श्रद्धा का महासावन - दैनिक जागरण - 20/07/2019
श्रवण मास वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। संतजन कहते हैं की सावन महीना और भोलेनाथ का संगम उसी तरह है जैसे जल में शीतलता, अग्नि में दाहकता, सूर्य में ताप, चंद्रमा में शीतलता, पुष्प में गंध एवं दुग्ध में घृत। श्रवण मास में सर्वत्र शिवमय हो जाता है, शिव ही परम सत्य हैं, शिव ही अदियोगि हैं एवं शिव ही महादेव हैं। वेदव्यास जी ने स्वयं कहा की - ‘हे प्रभो! आप कानों के बिना सुनते हैं, नाक के बिना सूँघते हैं, बिना पैर के दूर से आते हैं, बिना आँख के देखते हैं और बिना जिव्हा के रस ग्रहण करते हैं, अंत: आपको भलीभाँति कौन जान सकता है?’ गत वर्षों में शिव भक्ति में भारी इज़ाफ़ा देखने को मिला है, इसकी वजह कहीं हद तक सोशल मीडिया एवं ख़ूब प्रचलित होते फ़िल्मी गाने भी हैं। कुछ लोग ख़ुद को शिवभक्त बताते हैं वहीं कुछ लोग ख़ुद को 'भोले की सेना' कहते फूले नहीं समाते। शिव भक्ति का आलम यह है कि इस वर्ष सारे रिकार्ड तोड़ते हुए आठ लाख से भी ज़्यादा श्रधालु केदार नाथ धाम पहुँच गए एवं अमरनाथ यात्रा में भी भारी भीड़ देखने को मिल रही है। जहाँ एक ओर सदगुरु जग्गी वासुदेव ने कोयंबटूर में विशाल शिव प्रतिमा बनवा एक आधुनिक शिव भक्ति के दौर का अनावरण किया वहीं नाथद्वारा - राजस्थान में बन रही संसार की सबसे ऊँची शिव प्रतिमा भी कुछ ऐसा ही करिश्मा करने जा रही है।
मेरी दादी सावन के महीने में शिवमहापुराण का पाठ किया करती थी। वे प्रायः कहती थी कि शिवमहापुराण में लिखा गया है, 'हे महादेव! आपको न साक्षात् वेद, न विष्णु, न सर्वसृष्टा ब्रह्मा, न योगिंद्र और न तो इंद्रादि देवगण भी जान सकते हैं, केवल भक्त ही आपको जान पाता है'। यही कारण है की काँवड़रियों को देवतुल्य माना गया है। मेरे बाल्यकाल से अब तक कांवड़ लाने के तरीक़े में बहुत बदलाव आ गया है। जहाँ पहले केवल पैदल कांवड यात्रा करने वाले ही हुआ करते थे, पग-पग भरते काँवड़रिए बम-बम भोले का नाम-जप करते हुए अपनी श्रद्धा यात्रा पूरी किया करते थे, वहीं आज के दौर में डाक-काँवड़, टाटा 407 में डी॰जे॰, मोटरसाइकल एवं कार में काँवड़ लाने का चलन ख़ूब धूम मचाए हुए है। पहले जिस रास्ते से काँवड़रिए जाया करते थे, हम उनकी चरणरज अपने माथे पर लगाया करते थे। पैदल काँवड़ लाना सबसे बड़ी तपस्या है एवं शिव के प्रति अपार श्रद्धा का प्रतीक है। दादी कहती थी कि, जिस घर का सदस्य काँवड़ लाने जाता है, उसके पूरे घर को एक निश्चित अनुशासन में रहना होता है। शिव के प्रति इतनी अपार श्रद्धा व समर्पण ही हिन्दू धर्म की शक्ति है।
परंतु आज के इस आधुनिक युग में काँवड़ यात्रा के मायने बहुत बदल गए हैं, काँवड़ लाना इतना सरल हो गया है की युवावर्ग इसे मनोरंजन स्वरूप ले रहा है, अक्सर यह मनोरंजन हुड़दंग का रूप भी ले लेता है। वो भगवान शिव की भक्ति में लगाए गए बम-बम के नारे आज डी॰जे॰ की ऊँची आवाज के सामने लुप्त होती दिखाई दे रही है। शिव की स्तुति के ऊपर नशा भी हावी हो रहा है। अगर हम आज नहीं चेतें तो आने वाली पीढ़ी के लिए भक्ति की नयी परिभाषा ही गठित करनी होगी।
- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद
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