समय बड़ा बलवान - A Story by me
समय बड़ा बलवान
उत्तरप्रदेश के एक छोटे से कसबे कर्नलगंज के एक मद्धमवर्गी परिवार
में जन्मा नवदीप, जन्म से ही होनहार छात्र था | उसने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई
पूरी की व मुंबई की एक प्रसिद्ध कंपनी में नौकरी पायी | परिवार में ख़ुशी की लहर
दौड़ पड़ी और नवदीप भी अपनी सपनों की दुनिया बुनने में लग गया | परिवार में पिता जी,
माँ व छोटी बहन थे, ढेर सारी खुशियाँ थी बस पैसे थोड़े कम रहते थे | नवदीप ने बचपन
से पैसों का आभाव देखा था | मुंबई में नवदीप की मुलाकात भक्ति से हुई, भक्ति भी
नवदीप के शहर की ही थी और टाटा कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजिनियर के पद पर आसीन थी |
नवयुगल में प्रेम पनपा और दोनों में नजदीकियां भी बढ़ने लगी, अब तो रोज़ का
मिलना-जुलना आम हो चला | भक्ति शहर के प्रसिद्ध सर्राफ की बेटी थी, उनका परिवार
अभी भी रुढ़िवादी बेड़ियों में बंधा हुआ था वहीँ नवदीप क्षत्रिय जाती से था व उसका
परिवार खुले विचारों का था | नवदीप का घर भी पुराना ही था, भक्ति महलों में
पली-बढ़ी लाडली थी |
मुंबई में रहते हुए करीब देढ़ वर्ष ही हुआ था की किस्मत ने अपना फेर
दिखाया ओर अक्समात ही नवदीप के पिता जी चल बसे | परिवार की खस्ता हालत देखते हुए
नवदीप को मुंबई छोड़ना पड़ा | यूँ तो पिता जी की पेंशन आ रही थी, पर परिवार में आदमी
की सख्त ज़रूरत थी, छोटी बहन भी अभी पढ़ ही रही थी और माँ की भी ढलती उम्र थी | छोटा
शहर होने के नाते कोई कंपनी तो नहीं थी, नवदीप ने दिल पे पत्थर रख एक स्कूल में ही
नौकरी करने का फैसला किया | भक्ति इस से बिलकुल भी प्रसन्न नहीं थी, मन तो नवदीप
का भी नहीं था पर हालात ही कुछ ऐसे थे की और कोई चारा भी ना था | नवदीप ने अमेरिका
की एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में नौकरी के लिए आवेदन दिया हुआ था, जिसके जवाब का
उसको बहुत दिनों से इंतज़ार था पर अभी तक कोई सन्देश आया ही ना था | नवदीप नौकरी तो
कर रहा था पर उसका मन अभी भी मुंबई में ही अटका हुआ था | उसके दोस्त भी उसके इस नए
व्यवसाय से कोई ज्यादा खुश नहीं थे |
समय बीता और नवदीप ने भक्ति से शादी की बात की, अब तक दोनों के घरों
में इस बात का खुलासा हो चुका था | बेटे की राज़ी में माँ भी राज़ी थी, पर भक्ति के
घर वाले इस रिश्ते से ज्यादा खुश नहीं थे | उन्होंने अपनी बेटी पर दबाव बनाया पर
भक्ति ने कहा की वह अपने पति को अपने साथ ले जाएगी | फिर बस नवदीप की बहन की शादी
तक की ही तो बात है, एक बार बहन बिहाई गई, तो माँ को भी संग ही ले चलेंगे | सगाई
का दिन तय हुआ और तैयारियां शुरू हुई | नवदीप अपनी प्रियसी को खुश करने में कोई
कसर नहीं छोड़ना चाहता था, उसने सोचा हुआ था की वो अपनी सगाई में उसे कीमती हीरे की
अंगूठी ही देगा | पर इतने पैसे नहीं थे, माँ ने बेटे के चेहरे की शिकन को पढ़ लिया
ओर पिताजी की चैन उसके हाथ में थमा दी | नवदीप भौचाक्का रह गया | “ये क्या कर रही
हो माँ, ये तो पिताजी की आखिरी निशानी है“, नवदीप ने रुआंसा सा होकर कहा | “पिताजी
की निशानी तो तू है बेटा, ऐसी हजार चैन तेरे ऊपर कुर्बान हैं “, माँ ने अपने लाडले
को समझाया | नवदीप ने अपनी आँखों में ही अपने आंसुओं को छुपाया और बाज़ार से भक्ति
के लिए एक अच्छी सी अंगूठी खरीद ली |
सगाई का दिन आया और नवदीप अपनी माँ ओर बहन के साथ भक्ति से आलिशान घर
पहुंचा | नवदीप का मन हिलोरे ले रहा था,
आखिर उसका सपना जो पूरा होने जा रहा था | बड़े ही रौब से उसने अपनी जेब से अंगूठी
निकाली ओर भक्ति को पहनाई | भक्ति के पिता ने भी अपनी लड़की तो एक अंगूठी थमाई और
उसने नवदीप को वह अंगूठी पहना दी | पंडित जी ने कुछ मन्त्र बोले और हवनकुंड में
कुछ आहुति डलवाई ; सामग्री, घी इत्यादि से नवदीप के हाथ गंदे से हो गए थे | नवदीप
बाथरूम में अपने हाथ साफ़ करने गया, साबुन अभी लगाया ही था की उसके हाथ में पहनी
अंगूठी का चमकीलापन पानी में उतर गया | अब अंगूठी अपने मूल स्वरुप में थी, ना जाने
वो चांदी थी, लोहा था या स्टील की बनी थी , पर एक बात तय थी की उसपर सोने की सिर्फ
पॉलिश थी, जो अब उतर चुकी थी | नवदीप के पैरों तले ज़मीन ख़िसक चुकी थी | ऐसा लगा
मानो उसको किसी ने उसकी औकात दिखा दी हो | उसकी आँखों में आसूं आ गए, उसको लगा
जैसे किसी ने उसके कान में कहा हो – ‘गरीब नवदीप तुम इसी के योग्य हो’ | दर्पन में
मानो भक्ति के पिताजी उससे कह रहे हो, “जिसकी जैसी औकात, उसका वैसा सम्मान” |
तमतमाता सा नवदीप बहार आया, और उसने भक्ति के सामने अपना हाथ आगे कर
दिया | भक्ति ने ऐसे रियेक्ट किया जैसे कुछ हुआ ही ना हो, जैसे वो सब पहले से ही
जानती हो | “ओ हो नवदीप, तुम भी ना छोटी-छोटी बात पर मुहं बना लेते हो, पापा इसे
ठीक कर देंगे, अब इसे अपनी जेब में रख लो”, उसने तपाक से कहा | इतना सुनते ही मानो
नवदीप जिंदा लाश बन के रह गया | अपमान का ये कड़वा घूँट उसके हलक के नीचे नहीं उतर
रहा था | उसकी माँ ने उसे आँख के इशारे से चुप रहने को कहा, और कोई चारा भी नहीं
था | “आओ मैं तुम्हे अपने जीजू से मिलवाती हूं“, भक्ति ने नवदीप का हाथ पकड़ा और
अपनी बड़ी बहन व बहनोई के पास ले चली | भक्ति के जीजा ने हाथ में कॉफ़ी का कप पकडे
हुए तंज़ किया, “अब दोनों मिल के ट्यूशन पढ़ाना, भई देखो एक से भाले दो” | नवदीप को
ये बातें खंजर की तरह चुभ रहीं थी | बड़ी बहन ने भी कसर नहीं छोड़ी, उसने भी हसंते
हुए कहा, “कोई ज़रूरत हो तो बताना, हम एक दिन बाहर खाना खाने नहीं जायेंगे,
तुम्हारी एक महीने की तनख्वा निकाल आएगी” | भक्ति ने भी बहन के सुर में सुर
मिलाया, “वैसे दीदी, आई हेट टीचर्स” | दोनों बहनें ठहाका लगा के हसं पड़ी | नवदीप
की तो जैसे साँसे ही थम गई हो | उसकी माँ ये सारा मंज़र देख रही थी, वो भी खून का
कड़वा घूँट पी कर चुप खड़ी रहीं | पंडित जी ने दो महीने बाद शादी का महूरत निकला और
फिर सबने विदा ली |
नवदीप पूरी रात सो ना सका, पूरी रात उसने रो-रो कर काटी | उसके लिए
यह सोच पाना भी मुश्किल था की भक्ति उसके साथ ऐसा करेगी | उसे ये सब एक डरावने
सपने जैसा लग रहा था, मानो आँख खुलेगी तो ऐसा कुछ नहीं होगा | माँ भी अपने लड़के की
मनोदशा भांप चुकी थी | सिवाए भगवान के आगे हाथ जोड़ने के उसके वश में कुछ नहीं था |
अगले दिन नवदीप सुबह स्कूल जाने के लिए बे-मन से तैयार हुआ, आँखें सूज के लाल-लाल
ओर मोटी हो गई थी | माँ भी अपने दिल के टुकड़े को सीने से लगा के रोना चाहती थी, पर
इस समय एक अनजान सी ख़ामोशी ने घर को जकड़े हुआ था | नवदीप ने स्कूल फ़ोन किया ओर कहा
की मैं आज हाफ –डे में आयूंगा | नाश्ता किये बिना ही वो फिर अपने कमरे में चला गया
| दस बजे के करीब वो स्कूल जाने के लिए बहार निकला ही था, अभी अपनी एक्टिवा
स्टार्ट ही की थी की दरवाज़े की घंटी बजी और डाकिये ने उसको एक लिफाफा थमा दिया |
नवदीप ने रुआंसी सी आँखों से उसे देखा और खोल कर पढ़ने लगा | पत्र यु.एस. की एक
विख्यात यूनिवर्सिटी का ऑफर लैटर था | पढ़ते पढ़ते नवदीप की आँखों से गंगा-यमुना बह
निलकी | इतने में माँ भी आँगन तक आ गई | एक लाइन पर आ कर नवदीप की आँख अटक गई,
उसमें लिखा था की यूनिवर्सिटी दो साल तक आपको कॉन्ट्रैक्ट पर रखेगी, इन दो सालों
तक आप वापिस इंडिया नहीं आ सकते | दस दिन के अन्दर रिपोर्ट करें नहीं तो ऑफर रद्द
किया जायेगा | नवदीप ने सारा मजमून अपनी माँ को बताया | माँ ने सूखे से मुहं से
कहा, “बेटा, जाने की तैयारी करो”, उसमें बिना देरी किये अपने गले में पहना काला
धागा उतरा, उसमें जो छोटा सा सोने का ओम वाला लॉकेट था वो नवदीप के हाथ में थमा
दिया | नवदीप कुछ बोलता, इस से पहले ही माँ ने कहा, आज स्कूल से छुट्टी ले ले,और
टिकेट बुक करवा ले | एक हफ्ते में नवदीप दिल्ली एअरपोर्ट पर खड़ा था, माँ ने
नम-आँखों से उसको विदा किया ओर नई ज़िन्दगी शुरू करने के नसीहत दी | करीब एक महीने
बाद भक्ति नवदीप के घर आई, और रौब से बताया की मैं पच्चीस दिन सिंगापुर रह के आई
हूं, ‘माँ जी नवदीप कहाँ है?’ | माँ ने कहा, “वहीँ, जहाँ उसे होना चाहिए था, वो
अमरीका चला गया है” | यह सुन भक्ति से होश-फाक्ता हो गए | वो जाने लगी तो माँ ने
उसे रोका ओर कहा, ‘तुम्हारे लिए वो कुछ छोड़ के गया है’ | माँ ने भक्ति के हाथ में
सगाई वाली अंगूठी रख दी ओर कहा खुश रहो बेटा | भक्ति बिना कुछ जवाब दिए वहां से
चली गई मानो वक़्त ने उसको जवाब दे दिया हो | साल भर बाद नवदीप ने माँ ओर बहन को
अमेरिका बुला लिया और भक्ति की भी एक सेठ परिवार में शादी हो गई |
- जगदीप सिंह मोर
Interesting story....it happens only in stories or movies not in reality..In real people forget all the things very easily
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