पर यह टैटू एक दम विस्मयादिबोधक लग रहा था। सूरज एक टक उसे निहारता रहा और फिर उसने सोनिका को बाहों में भर चूम लिया। शायद किसी के नाम का टैटू बनवाना इस युग में प्रेम की पराकाष्ठा बन गया है, अगर कोई किसी से बेइंतहा मोहब्बत करे तो उसका नाम अपने शरीर पर गुदवा ले। सोनिका भी अपने प्रेम को जाहिर करने का कोई और तरीक़ा ना ढूँढ पाई तो उसने सूरज का नाम अपनी कलाई कर अंकित करवा लिया। 

समय बीता और दोनों के बीच तल्खियाँ खूब बढ़ी। सूरज की माँ ने तानों का दंश देना शुरू किया और सोनिका की जाती पर प्रहार किये। सोनिका का भी सब्र का बांध जब टूट गया तो सूरज की माँ को खूब सुनाया। आए दिन दोनों की लड़ाई होने लगी। कभी सूरज घर नहीं आता तो कभी सोनिका अपनी सहेलियों के घर रात बिताने को मजबूर हो जाती। दोनों ने एक दूसरे पर खूब लांछन लगाए। जहां सोनिका ने सूरज के सभी रिश्तेदारों को फोन कर उसकी नामर्दगी के परचम बुलंद किए वहीं सूरज ने सोनिका के रिश्तेदारों को फ़ोन कर उसके मल्टिपल अफ़ेर्ज़ की चर्चा की। दोनों ने जम कर एक दूसरे को वाणी के प्रहारों से नग्न किया। सोनिका ने कहा की ये मुझे बच्चा ना दे सका, वहीं सूरज ने कहा की इसमें लेश मात्र भी वफ़ा नहीं। आखिरकार एक दूसरे के फोन रिकॉर्ड किए गए, चोरी छिपे मेसिज पढ़े गये और पैसों को ले कर दोनों ने एक दूसरे पर खूब तंज कसे। नौबत तलाक तक आ गयी, आपसी रजामंदी से दोनों ने तलाक की अर्जी अदालत में लगा दी। 

तलाक लगभग मंज़ूर हो ही गया और सोनिका ने अपना ट्रांसफर जैसलमेर ले लिया। अब उसको अपनी कलाई फिर छुपानी पड़ती थी क्योंकि पूरे बैंक में उसने कह दिया था कि मैं डिवोर्सी हूँ। उसने कलाई पर फिर से रूमाल बांधना शुरू कर दिया था। वह जब भी अपने हाथ पर सूरज का नाम देखती तो गुस्से से लाल हो जाती, जैसे वो अपनी ज़िंदगी की किताब से यह प्रष्ठ ही निकाल देना चाहती हो। मन ही मन सोचती कि मैं भी कितनी नादान थी जो कुछ भी ना समझ पाई।  

कुछ रोज़ उपरांत जैसलमेर में प्रसिद्ध मेला लगा। इस मेले में देश विदेश के अनेकों कलाकार आते और अपनी कला का प्रदर्शन करते। सोनिका अपने सह कर्मचारियों के विशेष आग्रह पर एक शाम उनके साथ मेला देखने गयी। बेल्जियम के कुछ टैटू कलाकार भी उस मेले में आए हुए थे, उन्होंने अपने टेंट बहुत ही  खूबसूरत ढंग से सजाए थे। शाम को उनके टेंट की छटा देख पर्यटक अपने आप को उनमें दाखिल होने से रोक ना पाते, और सहज ही लोग उन टेंटों की तरफ़ खिचे चले आते। उनकी ख्याति देख सोनिका ने ऐसे ही एक टेंट में दस्तक दी। यह मैक्सवेल नामक प्रसिद्ध टैटू आर्टिस्ट का टेंट था। मैक्सवेल ने सिर्फ़ बरमूडा पहना हुआ था और उसकी छाती, बाजू और पीठ पूरी टैटू से गुदी हुई थी, मानों उसका जन्म ही टैटू करने के लिए हुआ हो। टेंट में एक भीनी-भीनी खुशबू वाली अगरबत्तियाँ जल रही थी। ऐसे में सोनिका ने काम चलाऊ अंग्रेज़ी में मैक्सवेल को समझाते हुए अपनी कलाई दिखाई और बोली, “कैन यू इरेज़ दिस?” मैक्सवेल ने कुछ क्षण गौर से देखा और बोला, “आइ कैन इरेज़ दिस विद अनदर टैटू ओवर दिस”। सोनिका ने सहज ही पूछा, “आर यू शोर?” मैक्सवेल ने बड़े ही आत्मविश्वास से जवाब दिया, “पास्ट कैन बी ओवर-शैडोड बाई फ़्यूचर, ‘सूरज’ विल डिसअपियर इंटू यू एंड न्यू फ़्लावर्ज़ विल ब्लूम”। इतना कह वो मुस्कुराने लगा। सोनिका ने अपना हाथ उसको थमा दिया और समर्पण की मुद्रा में वहीं स्टूल पर बैठ गयी। 

मैक्सवेल ने भी उसका हाथ ऐसे थामा जैसे कोई जीवन का महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट उसके हाथ लगा हो। उसने एक फूलों का गुलदस्ता रूपी फोटो अपने लैपटॉप पर निकाला और सोनिका के हाथ की पैमाइश कर उसको उसी हिसाब का कम्प्यूटर पर एडजस्ट किया। फिर प्रिंटाऊट निकाल सोनिका की कलाई पर ट्रेस करना शुरू किया। उधर मैक्सवेल फूलों को सोनिका की कलाई पर ट्रेस कर रहा था और इधर सोनिका की मोटी मोटी आँखों से अश्रुधारा फूट पड़ी, जैसे वो पुराने दिन उसकी आँखों के सामने फ़िल्म की भाँति चल रहे हों। कैसे उसने बड़े गुमान से सूरज का नाम लिखवाया था और आज कैसे सबसे छुपते-छुपाते हुए इसको मिटवा रही हूँ। वक्त का शायद यहीं फेर है, सबको सब कुछ नहीं मिलता। 

अब मैक्सवेल ने ट्रेस करी हुई आकृति पर रंग भरने शुरू किए। सोनिका को जैसे आभास तो हो रहा था पर उसका शरीर कुछ भी महसूस नहीं कर पा रहा था, मानों वह बर्फ की बन गई हो। कितना भी दर्द हो पर ‘तेरे नाम का टैटू मिटाना है’ यहीं उसके जीवन का आखिरी मक़सद बन कर रह गया हो।मैक्सवेल रंग भारता रहा और क़रीब तीन घंटे की मशक्कत के बाद सोनिका की पूरी कलाई पर एक खूबसूरत रंग बिरंगा फूलों का गुलदस्ता सज चुका था, सूरज के नाम वाले टैटू के कहीं नामों निशान बाक़ी ना थे, तीर की वो डंडी अब फूल की डाली बन चुकी थी, सूरज नाम कहीं पीले फूल के नीचे समा चुका था, दिल की आकृति ने लाल रंग की कली का रूप ले लिया था। मानों जैसा मैक्सवेल ने कहा था बिल्कुल वैसा ही हुआ हो, सूरज जैसे सोनिका में ही कहीं खो गया, नए टैटू के उभरने पर कतरा-कतरा वो जैसे सोनिका के खून में समा गया। मानो वो उसके भीतर है भी पर दिखाई कहीं नहीं देगा, जैसे वो उसकी आत्मा में ही  मिल गया हो और इस विलक्षण मेल से कुछ चुनिंदा फूलों का जन्म हुआ हो। सूरज सोनिका को बच्चा तो ना दे सका पर जैसे ये फूल ही उनके ही बच्चे हों और सोनिका सूरज से वफ़ा ना कर के भी अमर प्रेम कथा लिख रही हो। 

सोनिका आईने में बार बार अपने हाथ को निहार रही थी, मानो वो उन फूलों के बीच सूरज को ही ढूँढ रही हो। उसके दिल में एक तरफ़ गुमान भी था तो बयान ना करने वाली पीड़ा भी थी। ये बिलकुल ऐसा ही था जैसे मिट्टी के किसी पुतले में उसने ही जान फूंकी हो और उसी ने उसका क़त्ल भी किया हो। रात के करीब ग्यारह बज रहे थे, और मैक्सवेल के टेंट में रेडीओ पर बहुत ही धीमी आवाज में एफ॰एम॰ बज रहा था, उस पर आबिदा परवीन की आवाज में गाना चल रहा था – “एक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है; सिमटे तो दिल-ए-आशिक़, फैले तो ज़माना है।“ सोनिका की आँखों में नमी अब भी थी। मैक्सवेल ने कहा, “कम हेयर मेम, लेट्स हेव आ पिक, आइ ऑल्वेज़ क्लिक पिक विद माई क्लाइयंट। आई कीप माय मेमोरी इंटैक्ट”। इतना कह उसने अपना कैमरा सेट किया, टाइमर लगाया और ठीक सोनिका के साथ खड़ा हो गया। सोनिका ने भी अपना हाथ कैमरा की तरफ़ किया ताकि टैटू साफ दिख सके। मैक्सवेल के चेहरे पर जंग जीतने वाले भाव थे, जैसे सोनिका उसके लिए कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक जीती हुई ट्रॉफी हो। मैक्सवेल ने कैमरे की तरफ़ देखते हुए कहा “स्माइल”, सोनिका ने मुस्कुरा दिया। होठों पर मुस्कुराहट और आँखों में नमी की विहंगम निशानी कैमरे के अंदर कैद हो गयी।           

 (इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं, उनका जीवित और मृत किसी भी व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है।) 

-    जगदीप सिंह मोर