छात्रों में बढती गुस्से की प्रवर्ती




छात्रों में बढती गुस्से की प्रवर्ती

छात्रों में बढती गुस्से की प्रवर्ती हमारे समाज के लिए खतरे की घंटी साबित हो रही है | पिछले तीन महीनों में हुई चार वारदातों ने शिक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया है | पहले गुरुग्राम के रयान स्कूल की घटना, फिर नॉएडा के एक किशोर द्वारा अपनी माता व बहन का क़त्ल फिर लखनऊ के स्कूल में एक बालिका द्वारा घटना को अंजाम देना ओर अब ये यमुनानगर के स्कूल में प्रधानाचार्या की गोली मार कर हत्या | ये चारों घटनाये महज इत्तफ़ाक, या एकल घटनाएँ नहीं हैं वरन समाज में मूक रूप से चल रहे मंथन का परिणाम हैं | हम सब इसे पहचानने में जो देरी कर रहे हैं वह एक दिन हमें भारी पड़ेगा | शिक्षा जगत में तेजी से सुधार की आवश्यकता है | हमने अपने बच्चों को कुछ ज्यादा ही तनावग्रसित किया हुआ है | स्कूली शिक्षा के प्रारंभ से ही अभिवावक एवं अध्यापक छात्र को इनता तनाव में ले आते हैं की बारहवीं तक आते आते उसके मूल स्वाभाव में विकृति आ जाती है |  हाल ही में हुई  असामान्य घटनाएँ इसी विकराल रूप लेते राक्षस की ओर इशारा कर रही हैं | आज के परिपेक्ष में यह इतना आम हो चुका है की छोटे से छोटे व बड़े से बड़े विद्यालय में सिर्फ अंकों की दौड़ लगी हुई है |     

बच्चे समय से पहले ही परिपक्व होते जा रहे हैं | आज छात्रों के आतंरिक जीवन में पढाई के अतिरिक्त भी अन्य चीज़ें कोलाहल मचाये हुए हैं जिनसे अभिवावक व अध्यापक अनिभिज्ञ रह जाते हैं | बहिर्मुखी बच्चे तो फिर भी किसी तरह अपनी बात रख लेते हैं, अंतर्मुखी विद्यार्थियों पर विशेष ध्यान देने की आवशयकता है |  ऐसे बच्चे ही कब कोई गलत कदम उठा लेते हैं इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल होता है | समय आ गया है की हम सब छात्रों की मनोविज्ञानिक मनोदशा के प्रति सजग रहें | डांट देना या दो थप्पड़ जड़ देने वाले ज़माने लद गए, आज पेरेंट्स – टीचर्स एवं बच्चों के बीच परस्पर दोस्ती के संबंधों की आवशयकता है | अभिवावकगण  भी अपनी जिम्मेवारी सजगता से निभाएं, घर में अगर हथियार इत्यादि है तो उसे बच्चों की पंहुच से सदैव दूर रखें, बच्चों के सामने गाली-गलौच करने से बचें एवं ऐसी कोई भी बात ना करें जिससे बच्चे के उग्र स्वाभाव को बढ़ावा मिले | माता-पिता अपने बच्चे के दोस्तों पर भी नज़र रखें, वह किस से मिलता है, कौन उसके दोस्त हैं इस पर यदि अंकुश भी लगाना पड़े तो पीछे ना हटें | माता-पिता, रिश्तेदारों व दोस्तों की हवाबाजी में कही कौन सी बात बच्चे के अकिंचन मन के अन्दर घर कर जाए इसे बता पाना बहुत मुश्किल है | आवश्यकता पड़ने पर बच्चे को मनोचिकित्सक या काउंसलर के पास परामर्श के लिए ले कर जायें, इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है | विद्यालयों में भी छात्रों के लिए ‘एंगर मैनेजमेंट’ जैसे नई अवधारणा के विषय लागू करने चाहियें | आज के इस तकनीकी युग में अभिवावक एवं अध्यापक दोनों को अपने दायरे व अपनी जिम्मेवारी की परिभाषा को नवीन आयाम देने होंगे तभी हम ऐसी घोर घटनाओ पर अंकुश लगा पाएंगे |

जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद 

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