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Showing posts from 2021

साहिब बीबी और ग़ुलाम

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साहिब बीबी और ग़ुलाम सन   1962  में आई महान अभिनेता-निर्माता गुरुदत्त की प्रसिद्ध हिंदी फिल्म साहिब बीबी और ग़ुलाम किसी परिचय की मोहताज नहीं। फिल्म के सभी किरदार मानो पर्दे पर अभिनय नहीं करते बल्कि असल ज़िंदगी के पात्र हों ऐसा प्रतीत होते हैं ,  छोटी बहू के रूप में मीना कुमारी तो हिंदी फिल्म इतिहास में अमर ही हो गई।         इस फ़िल्म और इसके संवादों को कालांतर में ना जाने कितने रूपकों में गढ़ा गया। आज ,  दुनिया बहुत बदल चुकी है ,  किंतु फिर भी यह फ़िल्म सत्य ही प्रतीत होती है। आज के कम्युनिस्ट चीन के हालात को देखा जाए तो यह फिल्म उस पर एक सफल व्यंग साबित होती है।         डी॰के॰ सप्रू द्वारा निभाया गया पात्र चौधरी साहिब ,  चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर बखूबी फिट बैठता है। इस समय जिनपिंग महोदय ,  मंझले चौधरी जैसे तानाशाह बने हुए है जिन्हें पूरी दुनिया को अपने कब्जे में करना है। जिस प्रकार फ़िल्म में बड़े चौधरी का किरदार नहीं दिखाया गया है ,  इसे दर्शकों के विवेक पर छोड़ दिया गया की जब मंझले और छ...

ना ख़ुदा ही मिला ना विसाल -ए -सनम

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ना ख़ुदा ही मिला ना विसाल -ए -सनम  विगत एक वर्ष चर्चा में रहे तीनों कृषि कानूनों की यात्रा भी कानूनों की तरह ही दिलचस्प रही| जैसे कोरोना काल में चुपके से अध्यादेश ला इनका सृजन किया गया था, वैसे ही प्रधानमंत्री ने देश के नाम संबोधन कर इनका विसर्जन भी कर दिया | कानूनी भाषा में कहें तो यथा स्थिति बनी रहेगी, ना कोई नया नियम लागू हुआ, ना पुराने में कोई संशोधन | परंतु कृषि क़ानूनों से उत्पन्न आंदोलन के कारण देश के हालात यथा स्थिति में नहीं रहे, इस एक साल में देश ने बहुत कुछ बिगड़ते देखा और अपने लगभग सात सौ सपूतों को खोया | बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया तो कहीं माताओं ने अपने जिगर के टुकड़े को जाते देखा | बहनों का बलिदान भी कम नहीं रहा, अनेक बहनों ने अपनी जमीन बचाने लिए देह त्याग दिए |  इस आंदोलन से पूरे भारत को बहुत कुछ सीखना चाहिए | अगर हम अब भी कुछ ना सीखे तो हमारा भविष्य में टूटना तय है | सर्वप्रथम हर भारतवासी को यह बात स्वीकार करनी होगी कि नेताओं का किसी भी नवीन नीति, कानून या कार्य निर्धारण से निजी तौर पर कुछ भी नहीं जाता, उनकी छवि जस की टस बनी रहती है, पर जनता आपस में ज...

बदलते परिप्रेक्ष्य में बाल दिवस

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 बाल दिवस विशेषांक बदलते परिप्रेक्ष्य में बाल दिवस हर सुबह विद्यालयों की ओर जाते हंसते खेलते बच्चों की क़तारें दिखना मानो पिछली सदी की बात हो गई। हर शहर में प्रातः किताबों की दुकानों के सामने विभिन्न स्कूलों की वर्दी पहने छात्रों की भीड़; साइकिल, रिक्शा, आटो एवं बसों से सरपट आते बच्चे, दौड़ते भागते विद्यार्थी अब प्राचीन बातें लगती हैं। मार्च 2020 में जब प्रथम लॉकडाउन लगाया गया तब यह किसी ने भी नहीं सोचा था कि आने वाले दो साल कोरोना का ग्रास बन जाएँगे। अगर यह कहा जाए कि इस सर्वव्यापी महामारी ने सबसे ज़्यादा विद्यार्थी जीवन को प्रभावित किया तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जहां एक ओर कोरोना का पुराना डर अभी समाप्त नहीं हुआ है, वहीं दूसरी ओर डेंगू, वायरल बुखार एवं वायु प्रदूषण ने समस्या दोगुनी कर दी है।                 14 नवंबर का दिन हर विद्यालय में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। कोरोना काल से पहले इस दिन बच्चे अपने पूरे उमंग में रहते थे एवं विद्यालयों में एक पर्व जैसा उत्सव का माहौल हुआ करता था। बच्चों को इस दिन का इंतज़ार महीनों से रह...

सी.बी.एस.ई. ने जारी की टर्म-1 की डेट-शीट

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सी.बी.एस.ई. ने जारी की टर्म- 1  की डेट-शीट    सी.बी.एस.ई.   टर्म- 1  परीक्षा   -   डेट-शीट कक्षा दसवीं कक्षा बारहवीं 30  नवम्बर – समाजिक विज्ञान   3  दिसम्बर – अंग्रेज़ी  2  दिसम्बर – विज्ञान   6  दिसम्बर – गणित  4  दिसम्बर – गणित  7  दिसम्बर – शारीरिक शिक्षा  8  दिसम्बर – कम्प्यूटर  8  दिसम्बर – बिज़नेस स्टडी  9  दिसम्बर – हिंदी  10  दिसम्बर – फ़िज़िक्स  11  दिसम्बर – अंग्रेज़ी  13  दिसम्बर – अकाउंटन्सी    14  दिसम्बर – रसायनिक विज्ञान   15  दिसम्बर – अर्थशास्त्र  16  दिसम्बर – हिंदी  17  दिसम्बर – समाजिक विज्ञान   18  दिसम्बर – बायआलॉजी  (सम्पूर्ण डेट शीट बोर्ड की वेब साइट से प्राप्त करें) सी.बी.एस.ई. ने कक्षा दसवीं एवं बारहवीं की प्रथम टर्म परीक्षा की डेट- शीट जारी कर दी है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर कई दिनों ने चल रही अटकलें शांत हो गयी। शिक्षकों...

सी.बी.एस.ई. बोर्ड परीक्षा निकट

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सी.बी.एस.ई. बोर्ड परीक्षा निकट  कोरोना महामारी ने पिछले दो सालों से पूरी दुनिया को अपना ग्रास बनाया हुआ है। यह कहना कोई अतिशियोक्ति नहीं होगा कि सम्पूर्ण जगत में अगर इस महामारी ने किसी को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है, तो वह है शिक्षा का क्षेत्र। पिछले दो वर्षों में स्कूली शिक्षा ने बहुत कुछ खोया है एवं अनेकों नवीन प्रयोग भी किए हैं। जहाँ ऑनलाइन शिक्षा पद्दती अब न्यू नॉर्मल हो चली है वहीं परीक्षा के स्वरूप में भी कई बदलाव किए गए हैं। इसी का उदाहरण है सी.बी.एस.ई. द्वारा 5 जुलाई 2021 को जारी किया सर्कुलर – ‘Acad-51/2021’ के अनुसार निर्धारित की ‘टर्म परीक्षाएँ’। इस साल कक्षा दसवीं एवं बारहवीं कि बोर्ड परीक्षाएँ दो भागों में ली जाएँगी – प्रथम अवधि नवम्बर में तथा द्वितीय अवधि परीक्षा मार्च महीने में।  पाठ्यक्रम को दो बराबर भागों में बाँटा गया, पहले भाग (आधे पाठ्यक्रम) की परीक्षा नवम्बर महीने में ली जाएगी। यह परीक्षा पुराने सब्जेक्टिव बोर्ड प्रश्नपत्र के बिलकुल विपरीत बहु विकल्पीय प्रश्नपत्र के रूप में ली जाएगी। हर विषय का प्रश्नपत्र मल्टिपल चॉईस क्वेस्चन (एम॰ सी॰क्यू॰) आधारित होगा।...

Poem for my Son

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In Remembrance of my Grandfather

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बिन शिक्षक सब सून

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बिन शिक्षक सब सून सम्पूर्ण भारतवर्ष ने कुछ दिन पूर्व शिक्षक दिवस मनाया ,  हर व्यक्ति ने अपने-अपने शिक्षकों को याद किया एवं व्हाट्सएप ,  ट्विटर तथा फेसबुक पर ढेरों मेसेज का ताँता लगा रहा। किंतु हमें अपने आप से एक प्रश्न पूछना चाहिए कि हम सब भारतवासी क्या सच में शिक्षकों को उनका उचित सम्मान देते हैं या ये सिर्फ़ सोशल मीडिया के दिखावे भर रह गया है ?  कोरोना महामारी के इन दो सालों ने हमारे शिक्षा जगत की नींव हिला कर रख दी। जहां एक ओर हर किसी ने बच्चों के भविष्य को ले कर खूब चिन्ताएँ दिखायीं एवं आने वाले समय के आलेखन पर खूब रेखाएँ खींची वहीं किसी ने भी प्रखर स्वर में शिक्षकों के भविष्य को लेकर चिंता नहीं दिखायी ,  ना ही इन दो वर्षों में शिक्षकों की जीविका किस प्रकार चली इस पर किसी का ध्यान गया। बुद्धिजीवियों ने बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्तर का मूल्यांकन बखूबी किया पर शिक्षकों के मनोविज्ञान पर हर जगह अपने नेत्र मूँद लिए।   दो दशकों का अनुभव समेटे प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्री विकास अत्रि कहते है: ज़रा बीते दो वर्षों पर नज़र डाल कर देखा जाए तो पता चले कि शिक्षक ने अपने आप क...
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  Such a Polarised Nation India – with more than 1.3 billion people constitutes 18 percentage of the world’s population, is a country so diverse that many historians and philosophers have called it a continent in itself. The diversity could be seen in terms of geography, population, beliefs, languages, culture, religious practices, traditions etc. making the list endless. This diversity which was considered as our strongest binding factor is turning up as our strongest dividing factor. Of late, the country is undergoing a strong churning creating polarity within. It is almost impossible to unite such a gargantuan population on any man made postulate or belief such a nationalism. Even ‘God’ has found his various avatars on this land but failed to unite people on single paradigm. With such a diverse country such as ours, the textbook concept of ‘unity in diversity’ seems to be restricted and flawed only to be found in bits and pieces. We are divided on the lines of religion, caste, g...