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क्या व्यावहारिक हैं इतने बड़े आयोजन?

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  इस लेख का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति/वर्ग की धार्मिक मान्यताओं को चुनौती देना कदापि नहीं है, वरन परिस्थितियों को प्रशासनिक एवं व्यावहारिक नजरिए से देखने हेतु है।  महाकुंभ 2025 वर्तमान कालखंड का ध्रुव तारा बना हुआ है। धरती के एक छोटे से भूखंड पर एक समय में इतने मनुष्यों का एक साथ जमावड़ा अपने आप में असाधारण है। इतने बड़े मेले का आयोजन अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। इसकी तैयारियों में असंख्य लोगों का परिश्रम, अगणित घंटों का पुरुषार्थ शामिल है। उत्तर प्रदेश सरकार एवं मेला प्रशासन इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं। परंतु मौनी अमावस्या की रात्रि पर हुई भगदड़ एवं पुण्यात्माओं की क्षति ने इस महान उत्सव की शान में धब्बा लगा दिया। इसके उपरांत विभिन्न विवेचनाओं का जन्म हुआ और छींटा-कशी का दौर भी प्रारम्भ हुआ। जहां एक ओर मृतकों की संख्या को लेकर असमंजस है वहीं यह भी आरोप है कि सरकार ने क्षति का सटीक अवलोकन आमजन के समक्ष नहीं रखा है। इसी प्रक्षेप में यह दक्ष प्रश्न उठता है कि, क्या हमें इतने बड़े आयोजन करने चाहिए? क्या प्रशासनिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण से ऐसे आयोजन सम्भव हैं? आइए एक नज़र महाकुंभ 2...