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Showing posts from September, 2018

(Un)Happy Teachers’ Day

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(Un)Happy Teachers’ Day Had Dr. Radhakrishnan been alive, he would not have celebrated his birthday today. He’d have been aghast seeing the plight of teachers. Wishing all the teachers of the country a ‘ Not so happy teachers’ day ’. The pious occupation of being a teacher is witnessing its record low. Of late, it is the teachers who are at the receiving end. The recent incident of a woman school teacher being beheaded by a class tenth student in Jharkhand came as a shocker to the entire teaching community. He not only beheaded the teacher but ran around the village with chopped head in his hand for hours together. It is the most heinous crime ever done to malign the sanctity of the pious institution of teaching learning. From last some months teaching institutions particularly schools have been in news for all the wrong reasons. A teacher is subjected to everything from abuses to stabbing to taking bullet shots of his pupils. Despite being the most vulnerable and v...

शिक्षक की व्यथा

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शिक्षक की व्यथा    ‘शिक्षा’ शब्द सामने आते ही हमारे ज़हन में अपने प्रिय शिक्षक की तस्वीर बन उठती है। सिर्फ़ तस्वीर ही नहीं उस शिक्षक के साथ बिताए गए सुनहेरे पल भी दिल-ओ-दिमाग़ में ज़िंदा हो उठते हैं। युग युगांतरों से शिष्य अपने हिस्से का सुख छोड़ कर गुरु सेवा को ही अपना अग्रिम धर्म समझता था। गुरु का स्थान तो भगवान से भी ऊपर बताया गया है। यही कारण है कि शिक्षक दिवस का हमारे देश में बहुत महत्व है।     परंतु आज के दौर में गुरूयों को काँटों भरे रास्ते पर सफ़र करना पड़ रहा है। आज बदले हुए ज़माने में शिष्य सम्पूर्ण सुख ले रहा है वरन शिक्षक निंदा का पात्र बना हुआ है। हाल ही में हुई एक घटना ने सम्पूर्ण शिक्षा जगत को झंकझोर कर रख दिया। जमशेदपुर के पास एक गाँव के स्कूल में दसवीं के एक छात्र ने अपनी गणित की शिक्षिका के ऊपर स्कूल परिसर में ही चाक़ू से वार किया, उनका क़त्ल किया एवं शिक्षिका की गर्दन काट, उनका सर हाथ में ले, पूरे गाँव में घुमाया। इससे ज़्यादा विभत्स्यात्मक घटना सम्पूर्ण शिक्षा जगत के लिए कुछ और नहीं हो सकती। विस्मय यह रहा कि मीडिया ने इस घट...

श्रद्धा का महासावन

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श्रवण मास वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। संतजन कहते हैं की सावन महीना और भोलेनाथ का संगम उसी तरह है जैसे जल में शीतलता, अग्नि में दाहकता, सूर्य में ताप, चंद्रमा में शीतलता, पुष्प में गंध एवं दुग्ध में घृत। श्रवण मास में सर्वत्र शिवमय हो जाता है, शिव ही परम सत्य हैं, शिव ही अदियोगि हैं एवं शिव ही महादेव हैं। वेदव्यास जी ने स्वयं कहा की - ‘हे प्रभो! आप कानों के बिना सुनते हैं, नाक के बिना सूँघते हैं, बिना पैर के दूर से आते हैं, बिना आँख के देखते हैं और बिना जिव्हा के रस ग्रहण करते हैं, अंत: आपको भलीभाँति कौन जान सकता है?’  मेरी दादी सावन के महीने में शिवमहापुराण का पाठ किया करती थी। वे प्रायः कहती थी कि शिवमहापुराण में लिखा गया है, ‘हे महादेव! आपको न साक्षात् वेद, न विष्णु, न सर्वसृष्टा ब्रह्मा, न योगिंद्र और न तो इंद्रादि देवगण भी जान सकते हैं, केवल भक्त ही आपको जान पाता है।‘ यही कारण है की काँवड़रियों को देवतुल्य माना गया है। मेरे बाल्यकाल से अब तक कांवड़ लाने के तरीक़े में बहुत बदलाव आ गया है। जहाँ पहले केवल पैदल कांवड यात्रा करने वाले ही हुआ करते थे, पग-पग भरते...