बेअसर होते एग्जिट पोल
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Saturday, December 16, 2023
बेअसर होते एग्जिट पोल
Wednesday, September 13, 2023
सच्चिदानंद है सनातन
आजादी के इस अमृत काल में जहां भारत एक ओर चाँद की ऊँचाइयों को छू रहा है वहीं दूसरी तरफ़ कुछ लोग भारत की अखंड विरासत एवं संस्कृति ‘सनातन’ को ही मिटाने की बात कर रहे हैं। पूरे विश्व में सिर्फ़ सनातन ही वो सभ्यता है जो अब तक जीवित है बाक़ी सभी पुरातन सभ्यताएँ तो धरातल के गर्भ में कबकि समा चुकीं हैं। अनंत काल से इस सभ्यता को बाहरी एवं भीतरी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। आज भी वही चुनौतियाँ ज़िंदा है, एक तरफ़ जहां हमारे पड़ोसी मुल्क इस देश के टुकड़े होते देखने का सपना बुनते हैं वहीं श्री स्टालिन उनके पुत्र श्री उदयगिरि उनके मंत्री श्री ए॰ राजा द्वारा सनातन के खात्मे के लिए दिए बयान कुछ ऐसी ही चिंताजनक बातें हैं।
जो लोग सनातन को जानते ही नहीं वे ही ऐसी बचकानी बातें कर सकते हैं, यह उतना ही हास्यास्पद है जैसे विज्ञान को ना जानने वाला व्यक्ति नैनो तकनीक और नैनो कार का भेद नहीं समझ पता। जबसे यह बयान आया है तब से देश को प्यार करने वाले हर व्यक्ति ने अपनी नाराज़गी मुखर स्वर में दर्ज करवाई है।
पंत एवं सम्प्रदाय विशेष को जानने के लिए उसके कर्म कांड को जान लो तो काम चल जाता है। पंत एवं सम्प्रदाय के अनुयायी इसी कर्म कांड द्वारा अपने अपने पंत एवं सम्प्रदाय को ऊंचा बताने में लगे रहते हैं। इस धरती के सभी पंत एवं सम्प्रदाय किसी ना किसी निर्धारित काल खंड में रचे गए और उनकी प्रगति की धारा को व्यक्ति विशेष से जोड़ा जा सकता है तथा समय रेखा पर उकेरा जा सकता है। किंतु सनातन एक ऐसी जीवन धारा है जिसका ना आदि है ना अंत। सनातन को समझने के लिए धर्म की परिभाषा को समझना होगा। अक्सर लोग धर्म को अंग्रेज़ी के शब्द रिलिजन के जोड़ देते हैं, किंतु धर्म रिलिजन से कहीं विस्तृत है। आसान भाषा में कहा जाए तो धर्म वह है जो अनंत सच है, जो परिस्थिति के काल में न्याय है, जो तार्किक है, जो चेतन को जड़ता के बोध से अलग करता है, धर्म जीवन जीने की मर्यादा है। व्यक्ति कोई भी हो धर्म सुदृढ़ है, धर्म वह संभल है जो परिस्थितियों से लड़ने में मदद देता है। यही सनातन धर्म, भाषाई अपभ्रंश के कारण कभी सिंधु धर्म के नाम से जाना गया तो कभी हिन्दू धर्म के नाम से विख्यात हुआ। उत्तर में विशाल हिमालय से ले कर दक्षिण में महासागर तक के बीच की धरती का यह भाग भारतवर्ष इसी महान सनातन धर्म के कारण आज तक कालजयी बना रहा है।
सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, निरंतर हो, जो जन्म और मृत्यु से परे हो, जो मनुष्य उत्पत्ति से भी प्राचीन हो, सनातन मनुष्य मात्र का धर्म नहीं वरन सृष्टि की नियमावली है। सनातन ही शिव है, सनातन सच्चिदानंद है, यह तो वह अविरल धारा है, जिसके अनुसरण से मनुष्य कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होता है। सनातन समय की कसौटी पर खरा उतरा वह गुलदस्ता है जिसने काल की असंख अच्छाइयों को अपने अंदर समा लिया। इतनी समावेशी विचारधारा धरा पर कहीं देखने को नहीं मिलती। जहां दूसरे पंत एवं सम्प्रदाय अपनी हज़ारों वर्षों की जड़ताओं में जकड़े हुए हैं और लेश मात्र भी प्रगतिशील नहीं होना चाहते वहीं सनातन ने अपने अनुयायियों को खुला आसमान मुहैया करवाया। सनातन में कोई भी मनुष्य किसी भी एक विचारधारा का गुलाम नहीं हुआ। सबको अपने तरीके से अपने सच्चिदानंद तक पहुँचने की छूट दी। शिव, विष्णु, शक्ति, राम, कृष्ण, देवी, देवता, मनुष्य, पितर, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नर, नारी, पशु, अर्ध पशु, वृक्ष, पक्षी, प्रकृति सबको पूजने या माध्यम बनाने की छूट देने वाला है सनातन। पिछले कुछ हज़ार साल के इतिहास पर अगर नजर डालें तो पेगान, बुद्ध, जैन, इस्लाम, यहूदी, पारसी, ईसाई, सिख एवं अनेकों पंतों को मानने वाले जैसे साईं बाबा इत्यादि को चुन चुन कर मनोहर फूल की भाँति अपने गुलदस्ते में पिरोने वाला सनातन आज कुछ लोगों को चुभ रहा है। सनातन ने तो चार्वाकों, नास्तिकों, तांत्रिक एवं वामपंथियों को भी उचित स्थान दिया। ऐसी समावेशी जीवन शैली को मिटाने की बात करना कुछ गहरी साजिश की तरफ इशारा है।
श्री स्टालिन का कहना है कि वे जातिवाद पर प्रहार कर रहे थे। कोई उनसे पूछे कि जातिवाद का खंडन करते हुए बौद्ध धर्म आया पर क्या बुद्ध बने नागरिकों में जातिवाद खत्म हो गया? इस्लाम ने बहुएकवाद का डंका बजाया, परंतु उसमें अनेक पंत उत्पन्न हो गए मसलन शिया, सुन्नी, अहमदिया, मेव इत्यादि क्या यह सब एक समान हैं? इनमें तो खुद लड़ाई हैं। ईसाइयों में अपने मसले हैं, कोई खुद को उच्च का ईसाई बताता है तो किसी को निम्न दृष्टि से देखतें हैं। जातिवाद एक राजनीतिक उत्पत्ति है, इसमें अर्थ के अवगुण भी समाहित हैं। जातिवाद को तोड़ना है को शिक्षा पर पुरज़ोर निवेश करना होगा, आर्थिक सशक्तिकरण ही एकमात्र साधन है जो इन विषमताओं को तोड़ पाएगा। परंतु ये राजनेता समाज में सौहार्द बनाना नहीं चाहते, अपने चुनावी कारणों के चलते समाज को बाँटना इनकी मजबूरी हो जाता है।
‘टु अबॉलिश सनातन’ ऐसे आयोजन करना ही एक बड़े अनुसंधान की ओर इशारा है। एक पल के लिए मान लो कि सनातन नहीं है, फिर क्या यह लोग वहीं तक रुक जाएंगे? इस रिक्त स्थान को भरने के लिए क्या आसमानी किताब को लाया जाएगा या परमेश्वर के साम्राज्य के सिद्धांत का अनुकरण किया जाएगा या फिर कार्ल मार्क्स की दास कैपिटल इनकी नई नियमावली होगी?
लोगों को यह समझना होगा कि सनातन तो मनुष्य की उत्पत्ति से पहले भी था वो तो उसके बाद भी रहेगा। परंतु क्या सनातन ने बिना मनुष्य मात्र को कोई अस्तित्व रह जाएगा? क्या मनुष्य खुद अपने पाँव में बेड़ियाँ पहनने को स्वीकार करेगा? सनातन धर्म को खत्म करने की बात करना शायद मनुष्य मात्र के खात्मे की बात करने जैसा ही है। परंतु इस जीवित संस्कृति को मिटाना इतना आसान नहीं होगा। मशहूर कवि इक़बाल का यह पंक्तियाँ इस दौर में सटीक बैठती हैं-“यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा, कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमां हमारा, सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा”।
- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद
Friday, August 4, 2023
चंद्रयान तृतीय
देश का गौरव, देश का मान – चन्द्रयान
- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद
इतिहास गवाह है कि चाँद को अपनी ख़ूबसूरती पर हमेशा से ही गुमान रहा है। चाँद को पाने की चाह सभी ने की किंतु इसे पाना सब के नसीब में नहीं। दुनिया के हर महान देश ने चाँद तक पहुँचने की अनेकों पुरज़ोर कोशिश करीं पर सफलता बहुत कम देशों को ही प्राप्त हुईं। भारत उन चुनिंदा देशों में से है जिसने अपनी पहली ही कोशिश में चाँद को पा लिया।
2008 में चंद्रयान-प्रथम की प्रचंड सफलता ने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के पटल पर विश्व के अग्रणी देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। चन्द्रयान-प्रथम ने अपने कम बजट के लिए खूब सुर्खियां बटोरी। ऑटो से भी कम किराए में चाँद तक का सफ़र करने वाला यह अपने आप में इकलौता हरफ़नमौला बना। यद्यपि यह अपने निर्धारित कार्यकाल से पूर्व ही ब्लैक आउट हो गया पर अपनी कम उम्र में भी करामाती बन गया। नासा जैसी विश्व विख्यात संस्था ने भी चन्द्रयान-प्रथम का लोहा माना एवं अंतरिक्ष मानचित्र पर इसरो का परचम बुलंद किया।
2019 में चंद्रयान-द्वितीय प्रक्षेपण के समय पूरे देश का उत्साह चर्म पर था, स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इसरो मुख्यालय में मौजूद थे। सारा देश टकटकी लगाए टेलिविज़न सेट पर नज़रें गड़ाए बैठा था। परंतु चंद्रयान-द्वितीय की लैंडिंग असफल रही, रोवर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर पाया एवं वेग से गिरने के कारण मानकों पर सही नहीं बैठा और चंद्रमा की अंधेरी गहराइयों में कहीं खो गया। उस समय के प्रमुख श्री के॰ सिवान अपनी भावुकता संभाल नहीं पाए और प्रधानमंत्री के गले लग अपना अश्रु बाँध तोड़ दिया। यह कोई साधारण पल नहीं था, जिसने भी वह वीडियो देखा वह अपने आप को रोक नहीं पाया और ख़ुद भी भावुक हो गया। चन्द्रयान-प्रथम से चंद्रयान-द्वितीय तक के मिशन पर इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी ज़िंदगी के बहुमूल्य ग्यारह साल दिए। 3 लाख 80 हज़ार किलोमीटर के सफ़र पर निकला चंद्रयान-द्वितीय महज़ दो किलोमीटर पीछे रह कर असफलता के अंधेरों में खो गया। यह बात बताती है कि कामयाबी के लिए 99 सही कदम उठाने के बाद भी अगर आपका आख़िरी क़दम ग़लत पड़ जाए तो आप असफ़ल हो जाते हैं। पूरी दुनिया आपसे असफलता भुलाकर आगे बढ़ने के लिए कहती है, पर उनकी हर बात बेमानी सी लगती है। दुनिया आपको अपनी मेहनत में सकारात्मकता ढूँढने को कहने लगती है, मगर वो आखिरी क़दम का लड़खड़ाना आपको टीस देता रहता है। श्रीमान सिवान का भावपूर्ण हो जाना यह दिखाता है कि उन्होंने मेहनत की थी। इस तरह भावुकता तभी आती है जब व्यक्ति पूर्ण निष्ठा के साथ एक स्वप्न देखता है, एवं उसे साकार करने के लिए पुरज़ोर मेहनत करता है। परंतु जब वह स्वप्न अंतिम क्षणों में बिखर जाता है तब दिल की भावना आँखों के रास्ते बाहर आ जाती हैं।
ऐसे में 2023 में चंद्रयान-तृतीय से देश को कितनी उम्मीदें होंगी इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। आज इसरो के वैज्ञानिक हर उस भारतीय युवा के पर्याय हो गए जिसने बड़े सपने देखने की ज़रूरत की और फेल हुए; परंतु हौसला नहीं खोया और गिरने के बाद पुनः खड़े हुए एवं फिर आसमान में छेद करने का प्रण किया। गोपाल दास नीरज की यह पंक्तियाँ आज अमर हो गयी – “छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है”। या यूँ कहें कि चाँद का दीदार जिसने एक बार कर लिया हो, उसको पाने की चाहत कितनी प्रबल होगी ये तो वो शक्स ही समझ सकता है। ऐसे में नाकामी एक जुनून बन कर उभरती है। चंद्रयान-तृतीय पर इसरो द्वारा की गई मेहनत मानो वैज्ञानिक चाँद से आँखों में आँखें डाल कह रहे हों कि ‘तू मेरा शौक़ देख, मेरा इंतिज़ार देख’। इस बार वैज्ञानिक कोई भी गलती नहीं कर सकते। उन्होंने बेहिसाब परिश्रम कर आधुनिक तकनीकों द्वारा यह कृतिम उपग्रह तैयार किया। चन्द्रयान चाँद की सतह पर 23 अगस्त 2023 को लैंडिंग करेगा। पिछली असफलता के कारण इस बार इसरो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगा। चाँद इस बार भारत के प्यार को अपनाएगा या ठुकराएगा यह राज तो वक्त के गर्भ में ही छिपा है।
परंतु यह बात अपने आप में अतिशयोक्ति है कि अपनी आज़ादी के महज 75 साल में भारत अनेकों चुनौतियों से जूझता हुआ एक भविष्यवादी वैज्ञानिक सोच वाला देश बन कर उभरा। ऐसे अनुसंधान करना एवं उनका प्रक्षेपण हर भारतवासी को गौरवान्वित करता है। कई दशकों तक गरीबी का दंश झेलते हुए भी भारत ने इसरो जैसे प्रतिष्ठित संस्थान स्थापित किए यह अपने आप में गर्व का विषय है। ‘वीर भोग्या वसुंधरा’ से कहीं आगे निकलते हुए हमारे वैज्ञानिक ‘वीर भोग्या ब्रह्मांड’ के सिद्धांत को चरितार्थ कर रहें हैं।
चंद्रयान-तृतीय चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा एवं अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियाँ जमा करेगा। चंद्रमा पर पानी है या नहीं, जीवन संभव है या नहीं? चंद्रमा की गति का धरती पर क्या असर होता है एवं चंद्रमा से सौरमंडल का क्या विस्तार है? इस तरह की अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियाँ यह उपग्रह साझा करेगा। भविष्य में यह जानकारियाँ भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण मानवजाति के लिए वरदान साबित होंगी। हम ना केवल चाँद को क़रीब से जानेंगे अपितु धरती एवं सौरमंडल को भी और अच्छे से जान पाएँगे। चंद्रयान-तृतीय का सफल हो जाना भविष्य के नवीन आयाम खोलेगा, इसरो जापान, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका एवं रूस के साथ भविष्य में संयुक्त अनुसंधान करने की प्रबलता रखेगा एवं सम्पूर्ण दुनिया का परिचय चंद्रमा से करवाने की संभावनाएं प्रबल करेगा। भविष्य में चाँद पर मानव को भेजना भी इसरो की अनेकों योजनाओं में से एक है।
भारत की चंद्र यात्रा किसी जातक कथा से कम नहीं, ‘नानी माँ चाँद पर चरखा कात रही है’, बच्चों की कहानियों से ले कर चाँद पर यान उतार देना अपने आप में जादुई लगता है। देखना यह होगा की क्या वाकई चाँद महबूब जितना खूबसूरत है एवं उसके दाग असली हैं या नहीं? 23 अगस्त को चंद्रयान तृतीय जब चाँद की सतह पर चुम्बन देगा तब शायद मशहूर कवि इंदीवर की ये पंक्तियां ही गुनगुनाएगा - ‘ऐ रात जरा थम-थम के गुजर, मेरा चाँद मुझे आया है नज़र’!