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Friday, March 23, 2018

बदलते परिपेक्ष में धर्म एवं धार्मिक संस्थाओं की भूमिका


बदलते परिपेक्ष में धर्म एवं धार्मिक संस्थाओं की भूमिका   

पूरी दुनिया में यदि कहीं धर्म पताका सबसे पहले लहराया तो वो है भारतवर्ष | यहाँ की वैदिक संस्कृति ने दिव्यपुत्र स्वरुप सनातन धर्म को जन्म दिया | सनातन धर्म ही आगे चल कर हिन्दू धर्म के रूप में प्रचलित हुआ | बुद्धिजीवियों का तो यह  मानना है कि हिन्दू धर्म, सिर्फ धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने की शैली है | इस भूलोक में मनुष्य कैसे सफलता पूर्वक जीवन निर्वाह करे, इसी प्रारूप का ताना-बाना है हिन्दू धर्म | सनातन धर्म को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म कहा जाये तो इसमें कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी | जब दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी बर्बरता के अभिशाप से ग्रसित थी तब भारतीय ऋषि मुनि अपने ज्ञान के पवित्र सागर से प्राणियों के मन-मस्तिक्ष को पावन किये हुए थे | दुनिया में यही वो धर्म है जिसकी बुनियाद तर्क पर रखी हुई है | हमारी तर्कसंगति ने ही न्याय प्रणाली की नीवं रखी | इसी कारण हम विश्वगुरु कहलाये | आदिकाल से इस धर्म में अगणित बदलाव आये परन्तु इसका बुनियादी ढ़ाचा सुदृढ़ ही रहा | समय समय पर अनेकों विकृतियों ने भी इसे घेरा | इसी परिणाम स्वरुप जैन एवं बुद्ध धर्म का प्रादुर्भाव हुआ |

हिन्दू धर्म ने सबको अपनी सुविधा अनुसार इस धर्म का अनुसरण करने का अवसर दिया | दुसरे धर्मों की तरह इस धर्म ने कभी भी जड़ता को नहीं अपनाया | चेतन स्वरुप हिन्दू धर्म सदैव बहती गंगा सा निर्मल बना रहा | अपनी इष्ट आराधना के आधार पर कोई वैष्णव, कोई शैव तो कोई शक्ति-आराध्य कहलाया | किसी ने सगुन स्वरुप को अपनाया तो कोई निर्गुन उपासक बना | इसी प्रकार कोई द्वैत तो कोई अद्वैत कहलाया | तंत्र सिध्धि को भी इस धर्म में अपनी जगह ढूँढने में मुश्किल नहीं हुई |  भक्ति काल ने नए-नए पंतों को जन्म दिया जिन्होंने आगे चलकर धर्मचक्र में एहम भूमिका निभाई | फिर युद्ध एवं आक्रमण का दौर आया तथा भारत पर आतताइयों का हमला शुरू हुआ | निर्मम शासक अपने साथ अपने धर्म भी ले आये | हिन्दू धर्म की लचिलता एवं ख़ूबसूरती का एहसास इसी से लगाया जा सकता है की इसने अपने दुश्मनों एवं बर्बरतापूर्ण शासकों के धर्मों को भी अपनी गोद में शरण दी; सिर्फ धर्म ही नहीं बल्कि खान-पान, वस्त्र, भाषा एवं बोली व तहज़ीब को भी अपनाया | इसी मिश्रण ने मध्य काल के नवीन भारत की नीवं रखी |

धर्म की असली क्षति सन्न 1860 के बाद प्रारंभ हुई, अंग्रेज भारत के भाग्य-विधाता हो गए तथा उनके साथ बड़े पैमाने पर ईसाई धर्म का प्रादुर्भाव प्रारंभ हुआ | इसी का दुष्परिणाम है की आज भारत में रहने वाली ज्यादातर जनजातियाँ ईसाई हैं, उत्तर-पूर्व तो सारा ही धर्मपरिवर्तन का शिकार हुआ | इनकी कूटनीतिक चाल का जीवंत उधारण है 1925 में बनाये गए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी एक्ट जिसने हिंदुयों एवं सिखों में फूट डालने का काम किया | इसी क़ानून ने धर्म संस्थानों में राजनीतिक शुरुवात की नीवं रखी | आगे चल कर इन्हीं अंग्रेजों ने हिन्दू-मुस्लिम एकता एवं अखंडता को किस प्रकार तार-तार किया यह किसी से छुपा नहीं है, जिसके परिणाम स्वरुप बटवारे का दंश झेलना पड़ा एवं यह देश आजतक भी इस विष के व्यह्ग्र से ग्रसित है |            

जहाँ एक और ईसाईयों एवं मुसलामानों ने आज़ादी के बाद भी धर्मान्तरण के घिनोंने खेल को जारी रखा वहीँ निम्न्न राजनीती करने वालों ने हिन्दू संस्थाओं पर अंकुश लगाने में संकोच नहीं किया | बंगाल जो कभी हिन्दू धर्म की ध्वज पताका लिए हुए था, कमुनिस्ट शिक्तियों का गढ़ बना तथा ‘फूट डालो और राज करो’ की विरासत के आगे नतमस्तक हुआ | उत्तर भारत में धर्म परिवर्तन रोकने में ‘डेरों’ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई | अभी हाल ही में एक डेरा प्रमुख के प्रकरण ने समस्त डेरों के ऊपर प्रश्न्चिहिन्न लगा दिया | एक गलत प्रसंग के कारण सबको एक रंग में रंग देना गलत है | आज भी ऐसे अनेक डेरे ऐसे सुचारु रूप से चल रहे हैं जो समाज कल्याण का काम कर रहे हैं | राधा स्वामी सत्संग दयालबाग एवं ब्यास, संत निरंकारी सत्संग समागम, ब्रह्माकुमारी संस्थान इत्यादि इसके ज्वलंत उदाहरण हैं | डेरे न सिर्फ अध्यात्म की तरफ जोड़ते हैं बल्कि सेवा भाव भी जागृत करते हैं | जिस प्रकार ईसाई मिशिनरी संस्थाएं जन-मानस को सामाजिक सुविधाएं प्रदान करती हैं जैसे परिणय सूत्र में बांधना, व्यवसाय स्थापित करवाना इत्यादी उसी तर्ज पे डेरे भी सफल हुए | फर्क सिर्फ इतना है की ईसाई मिशिनरी संस्थाओं ने धर्मपरिवर्तन पर बल दिया बल्कि डेरों ने सरलता से परमात्म सिध्धि का मार्ग बताया |

आधुनिकता के युग में इश्वर की आराधना का तरीका भी बदलता गया | अस्सी व नब्बे के दशक में माता (देवी) की आराधना ने उत्तर भारत में बड़ा जोर पकड़ा | फ़िल्मी धुनों पर माता के गीत बनाये गए जिससे एक वर्ग विशेष का ख़ास जुडाव देखा गया | रात्री-जागरण की जगह माता की चौकी ने ले ली जो समय की बचत एवं भक्ति के साथ पूर्ण मनोरंजन भी समेटे हुई थी | परिवार का एक जुट होना एवं साजो-सज्जा का समावेश इसकी खासियत रही | फिर दौर शुरू हुआ घर-घर में साईं बाबा की आराधना का | गली, गाँव व शहर के हर मंदिर में साईं बाबा की मूर्ती स्थापित की गयी तथा साईं बाबा एक इष्ट के रूप में उभरे | शिर्डी साईं धाम जाना एक प्रकार का धार्मिक पर्यटन बन गया | धीरे-धीरे घर-घर में साईं संध्या का प्रादुर्भाव हुआ | यह बेहद सरल एवं समय की बचत को मद्येनजर रखते हुए भक्ति का नया स्वरुप साबित हुई | व्यापारी वर्ग इस से सबसे ज्यादा लाभान्वित हुआ एवं साईं बाबा की ख्याति त्रिदेव के परस्पर पहुँच गयी, इसी बात पर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी ने अपनी आपत्ति भी जाहिर करी थी | इसी दौरान शनिदेव की पूजा ने भी खूब जोर पकड़ा, कोकिलावन तथा सिग्नापुर धाम शनिदेव आराधना के अग्रिम उपासना स्थान बन कर उभरे | टेलीविज़न पर शनि के नाम पर पूजा करवाने वालों  की भी खूब दुकान चली |
आज इक्कीसवीं सदी जो टेलीविज़न एवं इन्टरनेट का युग है, स्थानीय व कुल देवी-देवताओं का भी बढ़-चढ़ कर प्रचार हो रहा है | हिमाचल के बाबा बालकनाथ, गुगा मेडी, चुरू के बबुसा, मिलकपुर के मोहन बाबा, पलवल के बनी वाले बाबा आदि इस के महतवपूर्ण उदाहरण हैं | नैनीताल के पास कैंची धाम ने भी एप्पल के स्टीव जॉब्स व फेसबुक के मार्क ज़ुकरबर्ग के कारण बहुत सुर्खियाँ बटोरी | ऋषिकेश का परमार्थ आश्रम भी विदेशियों के कारण ख़बरों में बना रहता है | इसी दौरान वृन्दावन भी दिल्ली, राजस्थान व हरियाणा वासियों के लिए एक बेहतरीन पर्यटन स्थल बन कर उभरा, वृन्दावन के इस्कोन एवं प्रेम मंदिर ने खूब प्रसिद्धियाँ बटोरी | संसार का सबसे ऊँचा चंद्रोदय मंदिर भी यहीं बन रहा है | 2015 के बाद अचानक से एक नए देवता को भगवान का स्वरुप लेते देखा जा सकता है, और वो हैं  ‘खाटू श्याम’ महाराज | खाटू श्याम जी के मंदिर भी अब आम देखे जा सकते हैं | नवीन बन रहे मंदिर लोगों को खूब लुभा रहे हैं |

इस्कोन से जुड़े धर्म शिक्षक एवं प्रसिद्द मनोवैज्ञानिक विकास अत्री जी इस दौर को हिंदुस्तान की ख़ूबसूरती का नमूना भी मानते हैं तो चुनौतियों का युग कहने से भी नहीं हिचकिचाते | वे कहते हैं की आज हिन्दू धर्म को बचाए रखना ही हम सबकी प्राथमिकता है, हिन्दू सनातन धर्म संसार का एक मात्र ऐसा प्राचीन धर्म है जो अभी भी जीवित बचा है | हमारे ऊपर चारोंओर से खतरा है, कहीं पश्चिमी देश हमें ‘पगान’ कह रहे हैं तो कहीं धर्म परिवर्तन बहुत तेजी से चल रहा है | आज इन्टरनेट पर युवाओं को बहकाया जा रहा है एवं भांति- भांति के प्रलोभन दिए जा रहे हैं | श्री अत्री कहते हैं  की वे रोज़ सोशल मीडिया पर ऐसे हजारों लोगों से लोहा ले रहे हैं जो धार्मिक कुरीतियों को फैला रहे हैं एवं इनके आधार पर हिन्दू धर्म की काट कर रहे हैं | समय की यह मांग है की पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी हिन्दू धर्म से जुड़े एवं बहकावे में न आये | हिन्दू धर्म के खिलाफ तरह तरह के मिथ्या प्रचार में भी कमी नहीं है, ईसाई एवं मुस्लिम संस्थानों की विदेशों से फंडिंग हो रही है एवं धर्मान्तरण का जहर गाँव- गाँव तक पहुँच रहा है | समय की मांग है की हम अपने बच्चों को किताबी ज्ञान के संग अपने धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान भी प्रदान करें |

चुनौतियों को देखते हुए सभी हिन्दू धार्मिक संस्थाओं को एक साथ आना होगा | आर्य समाज, गायत्री परिवार, गीतिप्रेस, धार्मिक अखाड़े, संत महापुरुष एवं सत्संग केंद्र सभी को एक पटल पर आना होगा तथा वेटिकन एवं मक्का-मदीना के सामान्तर एक विशाल हिन्दू संस्था का नवनिर्माण करना होगा जो हिन्दू धर्म का केंद्र साबित हो | अगर उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद हम अयोध्या में राम मंदिर बनाने में सफल हो गए तो वह इसका प्रतिरूप हो सकता है | आज हम अगर नहीं चेते तो अपनी भावी पीढ़ी को कुछ नहीं दे पाएंगे | भारतवर्ष की यही खासियत रही है की जब-जब हम पर विप्पति आई है, तब-तब हम वज्र के सामान कठोर हो कर उभरे हैं | कवी इकबाल ने सही कहा है की – “यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमां सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नाम-ओ-निशां हमारा; कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-इ-जमां हमारा | ” 

जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

Friday, March 16, 2018

हिन्दू नववर्ष की शुभकामनायें



हिन्दू नववर्ष की शुभकामनायें

भारत देश त्योहारों का देश है, यहाँ हर दिन कोई ना कोई नया त्योहार मनाया जाता है l विविध संस्कृतियों की इस धरती को एक सूत्र में पिरोता है सनातन धर्म l इसी सनातन धर्म को हिन्दू धर्म भी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि सनातन काल से ही यह धर्म रहा है, विद्वान तो यह मानते हैं कि हिन्दू एक धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने की शैली है l शास्त्र अनुसार आज से तथा सृष्टि संवत 1,96,08,53,119 वर्ष पुर्व सूर्योदय के साथ ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। जिस दिन ईश्वर ने सृष्टि की रचना की उस दिन को समस्त हिंदू नववर्ष के रूप में मनाते हैं l यह शुभ दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के रूप में प्रसिद्ध है l इस दिन नए संवत् की भी शुरूवात होती है l इस वर्ष यह विक्रमी संवत् 2075 के अनुसार 18 मार्च - रविवार की तिथि को पड़ रहा है l

देश भर में विभिन्न प्रांतों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है l महाराष्ट्र में यह गुडी पड़वा के नाम से प्रसिद्ध है तो आँध्र प्रदेश, टेलाँगना एवं कर्नाटक में यह उगादी या युगादि के नाम से जाना जाता है, मणिपुर में इसे चेराओबा कहते हैं तो जम्मू कश्मीर में इसे नवरह या नवरात्र भी कहा जाता है l सिंधी लोग इसे छेती चाँद भी कहते हैं l इस दिन नवीन वस्त्र, आभूषण, बर्तन व साज़ोसज्जा के सामान को ख़रीदने का भी प्रावधान है l मराठी में प्रसिद्ध कहावत है कि – “आरंभ होई चैत्रमासिचा गुढ़या तोरणे सण उत्साहाचा, कवल मुखी घालू गोडाचा, साजरा दिन हो गुढ़ीपाढव्याचा” l   

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के कुछ ऐतिहासिक महत्व इस प्रकार हैं – इतिहासकार धर्मेंद्र भारद्वाज बताते हैं कि प्रभु श्री रामचंद्र जी के राज्याभिषेक का दिन यही था । सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। 143 वर्ष पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन को आर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना। विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ ।

इस दिन का प्राकृतिक महत्व भी कुछ कम नहीं है l वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है । इस दिन औपचारिक रूप से शीतऋतु का गमन हो जाता है एवं ग्रीष्मऋतु का प्रादुर्भाव होता है l मौसम सुहावना हो जाता है एवं चहुंओर फूल ही फूल दिखाई देते हैं, वृक्ष नयी कोपालों के साथ नवीन वस्त्र धारण करते हैं l फल वाले वृक्ष भी फूल व बौर से लद जाते हैं l चारोंओर सकारात्मक ऊर्जा का फैलाव हो जाता है तथा मनुष्य नयी उमंगों के साथ अपने जीवन में एक नए वर्ष का स्वागत करता है l 

प्रसिद्ध मनोवज्ञानिक विकास अत्रि कहते हैं कि आज समय की यह माँग है की हम अपने बच्चों को इस दिन का महत्व बतायें l आधुनिकता के इस दौर में हम अंग्रेज़ी कलेंडेर (ग्रेगरोरीयन कलेंडेर) अनुसार ही एक जनवरी को नववर्ष मनाते हैं l वो कहते हैं की एक जनवरी को नववर्ष मनाने पर कोई ऐतराज़ नहीं है पर हमारे नौजवान अपनी संस्कृति को ना भुलाएँ l

सनातन धर्म को मानने वाले हिन्दू नववर्ष कुछ इस प्रकार मनाते हैं – सभी परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ देते हैं एवं आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजते हैं l आज के इस आधुनिक युग में शुभ संदेश वहट्सऐप द्वारा भेजे जाते हैं l इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फेहरातें हैं, महाराष्ट्र में इसे गुड़ी भी कहते हैं l एक मान्यता अनुसार जिस घर में गुड़ी झांकती दिखायी देती है वहाँ लक्ष्मी जी व सरस्वती जी का वास होता है l ज्ञानी पुरुष इस दिन वेद आदि शास्त्रो के स्वधयाय का संकल्प लेते हैं घरों एवं धार्मिक स्थलों में हवन यज्ञ के प्रोग्राम का आयोजन किया जाता है समाज के हर वर्ग के लोग इ अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं आर्य समाज की शाखाएँ  देश भर में इ दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित करतीं हैं l

आज यह ज़रूरत है कि हम सब मिलकर अपनी सनातन संस्कृति को पुनः जीवित करें एवं अपने त्योहारों पर गर्व करें l विद्यालयों में इस दिन को धूम-धाम से मनाया जाए तथा अपनी युवा पीढ़ी को इस ओर जागरुक किया जाए l "हिन्दू नववर्ष" हर्षोउल्लास के साथ मनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सज्जनों को प्रेरित करना भी ज़रूरी है l सभी को इस दिन की हार्दिक शुभकामनाएं l

जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद