चाचा नेहरु हमारे विद्यालय में
बाल दिवस विशेषांक
चाचा नेहरु हमारे विद्यालय में
बच्चों के प्यारे चाचा नेहरु आज एक विद्यालय में पहुँचे और बच्चों से मिले। विद्यालय में बाल दिवस मनाया जा रहा था, आज के इस आधुनिक विद्यालय को देख नेहरु जी के मुख मंडल पर मुस्कान छा गयी। परंतु यह क्या, कोई भी बच्चा नेहरु जी को पहचान नहीं रहा। नेहरु जी स्कूल में घूम रहे थे, अपने वही अपने चिर परिचित अन्दाज़ में, काला बंद गले का अचकन, जेब में लगा गुलाब का फूल और सर पे गांधी टोपी। आज के परिपेक्ष में कुछ पुराने से लगते नेहरु जी हर कक्षा में जा-जा कर पूरे स्कूल का मुआएना कर रहे थे। हर कक्षा में शिक्षक बच्चों को ऐक्टिविटीज़ में उलझायें हुए थे। ‘लगता है आज कोई पढ़ाई नहीं होगी, आज तो पूरा दिन मौज मस्ती ही होगी’ सातवीं में पड़ने वाले विकास व कीर्ति आपस में मज़ाक़ कर रहे थे। घूमते-घूमते नेहरु जी प्राइमरी विंग में पहुँच गए, यहाँ का दृश्य देख नेहरु जी के आँखों में आँसू आ गए । नन्हें मुन्हें फ़ैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता के लिय नेहरु जी की तरह बन कर आए थे। शायद नेहरु जी उनमें आज भी ज़िन्दा होंगे । तभी एक छोटे से लड़के (जो ख़ुद नेहरु जी की तरह ड्रेस पहन कर आया था) की नज़र दरवाज़े पर गयी, जहाँ पंडित जी स्वयं खड़े थे । वह ज़ोर से चिल्लाया, “वाउ! नेहरु” । पूरी कक्षा का ध्यान नेहरु जी पर केंद्रित हुआ, शिक्षिका भी आँखे फाड़े उनको देख रही थी, मानों उसे उनके होने पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। बस फिर क्या था, बात आग की तरह पूरे स्कूल में फैल गयी, ‘नेहरु जी, हमारे स्कूल में हैं’। यह सुनते ही प्रिन्सिपल की भी कुर्सी हिल गयी। प्रिन्सिपल ठहरा सन ६० की पैदायिश, वह तो सुनते ही नेहरु जी की ओर भागा, मानो उसके पैरों में १७ साल के लड़के की सी फुर्ती आ गयी हो।
स्वयं नेहरु जी को देख उसके होश फाक्ता हो गए, उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वह नेहरु जी को अपने ऑफ़िस में ले गया। उसके मन में किलोल उठ रही थी, मानो नेहरु जी के साथ सेल्फ़ी लेना चाह रहा हो। आनन फ़ानन में प्रिन्सिपल ने पूरे स्कूल को असेम्ब्ली ग्राउंड में इक्कठा होने का फ़रमान जारी किया। प्रिन्सिपल अपनी कुर्सी में समाएँ नहीं सामाँ रहा था।
सभी ग्राउंड में इक्कठा हुए और प्रिन्सिपल ने माइक पकड़ भाषण देना शुरू किया, परंतु आज वह ज़्यादा नहीं बोल पाया। प्रधानाचार्य ने सभी बच्चों से नेहरु जी का परिचय करवाया। बच्चे विस्मियादीबोध में नेहरु जी को देख रहे थे, जैसे वे उन्हें पहचानते हों पर जानते ना हों। अब नेहरु जी तो नेहरु जी ही ठहरे, वे तुरंत मंच से नीचे उतरे, और बच्चों के बीच जा पहुँचे। बच्चों ने पंडित जी को घेर लिया। छोटे बच्चों ने नेहरु जी के चारों तरफ़ घेरा बना लिया और ज़ोर-ज़ोर से ‘हैपी बर्थ्डे टु यू’ गाने लगे। यह देख नेहरु जी की आँखे छलक आयीं तथा उन्होंने सभी बच्चों का धन्यवाद किया।
अब क्या था, बड़े बच्चे आपस में कुछ फुसफुसाने लगे – उन्हें नेहरु में अचानक से देशद्रोही नज़र आने लगा, मानो उनका सारा व्ट्सऐप एवं फ़ेस्बुक से पाया हुआ ज्ञान जीवंत हो आया हो। पंडित जी भी उनकी मनोदशा भाँप गए, जैसे वे पहले से इस क्षण को जी रहें हों। तुरंत एक लड़के ने अपनी आवाज़ भारी करते हुए कहा – ‘मिस्टर नेहरु, आयी वॉंट टू टॉक टू यू’ । बच्चे की बेरुख़ी देखते हुए प्रिन्सिपल ने उसको टोका, परंतु नेहरु जी ने सहजता से बात को सम्भाला और प्यार से कहा, ‘येस यंग मैन,इनफ़ैक्ट वी शुड ऑल टॉक’। सभी बच्चों ने अपने व्ट्सऐप ज्ञान को मानो रिफ़्रेश करना शुरू कर दिया हो। सभी बच्चों ने नेहरु जी पर प्रश्न वर्षा कर दी, ‘तुमने कश्मीर का सत्यानाश किया’, ‘तुमने भारत के टुकड़े करवाए’, ‘सरदार पटेल को तुमने प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया ’,‘इस देश की बधहाली के लिए तुम्हीं ज़िम्मेवार हो’, ‘पूरे भारत की हर समस्या की जड़ तुम हो’, ‘चीन समस्या तुम्हारी ही दी हुई है ’, ‘तुम दुनिया के सबसे बुरे इंसान हो’, लगे हाथ कुछ बच्चों ने तो दो चार गाली भी दे डाली, आख़िर आज उनका सारा जमा किया सोशल मीडिया ज्ञान काम जो आया। मानो स्कूल के प्रांगण में हर छात्र अपने आप में इतिहासकार हो गया हो, और इतिहास की हर ग़लती का आज ही तोड़ निकलना चाहता हो ।
नेहरु जी सब कुछ चुप-चाप सुनते रहे और बात ख़त्म होने पर भी मुस्कुराते रहे। उन्होंने प्रिन्सिपल की तरफ़ देखा और बोलना प्रारम्भ किया, ‘प्रिन्सिपल साहब, अगर मैं देशद्रोही हूँ तो आप आज मेरी मृत्यु के ५५ साल बाद भी अपने स्कूल में बाल दिवस क्यूँ मना रहे हो?’ शायद प्रिन्सिपल के पास भी इसका कोई जवाब नहीं था, मानो वह भी यह कहना चाहता हो की हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी रिवाज़ के मुताबिक़ यह करना पड़ रहा है। बाल दिवस मनाना एक औपचारिकता के सिवा कुछ और नहीं। नेहरु जी मानो कहना चाहते हो और इन बच्चों को उस दौर में ले जाना चाहते हों जब भारत आज़ाद हुआ और कैसे वे तूफ़ान से क़िश्ती निकालके लाए एवं कैसी-कैसी चुनौतियों को पार किया। सन १९४७ में इक्कीसवीं सदी के भारत का सपना संजोया। पर नेहरु तो यूँ ही पंडित जी नहीं कहलाये। उन्होंने बच्चों के हर प्रश्न को सुना और उनके ज्ञान की तारीफ़ करी कि कम से कम बच्चे अपने देश के मुद्दों के प्रति सजग एवं जागरूक तो हैं। उन्होंने कहा, ‘आज का दिन बाल दिवस बच्चों तुम्हारा ही पर्व है । यह पर्व देश के सभी बच्चों को समर्पित है । तुम देश के भविष्य हो, अत: तुम्हारे विकास के बारे में चिंतन करना तथा कुछ ठोस प्रयास करना देश की जिम्मेदारी है । देश का समुचित विकास बच्चों के विकास के बिना संभव नहीं है । बच्चों को शिक्षित बनाने, बाल श्रम पर अंकुश लगाने, उनके पोषण का उचित ध्यान रखने तथा उनके चारित्रिक विकास के लिए प्रयासरत रहने से बच्चों का भविष्य सँवारा जा सकता है । यह दिन बच्चों के कल्याण की दिशा में उचित प्रयास करने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है।’
नेहरु जी ने हर बच्चे से अपील करी की आपने अब तक मेरे बारे में जो भी जाना,जहाँ से भी जाना, वह सब अपनी जगह ठीक है। परंतु अगर हो सके तो आप सभी मेरा एक निवेदन मान लेना, आप आने वाले एक साल में मेरी सिर्फ़ तीन किताबें पढ़ लेना, डिस्कव्री आफ़ इंडिया, गलिंपसेस आफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री तथा मेरी जीवनी टूवर्ड फ़्रीडम। अगर फिर भी तुम्हारे दिल में मेरे लिए नफ़रत रहे तो मैं आपके सामने अगले साल इसी दिन ज़रूर आयूँगा और आप जो भी न्याय मेरे साथ करेंगे मुझे त-हे-दिल से मंज़ूर होगा। मेरे प्यारे बच्चों, तुम ख़ूब पढ़ो और आगे बढ़ों यही मेरी दिली इच्छा है परंतु अपने देश के इतिहास को कभी मत भूलना। जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही आज़ादी के परवानों की कुछ बातें तुम्हें आज बेशक अच्छी ना लगें, प्रासंगिक ना लगें परंतु उनकी देश भक्ति एवं निष्ठा पर कोई संदेह नहीं कर सकता।
तुम सब कल के भारत के निर्माता हो, अगर तुम्हीं अपने दिल में कटुता ले कर आगे बढ़ोगे तो यह देश कभी उन्नति नहीं कर पाएगा । तुम सब परस्पर प्रेम का भाव लेके एक नवीन भारत का निर्माण करो तथा एक नेहरु नहीं, जितने छात्र इस देश में हैं उतने ही नेहरु बन देश कल्याण में लग जाओ। याद रहे चरित्र निर्माण एक दिन में नहीं होता, इसके लिए बचपन से ही दृढ़निश्चय होना पड़ेगा।
(कहानी काल्पनिक है एवं बच्चों को सीख देने के लिय है )
- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद
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