बदलते परिप्रेक्ष्य में बाल दिवस


 बाल दिवस विशेषांक

बदलते परिप्रेक्ष्य में बाल दिवस

हर सुबह विद्यालयों की ओर जाते हंसते खेलते बच्चों की क़तारें दिखना मानो पिछली सदी की बात हो गई। हर शहर में प्रातः किताबों की दुकानों के सामने विभिन्न स्कूलों की वर्दी पहने छात्रों की भीड़; साइकिल, रिक्शा, आटो एवं बसों से सरपट आते बच्चे, दौड़ते भागते विद्यार्थी अब प्राचीन बातें लगती हैं।


मार्च 2020 में जब प्रथम लॉकडाउन लगाया गया तब यह किसी ने भी नहीं सोचा था कि आने वाले दो साल कोरोना का ग्रास बन जाएँगे। अगर यह कहा जाए कि इस सर्वव्यापी महामारी ने सबसे ज़्यादा विद्यार्थी जीवन को प्रभावित किया तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जहां एक ओर कोरोना का पुराना डर अभी समाप्त नहीं हुआ है, वहीं दूसरी ओर डेंगू, वायरल बुखार एवं वायु प्रदूषण ने समस्या दोगुनी कर दी है।   

            

14 नवंबर का दिन हर विद्यालय में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। कोरोना काल से पहले इस दिन बच्चे अपने पूरे उमंग में रहते थे एवं विद्यालयों में एक पर्व जैसा उत्सव का माहौल हुआ करता था। बच्चों को इस दिन का इंतज़ार महीनों से रहता था, आज के दिन विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती थी परंतु विभिन्न प्रस्तुतियों के ज़रिए छात्र समाँ बांध दिया करते थे। परंतु विगत दो वर्षों से सब सूना सूना है । यूँ तो कुछ स्कूल खुल गए हैं, किंतु वह पहला सा उल्लास नहीं लौटा। आज जहां कोरोना दिशानिर्देशों के कारण कोई भी ग्रुप एक्टिविटी करने में विद्यालय सकुचा रहे हैं वहीं अभिभावकों के मन का डर भी अभी निकला नहीं है। छोटे बच्चों को टीका ना लगना भी एक कारण है कि कोई सकारात्मक पहल नहीं कर रहा है। कोरोना काल के बाद की स्कूली दुनिया पूर्णतः बदल चुकी है। टर्म-1 बोर्ड परीक्षा के निकट होने का असर भी बाल दिवस कार्यक्रमों पर दिखाई दे रहा है।  


शिक्षा का नया दौर चुपके से दबे पाओं आ अपनी जगह बना चुका है। अब यह है ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का युग। बीते दो सालों में यही न्यू नॉर्मल हो चला है। और अब अगले सत्र से स्कूल पूर्णतः खुल भी जाए फिर भी यह नवीन शिक्षा पद्दती जाने वाली नहीं हैं। स्कूली शिक्षा का एक बड़ा भाग अब सदा के लिए ऑनलाइन ही हो चला है। शुरुआती दौर में विद्यालयों, शिक्षकों, अभिभावकों एवं छात्रों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा परंतु सभी ने इसको सहज ही स्वीकार भी लिया और अब यहीं कार्यरत शिक्षा प्रणाली बन चुकी है। आज समय की मांग देखते हुए बाल दिवस भी ऑनलाइन ही हो चला है। हरियाणा सरकार द्वारा हर जिले के बाल भवन में होने वाले कार्यक्रम भी विगत वर्ष ऑनलाइन हो गए। 


आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्यूँकि वे बच्चों से बहुत प्यार किया करते थे। बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कह कर पुकारते और नेहरू जी उनमें भविष्य के भारत को देखते। तब से यह परम्परा निरंतर चली आ रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का बाल प्रेम चाचा नेहरू से कम नहीं है। मोदी ने अनेकों कार्यक्रमों के ज़रिए पिछले सात सालों में बच्चों से वार्तालाप लिए। जिनमें से परीक्षा पर चर्चा, शिक्षक दिवस, बाल दिवस एवं मन की बात प्रमुख़ रहे। 


कोरोना के बाद शिक्षा जगत की परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल चुकीं हैं। ऐसे में केंद्र एवं राज्य सरकारों को आज बाल दिवस के दिन यह संकल्प लेना चाहिए कि भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिये बच्चों की ज़रूरतों को हर हाल में पूरा करना होगा। अगर हम अपने सपनों का स्वर्णिम भारत बनाना चाहते हैं तो शिक्षा एवं बाल सुधार पर विशेष बल देना होगा। आज भारत के छात्रों को अमरीका, सिंगापुर, अंग्रेज़ी एवं चीनी युवा वर्ग से कड़ी चुनौती मिल रही है।

     

आज समय की माँग यह है कि अगर शिक्षा को सुचारु रूप में चलाना है तो हर छात्र तक तकनीक को उपलब्ध करवाना होगा। सरकार एवं अभिभावकों को अब यह समझ लेना होगा कि उनके बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए तकनीकी आवश्यकताएँ पूरी करनी होंगी। हर घर में अब एक कंप्यूटर तथा डाटा कनेक्टिविटी होना अनिवार्य हो चुका है। स्कूली ही नहीं वरन विश्वविद्यालय शिक्षा भी अब इसी ओर अग्रसर है। भविष्य में होने वाली सभी परीक्षाएं भी ऑनलाइन प्रारूप में ही ली जाएँगी। इस बार जब नीट, आई॰आई॰टी॰ जे॰ई॰ई इत्यादि परीक्षाएँ ऑनलाइन ली गयी, तो बहुत छात्रों को समस्याओं का सामना करना पड़ा। 


नेताओं की भाषण बाज़ी से कुछ हासिल नहीं होने वाला है। सरकार को बजट में प्रावधान कर देश के छात्रों के लिय नवीन बुनियादी ढाँचा तैयार करना होगा, जिसमें देश के अंतिम कोने में बने विद्यालय तक तकनीक एवं डाटा कनेक्टिविटी की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी। 


प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्री विकास अत्री कहते हैं कि गत दो वर्षों में विद्यार्थियों का बहुत नुक़सान हुआ है। बच्चों के स्कूल बंद थे, रिश्तेदारों के घर भी आना जाना नहीं हुआ, ऐसे में बच्चों का समाजीकरण बिल्कुल शून्य हो गया। इसे मनोविज्ञान में बहुत बड़ी चुनौती माना गया है। श्री अत्री कहते हैं कि इसके दुष्परिणाम भविष्य में दिखायी देंगे। खेलों से भी बच्चे दूर हो गए, जिसका असर उनकी शारीरिक विकास पर दिखने लगा। निरंतर कम्प्यूटर स्क्रीन को निहारने से आँखों पर मोटे चश्में लग गए। 


शिक्षा सत्र 2021-22 को तो पूर्ण ही समझो। नए सत्र से शिक्षा के मानक भी बदले जा चुके होंगे। यह महामारी कब तक चलेगी, कोई नयी बीमारी या अड़चन, सुरसा रूपी मुँह कब खोल ले, यह कहा नहीं जा सकता। ऐसे में स्कूली शिक्षा कब तक अपने पहले प्रारूप में आ पाएगी यह कहना बहुत मुश्किल है, तथा विवेकी व्यक्ति वही है जो समय के बदलाव को स्वीकारे, ना कि उसकी आलोचना में ही समय गंवाता रहे। 


अगर सच्चे अर्थ में बाल दिवस को साकार करना है तो हमें अपने बच्चों से यह वादा करना होगा की हम उनको विश्वस्तरीय विद्यालय एवं महाविद्यालय प्रदान करेंगे। उनके सर्वांगीण विकास को प्राथमिकता दे बाल स्वास्थ्य एवं खेल कूद पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। वरना आज का दिन भी साल के अन्य किसी दिन की तरह ही हो कर रह जाएगा एवं अपनी प्रासंगिकता खो देगा। समाज को भी एक जुट हो आगे आना चाहिए एवं अपने नन्हें मुन्नों को एक सुनहरा अवसर प्रदान कर खोए हुए समय की आपूर्ति करनी चाहिए।  

                           

हर छात्र को भी इस बदलाव को स्वीकारना होगा एवं अपनी शिक्षा पद्धति में यथा अनुचित बदलाव कर अपने को शीर्ष तक ले जाना होगा। छात्र टाईम-टेबल बना अपनी पढ़ाई करें, पूरा दिन मोबाइल की स्क्रीन को ना निहारें। शीत ऋतु में बच्चे अपनी सेहत का ध्यान रखें एवं अपनी पढ़ाई जारी रखें। बोर्ड परीक्षा वाले विद्यार्थी सैम्पल पेपर ज़रूर हल करें एवं बदले हुए सिलेबस के अनुसार ही पढ़ाई करें। सभी छात्रों को बाल दिवस की हार्दिक बधाइयाँ।

           

- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

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