हे शंकराचार्य! पुनः आओ


                                हे शंकर! पुनः आओ

आज के परिपेक्ष में हर सनातन धर्मी भारतवासी का यह कर्तव्य हो चला है की अपने व्यस्त जीवन की आपाधापी में से दो घड़ी समय एकांत का निकाले और अपने आप से एक सवाल पूछें – अगर यूक्रेन जैसी परिस्थिति कभी भारत पर आ जाए तो हम कौन से देश में भाग कर जाएंगे? हमारा कौन सा पड़ोसी देश हमें शरण देगा - पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में हिमालय के उस पार चीन, पूर्व में बांग्लादेश या दक्षिण में सागर मध्य श्रीलंका? हम सनातनी किस ओर पलायन करेंगे? सवाल किसी बाहरी देश द्वारा युद्ध का नहीं है, वरन आंतरिक देश विरोधी ताकतों का भी है। पश्चिम में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद, उत्तर में चीन का विस्तारवाद, पूर्व में बांग्लादेश का कट्टरवाद तो भारत के भीतर धर्मांतरण करती ताक़तों, वामपंथी एवं आंदोलन जीवियों का छद्म युद्ध – इन सबसे बचते बचाते कहाँ शरण लेंगे हम? ज़रा सोचो, हमारे परिवारों में से कौन पीछे रुकेगा जो इनसे लोहा लेगा और कौन शरणागत होगा? 


आधुनिक भारत के इतिहास में धर्मांतरण एक जटिल चुनौती है। अनेकों प्रकार के प्रलोभन एवं छद्म दे-दे कर भोली भाली जनता को गुमराह किया जा रहा है। कहीं पैसे का लालच, कहीं विदेश भेजने का वादा, शादी का झांसा या फिर मुक्ति का मार्ग दिखा लोगों को पागल बनाया जा रहा है। हास्यास्पद बात यह है की जिस जातीय समीकरण को तोड़ने का प्रलोभन दिखा तथाकथित निम्न वर्ग एवं जनजातियों को दूसरे धर्म जैसे बुद्ध, इस्लाम व ईसाई बनाया जा रहा है, ‘जाती’ उनका वहाँ भी पीछा नहीं छोड़ रही है, जाती-विहीन इन धर्मों में भी जातीय समीकरण बन गए हैं। आजादी के बाद धर्मांतरण रोकने में बहुत बड़ी भूमिका डेरों की रही। डेरों एवं आश्रमों ने समाज के शोषित वर्गों को बांध के रखा एवं बहुत बड़ी संख्या में धर्मांतरण रोकने में अहम भूमिका निभायी। परंतु पिछले दस सालों में प्रमुखता उत्तर भारत में डेरों का पतन हुआ और धर्मांतरण की आँधी यहाँ खूब चल रही है। प्रमुख़ डेरा जैसे संत आसाराम आश्रम एवं डेरा सच्चा सौदा प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम ‘इंसा’ को जेल भेजना एवं कुछ मीडिया घरानों द्वारा द्वेष की भावना से हिंदू धर्म को बदनाम करने के कारण काफ़ी क्षति हुई। निरंकारी बाबा श्री हरदेव सिंह जी, जगद्गुरु कृपालु जी महाराज, सच्चे संत श्री रामसुखदास जी महाराज के अकस्मात् निधन ने भी भरपूर क्षति पहुँचायी। इसी कारण मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में धर्मांतरण खूब फैला। गुरुओं की भूमि पंजाब में ईसाई धर्मांतरण ज़ोरों पर पनप रहा है, सर पर पगड़ी पहने गले में क्रॉस लटकाए लोग आम हो चले हैं। हरियाणा में मेवात क्षेत्र पड़ोसी ज़िलों पलवल, गुरुग्राम एवं फ़रीदाबाद तक बढ़ रहा है। उत्तराखंड में ख़ाली पड़े घरों में रोहिंग्या द्वारा कब्जा करने की खूब खबरें चलीं।


आज भारत को एक और जगतगुरु आदि शंकराचार्य की पुरज़ोर ज़रूरत है जो समस्त भारतवर्ष को एक सूत्र में पिरो सके। इतिहास गवाह है यदि शंकर ना होते तो सनातन धर्म का बचना असंभव था, सम्पूर्ण भारत बौद्ध हो गया होता। शंकर ने केरल से चल कश्मीर तक भारत को एक सुत्रीय सनातन संस्कृति में ढाला एवं धर्म रक्षा के यज्ञ में अग्रीण आहुति दी। शंकर ने कपोल बातों पर लोगों को जीवंत नहीं किया वरन तर्क से अनंत ज्योति प्रज्वलित करीं। यही कारण है कि आज हज़ार साल बाद भी यह ज्योति जल रही है। आज ऐसे ही तर्कसंगत शंकराचार्य की भारतभूमि को तलाश है, जो व्यवहार में सच्चा हो तथा धर्म से अडिग, जो राजनीति से परे हो वरण लोगों से जुड़ा हो। एक ऐसा युगपुरुष जो दूसरों से विचार सुन सके एवं अपनी ज्ञान गंगा से जनमानस को तार सके। आज ज़रूरत है सुशुप्त पड़े डेरों को जाग जाने की, एक नयी युवा चेतना को इनकी कमान संभालने की, जो पुराने व्यसनों एवं कुरीतियों की बेड़ियों को तोड़ सके, एवं नवीन सूत्रधार पिरोने की क्षमता रखें।


अगर हम अब भी नहीं जागे, तो बहुत देर हो जाएगी। देश विरोधी ताकतें अगर जीत गयी तो भारतवासियों का अस्तित्व संकट में आ जाएगा। आज ज़रूरत है एक सशक्त नेतृत्व की एवं अपनी सेना पर पूर्ण भरोसा रखने की। अगर हम अपनी ही सेना पर तंज कसेंगे और शक करेंगे तो हमें कुछ हासिल नहीं होगा। आज ज़रूरत है हमें अपनी सेना को मजबूत करने की, एवं कठिन फैसले लेने वाले शीर्ष नेतृत्व की - राजनीति पटल पर भी तथा धार्मिक पटल पर भी। 


- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद


_(यह लेखक के निजी विचार हैं)_

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