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Thursday, September 30, 2021

सी.बी.एस.ई. बोर्ड परीक्षा निकट


सी.बी.एस.ई. बोर्ड परीक्षा निकट 


कोरोना महामारी ने पिछले दो सालों से पूरी दुनिया को अपना ग्रास बनाया हुआ है। यह कहना कोई अतिशियोक्ति नहीं होगा कि सम्पूर्ण जगत में अगर इस महामारी ने किसी को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है, तो वह है शिक्षा का क्षेत्र। पिछले दो वर्षों में स्कूली शिक्षा ने बहुत कुछ खोया है एवं अनेकों नवीन प्रयोग भी किए हैं। जहाँ ऑनलाइन शिक्षा पद्दती अब न्यू नॉर्मल हो चली है वहीं परीक्षा के स्वरूप में भी कई बदलाव किए गए हैं। इसी का उदाहरण है सी.बी.एस.ई. द्वारा 5 जुलाई 2021 को जारी किया सर्कुलर – ‘Acad-51/2021’ के अनुसार निर्धारित की ‘टर्म परीक्षाएँ’। इस साल कक्षा दसवीं एवं बारहवीं कि बोर्ड परीक्षाएँ दो भागों में ली जाएँगी – प्रथम अवधि नवम्बर में तथा द्वितीय अवधि परीक्षा मार्च महीने में। 


पाठ्यक्रम को दो बराबर भागों में बाँटा गया, पहले भाग (आधे पाठ्यक्रम) की परीक्षा नवम्बर महीने में ली जाएगी। यह परीक्षा पुराने सब्जेक्टिव बोर्ड प्रश्नपत्र के बिलकुल विपरीत बहु विकल्पीय प्रश्नपत्र के रूप में ली जाएगी। हर विषय का प्रश्नपत्र मल्टिपल चॉईस क्वेस्चन (एम॰ सी॰क्यू॰) आधारित होगा। प्रश्नपत्र में 50 प्रश्न होंगे एवं हर प्रश्न के 4 विकल्प दिए होंगे, छात्रों को इन चार विकल्पों में से एक को चुन कर ओ॰एम॰आर॰ उत्तर पुस्तिका में सही निशान लगाना होगा। हर प्रश्नपत्र 80 अंक का होगा तथा छात्रों को 90 मिनट में प्रश्नपत्र हल करना होगा। 


प्रथम टर्म परीक्षा की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है| परीक्षा में अब केवल एक महीने का समय रह गया है| बोर्ड परीक्षा, छात्रों के लिए अपने साथ बहुत सारा दवाब लेकर आती है| इस तरह की परीक्षा जहाँ एक ओर छात्रों के लिए एक नवीन चुनौती है वहीं दूसरी ओर एक सुनहरा मौक़ा भी है। बोर्ड ने अब्जेक्टिव पेपर ला एक तीर से कई नीशाने साध लिए : एक ओर छात्रों को महीनों रट्टा लगा, याद कर, तीन घंटे लिखने वाली परीक्षा ने निजात दिला दिया वहीं सभी छात्रों को एक सामान पटल मोहिया करवाने में सकारात्मक पहल की है एवं  कोरोना महामारी में परीक्षा का नया प्रारूप खोज निकाला।


छात्रों से अनुरोध है कि वे इस एक महीने का सदुपयोग करें। छात्र अगर इस समय में अपनी मेहनत दुगुनी कर दें तो वे निसंकोच बोर्ड परीक्षा में बहुत अच्छे अंक प्राप्त कर सकेंगे| विद्यार्थियों को ज़रूरत है योजनाबद्ध तरीके से मेहनत करके इन तीस दिनों का भरपूर फ़ायदा उठाने की| सभी छात्र अपना एक टाइम-टेबल बनाये एवं पाँचों विषयों को बराबर समय दें, रोज़ कम से कम छः घंटे ज़रूर पढ़ें| टाइम-टेबल इस प्रकार बना हो जिसमें सात घंटे की नींद का भी पूर्ण प्रावधान हो| छात्र देर रात तक न जाग कर सुबह जल्दी उठकर पढ़ने की आदत डालें, सुबह पढ़ा हुआ ज्यादा देर तक याद रहता है| पहले हर विषय का आधा पाठ्यक्रम अच्छे से पूरा करें, उसे याद करें, फिर बाकी का सिलेबस पूरा करें| सिर्फ मौखिक रूप से पढ़ने पर निर्भर न रहें, उसे लिख कर सुनिश्चित करें कि जो उन्होंने पढ़ा है वो अच्छे से तैयार भी हुआ है या नहीं? इस तरह पढने से विद्यार्थियों का विषय के प्रति डर भी दूर होगा एवं उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा| 


सी.बी.एस.ई. ने सभी विषयों के सैम्पल पेपर एवं उत्तर पुस्तिका जारी कर दिए हैं। यह सी.बी.एस.ई. की वेब-साइट पर निशुल्क उपलब्ध हैं। छात्र इन्हें अच्छे से हल करें एवं प्रश्नपत्र नियमित समय में ही पूरा करने की कोशिश करें। ग़ौरतलब रहे, कि परीक्षा में विद्यार्थी एक भी प्रश्न छोड़ कर ना आए। इस परीक्षा में नेगेटिव मार्किंग नहीं है। सी.बी.एस.ई. द्वारा जारी सर्कुलर में विशेषतः यह बात दर्शायी गयी है कि अगर अंक दशमलव में आते हैं तो उनको अगली बड़ी संख्या में राउंड ऑफ़ कर दिया जाएगा। विद्यार्थी अगर इस परीक्षा में अंकों की बढ़त बना लें तो मार्च परीक्षा में बहुत लाभ होगा। 


इन दिनों छात्र किसी भी कुधारणा का शिकार होने से बचें। यह देखा गया है कि विद्यार्थी अपना ज़्यादातर समय सिर्फ तीन प्रमुख़ विषयों पर केंद्रित कर देते  हैं, एवं इंग्लिश (भाषा) विषय को नज़रंदाज़ कर देते हैं। सभी को लगता है कि इंग्लिश तो आसान है आखिरी समय में देख लेंगे। इसी कारण उनकी पर्सेन्टेज कम रह जाती है। अंग्रेजी विषय एक चौथाई अंक समेटे हुए है एवं बारहवीं के बाद के लगभग सभी कोर्सेज इसी भाषा में हैं।


प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्री विकास अत्रि कहते हैं कि, “छात्रों के ऊपर दोस्तों, परिवार, विद्यालय एवं समाज का दवाब हमेशा रहता है जिस कारण कई बार वे घबराहट भी महसूस करने लग जाते हैं”| प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी में भी बच्चों से अपील की है की वो इन परीक्षाओं को एक उत्सव के रूप में स्वीकार करें| जिस प्रकार हम त्यौहार मानते हैं उसी तरह परीक्षा भी त्यौहार ही है, तो क्यूँ ना इनकी तैयारी भी धूम धाम से की जाये| छात्र परीक्षा के परिणाम की बिल्कुल भी चिंता ना करें बल्कि तैयारी में अपना शत प्रतिशत दें| परीक्षाओं में अभिवावकों का उत्तरदायित्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है| अभिवावकगण बच्चों के ऊपर नकारात्मक दबाव बनाने से बचें, उनकी तुलना दुसरे बच्चों से बिल्कुल ना करें| मौसमी बदलाव से भी छात्र अपने को बचाएं, परीक्षा के दिनों में बीमार पड़ना परिणाम पर असर दिखा सकता हैं| ‘कर्म करो फल की इच्छा मत करो’ इस समय गीता का यह ज्ञान ही छात्रों की हर दुविधा का सटीक उत्तर है|   

-       जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद



 

Wednesday, September 8, 2021

बिन शिक्षक सब सून



बिन शिक्षक सब सून


सम्पूर्ण भारतवर्ष ने कुछ दिन पूर्व शिक्षक दिवस मनायाहर व्यक्ति ने अपने-अपने शिक्षकों को याद किया एवं व्हाट्सएपट्विटर तथा फेसबुक पर ढेरों मेसेज का ताँता लगा रहा। किंतु हमें अपने आप से एक प्रश्न पूछना चाहिए कि हम सब भारतवासी क्या सच में शिक्षकों को उनका उचित सम्मान देते हैं या ये सिर्फ़ सोशल मीडिया के दिखावे भर रह गया है


कोरोना महामारी के इन दो सालों ने हमारे शिक्षा जगत की नींव हिला कर रख दी। जहां एक ओर हर किसी ने बच्चों के भविष्य को ले कर खूब चिन्ताएँ दिखायीं एवं आने वाले समय के आलेखन पर खूब रेखाएँ खींची वहीं किसी ने भी प्रखर स्वर में शिक्षकों के भविष्य को लेकर चिंता नहीं दिखायीना ही इन दो वर्षों में शिक्षकों की जीविका किस प्रकार चली इस पर किसी का ध्यान गया। बुद्धिजीवियों ने बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्तर का मूल्यांकन बखूबी किया पर शिक्षकों के मनोविज्ञान पर हर जगह अपने नेत्र मूँद लिए। 


दो दशकों का अनुभव समेटे प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्री विकास अत्रि कहते है: ज़रा बीते दो वर्षों पर नज़र डाल कर देखा जाए तो पता चले कि शिक्षक ने अपने आप को कितनी जल्दी नए अवतार में ढ़ाल लिया। कक्षा की चौक-बोर्ड-पेपर प्रणाली को छोड़ कम्प्यूटर-ज़ूम-गूगल होते शिक्षक आम हो गए। बिना किसी ट्रेनिंग और अभ्यास के शिक्षकों का अनंत कम्प्यूटरीकृत होना लाज़मी हो गया। श्री अत्रि बताते हैं किशिक्षकों ने अपने आप ही ये कम्प्यूटरी जटिलताएँ हल करी एवं विद्यार्थियों तक शिक्षा लाभ पहुँचाया। गूगल-मीटज़ूम वीडियोगूगल फॉर्मवीकलेट्समाइक्रसॉफ़्ट क्लासईमेलब्रॉड्कैस्ट इत्यादि ना जाने कितने असंख सॉफ़्ट्वेर में शिक्षकों को स्वतः ही पारंगत हासिल करना पड़ा। हर विषय के शिक्षकों को दोहरी भूमिका निभाते हुए तकनीक एवं विषय-ज्ञान में माहिर होना पड़ा। सबसे ज्यादा मुश्किलें संस्कृतहिंदीशारीरिक शिक्षागान-नृत्य के शिक्षकों को उठानी पड़ीतकनीक के साथ-साथ अंग्रेज़ी भाषा को भी साधना पड़ा। (क्यूँकि हर सॉफ़्ट्वेर अंग्रेज़ी भाषा में ही उपलब्ध है।)


हमारे देश में शिक्षक का दर्जा भगवान से भी ऊपर बताया गया हैपर इन दो वर्षों में गुरुओं की सुध किसी ने न ली। सबसे दयनीय स्थिति निजी स्कूल के शिक्षकों की रही। जहां एक ओर स्कूलों की फीस नहीं आई वहीं निदेशकों ने शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखा दियाजो बच गए उनके वेतन में भारी कटौती करी गयी और कार्य प्रणाली में भरसक नए प्रयोग किए गए। इस दौरान शिक्षकों को किन मानसिक सदमों से गुजरना पड़ा इस पर सभी मूकदर्शक बने रहे। शिक्षकों के ऊपर निदेशकों एवं अभिभावकों के कटु वचनों का दोहरा कुठाराघात किया गया। सरकार द्वारा भी सारी नीतियाँ छात्र केंद्रित ही रहीशिक्षकों का निरंतर उपहास ही हुआ।    


आने वाले दिन भी गुरुवरों के लिय कम चुनौती भरे नहीं होने वाले। शिक्षकों को निरंतर अपने कार्य कौशल में इज़ाफ़ा करना होगा एवं विषय ज्ञान के साथ साथ तकनीकी रूप से भी सुदृढ़ होना होगा। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का नया दौर चुपके से दबे-पाओं आ अपनी जगह बना चुका है। बीते दो सालों में यही न्यू नॉर्मल हो चला है। और अब अगले सत्र से स्कूल खुल भी जाएँ परंतु यह नवीन शिक्षा पद्दती जाने वाली नहीं हैं। स्कूली शिक्षा का एक बड़ा भाग अब सदा के लिए ऑनलाइन ही हो चला है।


भारतीय शिक्षण तंत्र को कोरोना काल में यदि किसी ने संभाला हुआ है तो वो हैं हमारे शिक्षकगणसरकार ने तो कोरोना के आगे घुटने टेक दिए थेकोई भी दिशा निर्देश नहीं होते हुए भीशिक्षकों ने ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को अपनाया एवं घर बैठे विद्यार्थियों को लाभान्वित किया। शिक्षकों के इसी भरसक प्रयास के कारण आज शिक्षा जगत में आशा की किरण दिखाई देती है। शिक्षकों ने अपने घर परिवार को त्याग कर चौबीसों घंटे छात्रों के लिए ऑनलाइन उपलब्ध होना स्वीकारा। 


आज हम सबका यह कर्तव्य होना चाहिए कि हम सब एक स्वर में सम्पूर्ण शिक्षक गण का अभिनंदन करें व दिल से कोटि कोटि धन्यवाद देंयही हमारी ओर से डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


जगदीप सिंह मोरशिक्षाविद