चंद्रयान तृतीय

देश का गौरवदेश का मान – चन्द्रयान

 

-    जगदीप सिंह मोरशिक्षाविद  

 

इतिहास गवाह है कि चाँद को अपनी ख़ूबसूरती पर हमेशा से ही गुमान रहा है। चाँद को पाने की चाह सभी ने की किंतु इसे पाना सब के नसीब में नहीं। दुनिया के हर महान देश ने चाँद तक पहुँचने की अनेकों पुरज़ोर कोशिश करीं पर सफलता बहुत कम देशों को ही प्राप्त हुईं। भारत उन चुनिंदा देशों में से है जिसने अपनी पहली ही कोशिश में चाँद को पा लिया।  


2008 में चंद्रयान-प्रथम की प्रचंड सफलता ने भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के पटल पर विश्व के अग्रणी देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। चन्द्रयान-प्रथम ने अपने कम बजट के लिए खूब सुर्खियां बटोरी। ऑटो से भी कम किराए में चाँद तक का सफ़र करने वाला यह अपने आप में इकलौता हरफ़नमौला बना। यद्यपि यह अपने निर्धारित कार्यकाल से पूर्व ही ब्लैक आउट हो गया पर अपनी कम उम्र में भी करामाती बन गया। नासा जैसी विश्व विख्यात संस्था ने भी चन्द्रयान-प्रथम का लोहा माना एवं अंतरिक्ष मानचित्र पर इसरो का परचम बुलंद किया। 


2019 में चंद्रयान-द्वितीय प्रक्षेपण के समय पूरे देश का उत्साह चर्म पर थास्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी इसरो मुख्यालय में मौजूद थे। सारा देश टकटकी लगाए टेलिविज़न सेट पर नज़रें गड़ाए बैठा था। परंतु चंद्रयान-द्वितीय की लैंडिंग असफल रहीरोवर सॉफ्ट लैंडिंग नहीं कर पाया एवं वेग से गिरने के कारण मानकों पर सही नहीं बैठा और चंद्रमा की अंधेरी गहराइयों में कहीं खो गया। उस समय के प्रमुख श्री के॰ सिवान अपनी भावुकता संभाल नहीं पाए और प्रधानमंत्री के गले लग अपना अश्रु बाँध तोड़ दिया। यह कोई साधारण पल नहीं थाजिसने भी वह वीडियो देखा वह अपने आप को रोक नहीं पाया और ख़ुद भी भावुक हो गया। चन्द्रयान-प्रथम से चंद्रयान-द्वितीय तक के मिशन पर इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी ज़िंदगी के बहुमूल्य ग्यारह साल दिए। 3 लाख 80 हज़ार किलोमीटर के सफ़र पर निकला चंद्रयान-द्वितीय महज़ दो किलोमीटर पीछे रह कर असफलता के अंधेरों में खो गया। यह बात बताती है कि कामयाबी के लिए 99 सही कदम उठाने के बाद भी अगर आपका आख़िरी क़दम ग़लत पड़ जाए तो आप असफ़ल हो जाते हैं। पूरी दुनिया आपसे असफलता भुलाकर आगे बढ़ने के लिए कहती हैपर उनकी हर बात बेमानी सी लगती है। दुनिया आपको अपनी मेहनत में सकारात्मकता ढूँढने को कहने लगती हैमगर वो आखिरी क़दम का लड़खड़ाना आपको टीस देता रहता है। श्रीमान सिवान का भावपूर्ण हो जाना यह दिखाता है कि उन्होंने मेहनत की थी। इस तरह भावुकता तभी आती है जब व्यक्ति पूर्ण निष्ठा के साथ एक स्वप्न देखता हैएवं उसे साकार करने के लिए पुरज़ोर मेहनत करता है। परंतु जब वह स्वप्न अंतिम क्षणों में बिखर जाता है तब दिल की भावना आँखों के रास्ते बाहर आ जाती हैं। 


ऐसे में 2023 में चंद्रयान-तृतीय से देश को कितनी उम्मीदें होंगी इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। आज इसरो के वैज्ञानिक हर उस भारतीय युवा के पर्याय हो गए जिसने बड़े सपने देखने की ज़रूरत की और फेल हुएपरंतु हौसला नहीं खोया और गिरने के बाद पुनः खड़े हुए एवं फिर आसमान में छेद करने का प्रण किया। गोपाल दास नीरज की यह पंक्तियाँ आज अमर हो गयी – “छिप-छिप अश्रु बहाने वालोंमोती व्यर्थ बहाने वालोंकुछ सपनों के मर जाने सेजीवन नहीं मरा करता है या यूँ कहें कि चाँद का दीदार जिसने एक बार कर लिया होउसको पाने की चाहत कितनी प्रबल होगी ये तो वो शक्स ही समझ सकता है। ऐसे में नाकामी एक जुनून बन कर उभरती है। चंद्रयान-तृतीय पर इसरो द्वारा की गई मेहनत मानो वैज्ञानिक चाँद से आँखों में आँखें डाल कह रहे हों कि तू मेरा शौक़ देखमेरा इंतिज़ार देख। इस बार वैज्ञानिक कोई भी गलती नहीं कर सकते। उन्होंने बेहिसाब परिश्रम कर आधुनिक तकनीकों द्वारा यह कृतिम उपग्रह तैयार किया। चन्द्रयान चाँद की सतह पर 23 अगस्त 2023 को लैंडिंग करेगा। पिछली असफलता के कारण इस बार इसरो कोई कसर नहीं छोड़ना चाहेगा। चाँद इस बार भारत के प्यार को अपनाएगा या ठुकराएगा यह राज तो वक्त के गर्भ में ही छिपा है।

परंतु यह बात अपने आप में अतिशयोक्ति है कि अपनी आज़ादी के महज 75 साल में भारत अनेकों चुनौतियों से जूझता हुआ एक भविष्यवादी वैज्ञानिक सोच वाला देश बन कर उभरा। ऐसे अनुसंधान करना एवं उनका प्रक्षेपण हर भारतवासी को गौरवान्वित करता है। कई दशकों तक गरीबी का दंश झेलते हुए भी भारत ने इसरो जैसे प्रतिष्ठित संस्थान स्थापित किए यह अपने आप में गर्व का विषय है। वीर भोग्या वसुंधरा’ से कहीं आगे निकलते हुए हमारे वैज्ञानिक वीर भोग्या ब्रह्मांड’ के सिद्धांत को चरितार्थ कर रहें हैं।  

चंद्रयान-तृतीय चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा एवं अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियाँ जमा करेगा। चंद्रमा पर पानी है या नहीं, जीवन संभव है या नहीं? चंद्रमा की गति का धरती पर क्या असर होता है एवं चंद्रमा से सौरमंडल का क्या विस्तार है? इस तरह की अनेकों महत्वपूर्ण जानकारियाँ यह उपग्रह साझा करेगा। भविष्य में यह जानकारियाँ भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण मानवजाति के लिए वरदान साबित होंगी। हम ना केवल चाँद को क़रीब से जानेंगे अपितु धरती एवं सौरमंडल को भी और अच्छे से जान पाएँगे। चंद्रयान-तृतीय का सफल हो जाना भविष्य के नवीन आयाम खोलेगा, इसरो जापान, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका एवं रूस के साथ भविष्य में संयुक्त अनुसंधान करने की प्रबलता रखेगा एवं सम्पूर्ण दुनिया का परिचय चंद्रमा से करवाने की संभावनाएं प्रबल करेगा। भविष्य में चाँद पर मानव को भेजना भी इसरो की अनेकों योजनाओं में से एक है।   

भारत की चंद्र यात्रा किसी जातक कथा से कम नहीं, ‘नानी माँ चाँद पर चरखा कात रही है’, बच्चों की कहानियों से ले कर चाँद पर यान उतार देना अपने आप में जादुई लगता है। देखना यह होगा की क्या वाकई चाँद महबूब जितना खूबसूरत है एवं उसके दाग असली हैं या नहीं? 23 अगस्त को चंद्रयान तृतीय जब चाँद की सतह पर चुम्बन देगा तब शायद मशहूर कवि इंदीवर की ये पंक्तियां ही गुनगुनाएगा - ‘ऐ रात जरा थम-थम के गुजर, मेरा चाँद मुझे आया है नज़र’!  

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