जीना इसी का नाम है



जीना इसी का नाम है   

6सितम्बर के दरमियाँ की वो रात देश में एक गमगीन माहौल सा बना गई। चन्द्रयान द्वितीय की चाँद की सतह पर असफल लैंडिंग ने पूरे देश में गम्भीर माहौल पैदा कर दिया। यह भी शायद पहली बार ही हुआ की पूरा देश आधी रात को जाग कर पूरे उत्सुकता के साथ यह एतिहासिक पल देख रहा था। अगली सुबह आए एक वीडियो  ने सारे देश को गमगीन कर दिया। जब इसरो प्रमुख़ श्री के सिवान अपनी भावुकता संभाल नहीं पाए और प्रधानमंत्री के गले लग उन्होंने अपना अश्रु बाँध तोड़ दिया। 

यह कोई साधारण पल नहीं था, जिसने भी इस विडीओ को देखा वह अपने आप को रोक नहीं पाया और ख़ुद भी भावुक हो गया। चन्द्रयान प्रथम से चन्द्रयान द्वितीय तक के मिशन पर इसरो के वैज्ञानिकों ने अपनी ज़िंदगी के बहुमूल्य ग्यारह साल दिए। लाख 80 हज़ार किलोमीटर के सफ़र पर निकला चन्द्रयान द्वितीय महज़ दो किलोमीटर पीछे रह कर असफलता के अंधेरों में खो गया। यह बात बताती है कि कामयाबी के लिय 99 सही क़दम उठाने के बाद भी अगर आपका आख़िरी क़दम ग़लत पड़ जाए तो आप असफ़ल हो जाते हैं। पूरी दुनिया आपसे असफलता भुलाकर आगे बढ़ने के लिय कहती है, पर उनकी हर बात बेइमानी सी लगती है। दुनिया आपको अपनी मेहनत में सकारातमक्ता ढूँढने को कहने लगती है, मगर वो आख़िरी क़दम का लड़खड़ना आपको टीस देता रहता है। श्रीमान सिवान का भावपूर्ण हो जाना यह दिखाता है कि उन्होंने मेहनत की थी। इस तरह भावुकता तभी आती है जब व्यक्ति पूर्ण निष्ठा के साथ एक स्वप्न देखता है, एवं उसे साकार करने के लिय पुरज़ोर मेहनत करता है। परंतु जब वह स्वप्न अंतिम क्षणों में बिखर जाता है तब दिल की भावना आँखों के रास्ते बाहर आ जाती हैं। एक पल तो आदमी अपने को टूटा हुआ महसूस करने लगता है और फ़ेलीयर उसके ऊपर हावी होने लगता है। 

इस पल को हर वो व्यक्ति महसूस कर सकता है, जिसने एक सपना देखा हो और उसको पूरा करने के लिय बेहद मेहनत करी हो एवं अपनी ज़िंदगी के बहुमूल्य दिन गँवाये हों। अब तक चाँद पर जाने के 110 प्रयोगों में से 45 असफल हुए हैं। इसी का उदाहरण है कि, इस बार क्रिकेट वर्ल्ड कप में फ़ाइनल की हार के बाद न्यूज़ीलैंड के कई खिलाड़ियों ने कहा कि वो जीते जी इस हार को कभी भूल नहीं पाएँगे। महान टेनिस खिलाड़ी रॉजर फेडरर कहते हैं कि दो  चैंपियनशिप प्वाइंट होने के बाद भी विम्बलडन की हार ने उन्हें सोने नहीं दिया। 1994 वर्ल्ड कप फ़ुट्बॉल फाइनल में रोबेर्टो बाग्गीयो अपनी मिस पेनल्टी को सारी उम्र भुला नहीं पाए। चार साल आइ॰ए॰एस॰ की तैयारी करने पर जब कोई छात्र मात्र दो अंक से मेरिट सूची से बाहर हो जाए तब वह इस पल को महसूस करता है। मात्र दो सेकंड से जब कोई अभिलाषी सेना की भर्ती से दूर हो जाए तब वह इस क्षण को जीता है। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीतोपदेश में यह ही कहा, “हे अर्जुन! तुम्हारा नियंत्रण अपने बाणों पर हो सकता है, परंतु उस आखेट पर नहीं जिसे  तुम साध रहे हो”।     

मगर बड़े सपने देखने वालों की यही नियति होती है। चलना ही ज़िंदगी का नाम है, उन्हें बड़े सपने देखते हुए बड़ी असफलताएं देखनी होती है। बड़ी ज़िल्लत सहनी पड़ती है, बड़े दुख देखने पड़ते हैं। दुनिया व अपनों के अट्ठहास से कई बार अपने को बेआबरू सा हुआ महसूस होते हुए भी सहना पड़ता है। आने वाले समय के लिय मनोविज्ञानिक तनाव भी झेलना पड़ता है। कुछ अपने ख़ास भी आपकी इस असफलता को अपका पागलपन क़रार दे देते हैं, और अपने रास्ते अलग कर लेते हैं। ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम ख़ुद से किए हुए वादे को पूरा ना कर पाए।        

मगर उसी दर्द को पीते हुए फिर खड़ा होना पड़ता है। चाहे शरीर कितना भी टूट क्यों न गया हो, आत्मा कितनी भी थक क्यों न गई होक्योंकि कोशिश करना छोड़ देना कभी विकल्प नहीं होता। महान व्यक्तियों ने ठीक ही कहा है, जब आप सोना ढूंढने के लिए खुदाई करते होतो आखिर में ये नहीं देखते कि कितनी मिट्टी खोदी वरन यह देखते हैं कि कितना सोना हासिल हुआ। एवरेस्ट पर चढ़ाई की अपनी पहली असफल कोशिश के बाद एडमंड हिलेरी ने एवरेस्ट पर्वत से कहा था -“मैं फिर आऊंगा तुम्हें फ़तह करने, क्योंकि एक पर्वत के तौर पर तुम और बढ़ नहीं सकते, मगर एक इंसान के तौर पर मेरा हौसला और बड़ा हो सकता है"। इसके बाद जो हुआ वो इतिहास है। 

ऐसे में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार एक कुशल लीडर की तरह वर्ताव किया, उसका शब्दों में वर्णन करना बेहद मुश्किल है। उन्होंने एक सच्चे सर्वोच्च नेता की तरह वज्ञानिकों का उत्साहवर्धन किया एवं श्री सिवान को गले लगा संतवना दी। मोदी ने कहा कि वे तथा पूरा देश उनके साथ है और भविष्य में चाँद को छूने की कामना की। आज श्री सिवान हर उस भारतीय युवा के प्रयाय हो गए जिसने बड़े सपने देखने की ज़रूरत करी और फ़ेल हुए; परंतु हौसला नहीं खोया और गिरने के बाद पुनः खड़े हुए एवं फिर आस्मां में छेद करने का प्रण किया। गोपाल दास नीरज की यह पंक्तियाँ आज अमर हो गयी – “छिप-छिप अश्रु बहाने वालोंमोती व्यर्थ बहाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने सेजीवन नहीं मरा करता है”।
           
-    जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद 

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