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तर्पण - दादा जी से मिली समाज कल्याण की प्रेरणा

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मेरे दादा जी स्व.चौधरी मनफूल सिंह मोर इस छेत्र के एक जाने-माने वकील थे। दादा जी ने दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफ़न कॉलेज से पढ़ाई की। वे एक सच्चे कर्म योगी व गांधीवादी थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन आर्यसमाज के नियमों एवं आदर्शों पर ही जिया । दादा जी ने समाज कल्याण को सदैव प्राथमिकता दी, एवं हमें भी ऐसा ही बनने को प्रेरित किया | अदालत में उन्होंने अनेकों केस बिना शुल्क के लड़े एवं जनमानस को न्याय दिलाया। लोग आज भी उनको याद करते हैं एवं उनकी कमाई हुई प्रतिष्ठा की वजह से ही समाज हमारे परिवार को इज़्ज़त की नज़र से देखता है। अपने संघर्षों को याद कर वे हमेशा हमसे कहते, "सिर्फ पढ़ाई के द्वारा ही तुम वो सब पा सकते हो जिसकी तुम कल्पना करते हो, कोई और रास्ता नहीं है"। उन्होंने शिक्षा के महत्व को हमेशा सराहा | जीवन के आखिरी क्षण तक वे अनुशासन का पालन करते रहे | उनके द्वारा दिया गया ज्ञान हमेशा हमारा मार्गदर्शन करता रहता है। हमारी सफलता का पूर्ण श्रेय दादा जी के बताए जीवन दर्शन की ही देन है। हमें आज भी लगता है कि दादा जी हमारे ऊपर अपना आशीर्वाद बनाये हुए हैं। - जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद...

सब शिवमय है

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सब शिवमय है॰॰॰   आज के परिपेक्ष में जहां चहुओर सनातन संस्कृति पर ओछी फब्तियां कसी जा रही हो ,  सावन का महीना इस संस्कृति को जानने का बेहतरीन ज़रिया बन सकता है। पशु बुद्धि ,  जड़बुद्धि ,  अल्पबुद्धि एवं जागृत बुद्धि सभी अपनी पात्रता अनुसार शिव को जान सकते हैं। किसी को शिवलिंग में लिंग नज़र आता है तो किसी को समस्त सृष्टि का सृजन ,  यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे मनुष्य अनंत सागर में गोता लगाए तो कोई नमक की डली ले कर बाहर निकले और कोई बेशकीमती स्फटिक मणि। सागर के अंदर सब कुछ छुपा है ,  अपनी दक्षता अनुसार विभिन्न प्राणी इसका दोहन करते हैं। श्रावण मास वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। संतजन कहते हैं की सावन महीना और भोलेनाथ का संगम उसी तरह है जैसे जल में तरलता ,  अग्नि में दाहकता ,  सूर्य में ताप ,  चंद्रमा में शीतलता ,  पुष्प में गंध एवं दुग्ध में घृत। श्रावण मास में समस्त जगत शिवमय हो जाता है ,  शिव ही परम सत्य हैं ,  शिव ही अदियोगी हैं एवं शिव ही महादेव हैं।             ...

रिजल्ट का सटीक विश्लेषण करें छात्र

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  रिजल्ट का सटीक विश्लेषण करें छात्र     सी॰बी॰एस॰ई॰ कक्षा दसवीं एवं बारहवीं का परिणाम घोषित हो गया है |   ज्यादातर बच्चों ने   अच्छे अंक ला कर सफलता प्राप्त की है |   अब एक ओर छात्रों को कक्षा ग्यारहवीं में विषय चयन करने होंगे वहीं दूसरी ओर कॉलेज एडमिशन की दौड़ शुरू होगी |   सारे बच्चे जल्द से जल्द अच्छे कॉलेज में दाखिला लेना चाहेंगे |   एन॰सी॰आर॰ के बच्चों की पहली पसंद दिल्ली यूनिवर्सिटी ही होती है |   जहां पिछले साल तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में कट-ऑफ के आधार पर दाखिला दिया जाता था वहीं इस साल से पूरी प्रक्रिया बदल दी गयी है। छात्र इस का बेहद ख़याल रखें ,  इस वर्ष सी॰यू॰ई॰टी॰ प्रवेश परीक्षा के माध्यम से सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिला दिए जाएँगे। सी॰यू॰ई॰टी॰ २०२२ दाखिले के फॉर्म भरने की तारीख बीत चुकी है। जिन छात्रों ने प्रवेश परीक्षा के लिए आवेदन नहीं किया है ,  वे अन्य विश्वविद्यालयों में दाखिला ले सकते हैं। अनेकों विश्वविद्यालयों में अब भी बारहवीं के अंकों के आधार पर ही दाखिला दिए जा रहे हैं। छात्र अक्सर भविष्य के दबाव के ...

बच्चों को तनाव देने से बचें शिक्षक एवं अभिभावक

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 बच्चों को तनाव देने से बचें शिक्षक एवं अभिभावक   एक अप्रैल से शिक्षा का नया सत्र प्रारम्भ हो गया। पूरे दो साल के कोरोना लॉकडाउन के विलम्ब के पश्चात स्कूल दुबारा सुचारू रूप से खुल गए। नवीन सत्र में कक्षाएँ पूर्ण उपस्थिति के साथ यथारूप शुरू हो गयी। छात्रों, अभिभावकों एवं शिक्षकों में हर्ष देखते ही बन रहा था। परंतु यह हर्ष क्षणिक था और देखते ही देखते बच्चे तनाव ग्रस्त होने लगे। जहां एक ओर विद्यालयों में शिक्षकों ने दबाव बनाया वहीं दूसरी ओर घर में माता-पिता ने अपेक्षायें आसमान तक बांध लीं, इस दबाव की चक्की में बेचारे बच्चे फंस गए। यह बात सत्य है कि पिछले दो सालों में बच्चों की पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ है, बच्चों की लिखने की क्षमता बिलकुल शून्य हो गयी है। बच्चे गणित के पहाड़े भी भूल चुके हैं, एवं विज्ञान के सूत्र भी उन्हें याद नहीं। शिक्षकगण एवं अभिभावकों को यह ज्ञात होना चाहिए की छात्रों की जो पढ़ाई रूपी गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी, उसे दोबारा पटरी पर आने में थोड़ा वक़्त लगेगा। अभी सत्र शुरू हुए सिर्फ़ दस दिन ही हुए हैं की विद्यालयों ने छात्रों को भर-भर के काम देना शुरू कर दिया है।...

हे शंकराचार्य! पुनः आओ

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                                 हे शंकर! पुनः आओ आज के परिपेक्ष में हर सनातन धर्मी भारतवासी का यह कर्तव्य हो चला है की अपने व्यस्त जीवन की आपाधापी में से दो घड़ी समय एकांत का निकाले और अपने आप से एक सवाल पूछें – अगर यूक्रेन जैसी परिस्थिति कभी भारत पर आ जाए तो हम कौन से देश में भाग कर जाएंगे? हमारा कौन सा पड़ोसी देश हमें शरण देगा - पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में हिमालय के उस पार चीन, पूर्व में बांग्लादेश या दक्षिण में सागर मध्य श्रीलंका? हम सनातनी किस ओर पलायन करेंगे? सवाल किसी बाहरी देश द्वारा युद्ध का नहीं है, वरन आंतरिक देश विरोधी ताकतों का भी है। पश्चिम में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद, उत्तर में चीन का विस्तारवाद, पूर्व में बांग्लादेश का कट्टरवाद तो भारत के भीतर धर्मांतरण करती ताक़तों, वामपंथी एवं आंदोलन जीवियों का छद्म युद्ध – इन सबसे बचते बचाते कहाँ शरण लेंगे हम? ज़रा सोचो, हमारे परिवारों में से कौन पीछे रुकेगा जो इनसे लोहा लेगा और कौन शरणागत होगा?  आधुनिक भारत के इतिहास में धर्मांतर...

छद्मावरण, झूठ एवं जंग

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  छद्मावरण, झूठ एवं जंग   आधुनिक इतिहास गवाह है कि हर युद्ध से पहले विकसित देशों ने एक झूठ का पुलिंदा तैयार किया और छद्मावरण ओढ़े अपना वक्तव्य प्रबल किया। जिसका पश्चिमी मीडिया ने खूब प्रचार प्रसार किया और आम आदमी तक इसको किसी प्रलोभन की तरह पहुँचाया। आम जनता के मन में भय बनाया गया और युद्ध को एक मात्र विकल्प के रूप में समझाया गया।  अपनी याददाश्त को थोड़ा झंखोर कर देखिए तो पिछले बीस सालों में गढ़े गए ऐसे अनेकों जुमले आपको याद आएँगे। सूपरपॉवर अमेरिका इस खेल का प्रखर खिलाड़ी है, पश्चिमी मीडिया हाउस जैसे बी॰बी॰सी॰, सी॰एन॰एन॰, टाइम मैगजीन, द गार्डियन, द इकॉनमिस्ट, वॉशिंटॉन पोस्ट इत्यादि ने अपने आकाओं का भरपूर साथ दिया और झूठे वर्णन की खूब दुँधूबी बजायी। अमेरिका के स्वर में स्वर मिलाया नाटो देशों ने। इसी खेल में इन्हीं के रचे नियमों का फायदा उठाया रूस एवं चीन ने। उन्होंने भी अपने स्वयं रचित नैरेटिव राग को खूब ज़ोर शोर से गाया और संसार को सुनाया।                  आपको याद ही होगा कैसे अमेरिका ने इराक...

Ever Negligence of Education Sector

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Ever Negligence of Education Sector The recent budget fails to deliver any remedy to the ever succumbing education sector of our country. Educationalists across the country were waiting for the much needed booster dose of budgetary allocation to the ailing education system of India but in vain.  Since the first covid lockdown in March 2020, the entire education structure of India including schools, colleges, universities and coaching institutions are in shackles. Almost three sessions of physical teaching and examinations have wiped out ruining the future of millions of students. Worst sufferers are the school students who have no idea of the amount of precious time they have lost.  Post-covid witnessed an era of online teaching-learning. This initiative was taken by private institutions on pilot basis initially but soon became the new-normal in education. Schools, colleges and coaching institutions adapted this platform and tried to bridge the gap. Government school students ...