गुरु जी हुए ट्रोलिंग का शिकार
गुरुजी हुए ट्रोलिंग का शिकार
आज के इस आधुनिक युग में सोशल मीडिया का बड़ा बोलबाला है। सोशल मीडिया की ताकत बेमिसाल है। यह किसी भी व्यक्ति को रातों रात सितारा बना सकती है या फिर चंद मिनटों में मिटा भी सकती है। आज कल सोशल मीडिया का उपयोग लोग किसी भी प्रतिष्ठित व्यक्ति को बदनाम करने के लिए ज़्यादा कर रहे हैं। ख़ासकर ट्विटर का उपयोग लोग प्रसिद्ध व्यक्तियों को ट्रोल करने के लिए कर रहे हैं। हद तो तब हो गई जब इन ट्रोल्स ने शिक्षकों को भी नहीं बक्शा।
हाल ही में इन नफ़रती तत्वों ने इस दौर के महान शिक्षक श्री विकास दिव्यकीर्ति को अपनी नफ़रती ट्रोलिंग का शिकार बनाया। श्री दिव्यकीर्ति संघ लोक सेवा आयोग द्वारा ली जाने वाली भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा के लिए कोचिंग प्रदान करते हैं। वे क्लास रूम कोचिंग एवं ऑनलाइन कोचिंग दोनों माध्यम से छात्रों को पढ़ाते हैं, इसलिए उनके अनेकों विडीओ लेक्चर यूटूब इत्यादि पर उपलब्ध हैं। ऐसे ही एक विडीओ जो कि साल २०१८-१९ का है, को काट-छाँट कर सोशल मीडिया पर अपलोड किया गया और उनको खूब ट्रोल किया गया। वे अपने एक लेक्चर में हिंदी साहित्य की परीक्षा के लिए मध्यकालीन लेखक एवं कवियों विषय पर चर्चा कर रहे थे। ऐसे में एक पूर्व वर्ष में पूछे गए प्रश्न, “क्या गोस्वामी तुलसीदास के प्रति समकालीन समीक्षा की धाराएँ न्याय कर पा रही हैं?” पर बोलते हुए उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा कृत गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित रामायण के उत्तरकांड एवं महाभारत के कुछ श्लोकों का उदाहरण दिया। उन्होंने प्रसिद्ध लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक ‘संस्कृति वर्चस्व का विरोध’ के कुछ अंशों का भी उदाहरण प्रस्तुत किया। इसमें सीता माता और भगवान श्रीराम को लेकर कुछ कठोर बातें हैं, जो लोकमत की आस्था को अच्छी नहीं लगती।
जैसा की हम सब जानते हैं कि रामायण में सीता माता का परित्याग एवं शम्बूक वध विवादास्पद हैं। कुछ चिंतक मानते हैं कि ये दोनों प्रसंग मूल रामायण का अंग नहीं हैं, इन्हें बाद में बुद्ध काल के दौरान राम परम्परा को धूमिल करने के लिए अपभ्रंश के तौर पर जोड़ा गया। आधुनिक कवि कुमार विश्वास भी इसे कई बार कह चुके हैं। परंतु इसका कोई प्रमाण अभी तक ठोस रूप से नहीं आया है और ये दोनों संदर्भ हमारे प्राचीन ग्रंथों का हिस्सा हैं। इसी कारण हिंदू धर्म को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता है। विषय जब तक धार्मिक होता है, तब तक इसपर बोलने से बचना चाहिए परंतु जब विषय कक्षा में पढ़ाया जाता है और उसकी समीक्षा की जाती है तब उस पर बोलने और विचार संगोष्ठी की पूर्ण आजादी होती है। यही उच्च शिक्षा का कर्तव्य भी है, वे ऐसे विषयों पर भी खुल के विचार रखने को आज़ाद है जिसपर आम तौर पर व्यक्ति बात करने से कतराता है। श्री दिव्यकीर्ति कोई साधु-संत/कथावाचक तो हैं नहीं जो सत्संग के दौरान यह सब बोल रहे थे, वो एक शिक्षक हैं और विषय सामग्री की माँग अनुसार वो ग्रंथों का उदाहरण दे रहे थे। ऐसे में ट्रोलर यह भूल गए और अपनी आहत भावनाओं का विलाप करते हुए ना जाने क्या-क्या कहने लगे। जब श्री दिव्यकीर्ति ने लल्लनटॉप के एक कार्यक्रम पर आकर ये सारे ग्रंथ दिखा दिए और अपना पक्ष रखा तब ट्रोल्स को जवाब देते ना बना। आखिर में जब उनसे कुछ ना बना तो उन्होंने कहा की विकास जी अपनी कक्षा में हँस रहे थे और यही महापाप है। कुछ लोगों का यह भी कहना है की श्री दिव्यकीर्ति ने अपने किसी विडियो में किसी एक राजनीतिक पार्टी की प्रशंसा कर दी थी इसलिए दूसरी पार्टी के आई॰टी॰ सेल ने धावा बोल दिया। दुखद बात यह है की संवैधानिक पदों पर बैठे, राष्ट्रीय पार्टियों से जुड़े प्रमुख लोग एवं पढ़े लिखे लोगों ने भी पूरी तरह बात को जाने सोशल मीडिया पर गरल उगलना शुरू कर दिया।
यही हाल अभी कुछ दिन पूर्व सेवानिवृत मेजर जनरल (डॉक्टर) यश मोर के साथ हुआ। वे भी ऐसा ही एक लेक्चर छात्रों को दे रहे थे, जिसमें एक छात्र ने कुछ मीडिया हाउस को सरकार विरोधी/देश विरोधी बता दिया, श्री मोर ने उस छात्र को समझते हुए कुछ उदाहरण दिए और कहा की हम सब देशप्रेमी हैं कोई देश विरोधी नहीं है। ऐसे में उन्होंने कारगिल युद्ध के एक वाक़िये का उदाहरण दिया और और एक वरिष्ठ पत्रकार का नाम लिया। जिसकी पचास सेकंड की क्लिप काट कर खूब वायरल कर दी गई और श्री मोर को आलोचना का शिकार होना पड़ा। मेजर जनरल मोर ने प्रखर रूप से अग्निवीर योजना का विरोध किया था, क्या इसी कारण ये ट्रोलिंग का शिकार हुए यह जिज्ञासा का विषय है।
श्री अवध ओझा भी आधुनिक भारत के ऐसे ही एक महान शिक्षक हैं, जो यू॰पी॰एस॰ई॰ परीक्षा के लिए पढ़ाते हैं। ये इतिहास पढ़ाते हैं, कक्षा में जब इन्होंने किसी मुग़ल शासक का गुणगान कर दिया तो ट्विटर पर इनको पाकिस्तान भेजने के नारे लगाए गए। इन्होंने भी कोई बात अपने मन से नहीं रची, जब इतिहास की पुस्तकों का हवाला दिया तो ट्रोल से जवाब देते ना बना। फिर वे इनकी शैली पर ऊँगली उठाने लगे।
प्रसिद्ध खान सर भी इस ट्रोल के माया जाल से अछूते ना रहे, पहले अपने नाम की वजह से खूब चर्चा में बने फिर रेलवे के इम्तिहान में हुई झड़प के सूत्रधार बताए गए। इनके खिलाफ कोई सबूत ना मिला तो छात्र हितैषी होने का आरोप लगाया गया।
ट्रोल्स को यह जानना चाहिए कि ये शिक्षकगण किसी प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को नहीं पढ़ा रहे हैं, इनकी कक्षा में बैठने वाला हर छात्र वयस्क है। वयस्क छात्रों को पढ़ाने के लिए कक्षा का रचनात्मक होना बहुत ज़रूरी होता है, और इनकी कक्षा विद्यालय की तरह 40 मिनट की नहीं होती वरन पूरी तीन घंटे की होती है। ऐसे में अगर शिक्षक कपोल किताबी ज्ञान बांचेगा तो कोई पढ़ने में रुचि नहीं लेगा। तीन घंटे की कक्षा में से अगर 40-50 सेकंड का क्लिप काटा जाए तो हर दिन कोई ना कोई नया विवाद रोज़ ही पैदा हो जाएगा। यह भी सोचना होगा कि कहीं यह ट्रोलिंग किसी राजनीति से प्रेरित तो नहीं?
आस्था के आहत लोगों को चाहिए की वे धर्म ग्रंथों को खुद से पढ़े और शिक्षकों को इससे दूर रखें। शिक्षक को सिर्फ़ पढ़ाने दें और बच्चों में तर्कशक्ति का विकास होने दें। हमारा सनातन धर्म इतना कमजोर नहीं है जो चुटकी बजाने से चटक जाएगा। ऐसे में भारत को एक केंद्रीय संस्था की भी भरसक ज़रूरत है जो हमारे धर्म ग्रंथों का पुनः उत्थान कर सके जिससे इनमें आयी भ्रांतियाँ दूर हो सके और नवीन संस्करण के साथ यह धर्म ग्रंथ जनमानस तक पहुँच सकें। संघ लोक सेवा आयोग को भी अपने पाठ्यक्रम में बदलाव कर विरोधाभासी विषयों पर पुनर्विचार करना चाहिए। तब तक आम नागरिकों को सोशल मीडिया पर अपनी खीज कम निकालनी चाहिए एवं अपना ज्ञान पुस्तकों के माध्यम से बढ़ाना चाहिए।
- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद
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