नवीन शहर या लुहावना स्वप्न



नवीन शहर या लुहावना स्वप्न

हरियाणा प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री मनोहरलाल खट्टर ने गत शनिवार एक एतिहासिक घोषणा का एलान किया । मुख्यमंत्री ने प्रदेश में गुरूग्राम के समीप एक नवीन शहर बनाने की घोषणा करी । इस नवीन शहर को लगभग ५०,००० हेक्टेर में बसाया जाएगा। यह शहर चंडीगढ़ से ४ गुना बड़ा एवं गुरूग्राम के दो-तिहाई हिस्से के बराबर होगा। चंडीगढ़ का क्षेत्रफल ११,४०० हेक्टेर व ग़ुरुग्राम ७३,२०० हेक्टेर में बसे शहर हैं। इस नए शहर को पब्लिक-प्राइवट पार्ट्नर्शिप (पी॰पी॰पी॰) मॉडल के तहत तैयार किया जाएगा। हरियाणा राज्य औद्योगिक एवं बुनियादी ढाँचा विकास निगम (एच॰एस॰आइ॰आइ॰डी॰सी) को इसके मास्टर प्लान तैयार करने की ज़िम्मेवारी सौंपी गयी है, उन्होंने यह बताया कि यह नूतन शहर, उत्तर में ग़ुरुग्राम से लगते हुए पटौदी-मनेसर, उत्तर-पूर्व में अरावली की पहाड़ियों, पश्चिम में राष्ट्रीय राज्यमार्ग ८ तथा दक्षिण में कृषिभूमि ज़मीन पर बसाया जाएगा। मास्टर प्लान बन ने के पश्चात इसके टेंडर जारी किए जाएँगे। यह शहर अत्याधुनिक बुनियादी ढाँचे पर बनाया जाएगा, शहर में मेट्रो, रेल एवं सड़क परिवहन के सभी साधन मौजूद होंगे। 

हरियाणा सरकार ने जिस सहजता के साथ इस परियोजना की उद्घोषणा की है उससे तो ऐसा लगता है की, या तो मानो सरकार के पास कोई जादू की छड़ी है जिसे घुमाते ही यह परियोजना पूरी हो जाएगी या फिर स्वयं विश्वकर्मा देव इन्हें आशीर्वाद दे गए हैं की अगले चुनाव से पहले नया शहर अपना मूलस्वरूप ले ही लेगा। 

इस नए शहर को बसाने का उद्देश्य भी समझ से परे है, या तो श्री खट्टर दिल्ली का बोझ हल्का करने का बीड़ा उठा चुके हैं या फिर हरियाणा प्रदेश में एक नए इंद्र्प्रस्थ बसाने का सपना देख बैठे हैं। सरकार शायद यह भूल गयी की एक नया शहर बसाने में कम से कम २० वर्षों का समय लगता है। नॉएडा एवं गुरुग्राम इसका ज्वलंत उदाहरण हैं, आज तक ये शहर पूर्णतः विकसित नहीं हो पाए हैं। ऐसा लगता है मानो २०१६ के बजट में घोषित स्मार्ट सिटी परियोजना के १०० करोड़ रुपए हरियाणा के खाते में जमा हो गए हैं। आज जहाँ दो एकड़ में बने हस्पताल या मॉल बनाने में ३०० करोड़ रूपए की लागत आती है, वहीं पचास हज़ार हेक्टेर में बनने वाले शहर में कितनी लागत आएगी इसका अंदाज़ा भी सरकार ने लगाया है या नहीं? और ये पैसा आएगा कहाँ से? वहीं क्या यह प्रदेश की जनता की माँग है या फिर सिर्फ़ एक सुहावना स्वप्न?

हरियाणा प्रदेश अपनी कृषि, पशुपालन एवं ज़मीन से जुड़े होने के लिए युग-युगांतर से प्रसिद्ध है, क्या इस परियोजना का मक़सद किसानों को अपनी ज़मीन से अलग करना तो नहीं है? सरकार यह भी स्पष्ट करे की कहीं आने वाले सालों में हरियाणा, चंडीगढ़ को पूर्णताः पंजाब को देने का मन तो नहीं बना रहा? वरना अचानक से एक नया शहर बनाने का मक़सद क्या है? यह परियोजना तो सरकार के चुनावी घोषणापत्र में भी नहीं थी, तो अचानक से इसका उद्घोष किस कारण किया जा रहा है, क्या घोषणापत्र में किए वादे शत प्रतिशत पूरे हो गए हैं?

हरियाणा सरकार के जैसे ही एक नया शहर बनाने की पहल आज से एक दशक पहले महाराष्ट्र में पुणे के निकट ‘लवासा लेक सिटी’ बसाने में की गयी थी, पर आज इसका क्या हाल है? क्या हरियाणा सरकार ने इसकी समीक्षा की है? अरबों रूपए लगाने के बाद आज ‘लवासा लेक सिटी’ एक आलीशान खंडर के सिवा कुछ नहीं है। बैंकों के लाखों करोड़ रुपय ऐन॰पी॰ए॰ हो गए और हासिल कुछ भी नहीं हुआ। ऐसी परियोजनाओं का पर्यावरण पर क्या असर होता है, इसकी भी पड़ताल ज़रूरी है। अरावली पहाड़ी एवं वन क्षेत्र, पर्यावरण के नज़रिए से बहुत संवेदनशील जगह है, क्या एक नए शहर का बोझ ये उठा पाएगी? लाखों पेड़ काटे जाएँगे, हज़ारों बेज़ुबान जानवर बेघर हो जाएँगे, कितने ही दुर्लभ जीव तो इस दुनिया से लुप्त ही हो जाएँगे - इनका दोष अपने सिर कौन लेगा? एक नए शहर की ज़रूरत का पानी कहाँ से लाया जाएगा, जबकि दक्षिणी हरियाणा प्रदेश पहले से ही सूखे की मार झेल रहा है। २००९ में प्रकाशित हरियाणा सरकार की अपनी रिपोर्ट कहती है की ग़ुरुग्राम में पानी का बड़ा संकट है, यहाँ ज़मीनी पानी भी उपलब्ध नहीं है, गुरुग्राम में पानी का दोहन २३२% है जो की अरक्षणीय है। पंजाब ने पानी देने से पहले ही साफ़ इंकार किया हुआ है, तो क्या लुप्त सरस्वती नदी ख़ुद-ब-ख़ुद नवीन सिटी में अवतरित हो जाएँगी? इतने बड़े शहर का कूड़ा कहाँ एवं किस प्रकार मैनेज किया जाएगा, इसका उत्तर सरकार के पास है या नहीं? नए शहर में बाहर से आने वालों का प्रवास बढ़ेगा, जो नयी चुनौतियों को दावत देगा। इनका समाधान किस प्रकार किया जाएगा, इसका रोड्मैप क्या सरकार के पास है?

हरियाणा सरकार को चाहिए की वो ऐसे सपने ना देखे जो प्रदेश हित में ना हों, अपितु महात्मा गांधी के बताए मॉडल को अपनाए। हर एक ग्राम सवलंबि बने, सारी ज़रूरतों का सामान गाँव में ही मोहिया किया जाए। शहरों की ज़रूरत ही ना हो, सत्ता, संसाधन एवं ज़रूरतों का विकेंद्रीकरण किया जाना अनिवार्य है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में भारत यह ग़लती कर चुका है की अपनी प्रभुता वाले कृषि क्षेत्र को छोड़ कर हम दूर के सपने संजोने लगे थे, जिसका परिणाम आने वाले कई दशकों तक हमें भुगतना पड़ा। प्रदेश सरकार भी वही ग़लती दोहराने जा रही है, हमें ज़रूरत है गाँव कि समृद्धि की ना की शहर रूपी काँक्रीट के जंगलों की।      प्रदेश सरकार ग़ुरुग्राम, फ़रीदाबाद जैसे महानगरों की ही ज़रूरत पूरी कर पाने में असमर्थ है, तो नए शहर का स्वपन क्यूँ देख रही है? अभी मॉन्सून के आ जाने पर कैसे इन नगरों की कलाई खुलती है, यह मात्र चंद दिन ही दूर है। सरकार को चाहिए की वह अपने मौजूदा नगरों को ही स्मार्ट बनाए ना की कुछ नया करने की चाहत में अपनी फजिहियत करवा बैठे? हरियाणा की पहचान देसी हुक्के से है, ना की फ़्लेवर हुक्के से। प्रदेश सरकार फ़्लेवर हुक्के की चकाचोंध में ना आए बल्कि देसी हुक्के की शान को विश्वविख्यात बनाए। 

-   जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

                   

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