सब शिवमय है
सब शिवमय है॰॰॰
आज के परिपेक्ष में जहां चहुओर सनातन संस्कृति पर ओछी फब्तियां कसी जा रही हो, सावन का महीना इस संस्कृति को जानने का बेहतरीन ज़रिया बन सकता है। पशु बुद्धि, जड़बुद्धि, अल्पबुद्धि एवं जागृत बुद्धि सभी अपनी पात्रता अनुसार शिव को जान सकते हैं। किसी को शिवलिंग में लिंग नज़र आता है तो किसी को समस्त सृष्टि का सृजन, यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे मनुष्य अनंत सागर में गोता लगाए तो कोई नमक की डली ले कर बाहर निकले और कोई बेशकीमती स्फटिक मणि। सागर के अंदर सब कुछ छुपा है, अपनी दक्षता अनुसार विभिन्न प्राणी इसका दोहन करते हैं। श्रावण मास वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। संतजन कहते हैं की सावन महीना और भोलेनाथ का संगम उसी तरह है जैसे जल में तरलता, अग्नि में दाहकता, सूर्य में ताप, चंद्रमा में शीतलता, पुष्प में गंध एवं दुग्ध में घृत। श्रावण मास में समस्त जगत शिवमय हो जाता है, शिव ही परम सत्य हैं, शिव ही अदियोगी हैं एवं शिव ही महादेव हैं।
वेदव्यास जी ने स्वयं कहा की - ‘हे प्रभो! आप कानों के बिना सुनते हैं, नाक के बिना सूंघते हैं, बिना पैर के दूर से आते हैं, बिना आँख के देखते हैं और बिना जिव्हा के रस ग्रहण करते हैं, अंत: आपको भलीभाँति कौन जान सकता है?’ शिव भक्ति का आलम यह है कि इस वर्ष सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए दस लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु केदारनाथ धाम पहुँच गए एवं अमरनाथ यात्रा में भी दो लाख से ज्यादा श्रद्धालु अब तक दर्शन कर चुके हैं। ऐसी ही एक शिव भक्तिनि ने अपनी अमरनाथ यात्रा का वर्णन करते हुए बेहद भावुक हो बताया कि वहाँ सभी शिव के रुद्र हो जाते हैं, सर के पैरों तक हम एक ही रंग में रंगे जाते हैं, संसार के सारे विकार अपने आप शून्य हो जाते हैं एवं मनुष्य खुद को शिव का अंश होने का साक्षात अनुभव करता है। वहाँ शव और शिव एक हो जाते हैं।
शिव महापुराण में लिखा गया है, 'हे महादेव! आपको न साक्षात् वेद, न विष्णु, न सर्वसृष्टा ब्रह्मा, न योगेंद्र और न तो इंद्रादि देवगण भी जान सकते हैं, केवल भक्त ही आपको जान पाता है'। यही कारण है की कांवड़ियों को देव तुल्य माना गया है। समय के साथ कांवड़ लाने के तरीके में बहुत बदलाव आ गया है। जहाँ पहले केवल पैदल कांवड़ यात्रा करने वाले ही हुआ करते थे, पग-पग भरते कांवड़ियां बम-बम भोले का नाम-जप करते हुए अपनी श्रद्धा यात्रा पूरी किया करते थे, वहीं आज के दौर में डाक-काँवड़, टाटा 407 में डी॰जे॰, मोटरसाइकिल एवं कार में कांवड़ लाने का चलन खूब धूम मचाए हुए है। पहले जिस रास्ते से कांवड़िए जाया करते थे, लोग उनकी चरणरज अपने माथे पर लगाया करते थे। पैदल कांवड़ लाना सबसे बड़ी तपस्या है एवं शिव के प्रति अपार श्रद्धा का प्रतीक है। शिव के प्रति इतनी अपार श्रद्धा व समर्पण आज हिन्दू धर्म की शक्ति बन उभरी है।
शिव को कल्पांतकारी भी कहा जाता है। जब समुद्र मंथन के समय सृष्टि संहार को टालते हुए शिव ने गरल पिया, तब शिवजी के शरीर का ताप चरम पर पहुँच गया। उस समय परमपिता ब्रह्मा ने देवताओं को आदेश दिया की शिव के ऊपर जल चढ़ाया जाए जिससे उनकी तापग्नि शांत हो सके। सभी देवताओं ने शिव जी का आभार मानते हुए उनका जलाभिषेक किया, इस घटना को एक नए युग की शुरुआत माना जाता है। तब से यह परंपरा चली आ रही है, समस्त सनातनी शिव की स्तुति करते हुए यह कामना करते हैं कि उनके जीवन का गरल शिव धारण कर लें, और वे संकट मुक्त हो जाएँ। आभार स्वरूप, श्रद्धा से ओत-प्रोत भक्तगण शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घृत एवं फल पुष्प चढ़ाते हैं। आज समय की यह मांग है कि हम अपने बच्चों को अपने सनातनी इतिहास से जुड़े एवं इस पावन महीने में अपने निकटतम शिवालय में जाकर जलाभिषेक करें।
- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद
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