हिन्दू नववर्ष की शुभकामनायें



हिन्दू नववर्ष की शुभकामनायें

भारत देश त्योहारों का देश है, यहाँ हर दिन कोई ना कोई नया त्योहार मनाया जाता है l विविध संस्कृतियों की इस धरती को एक सूत्र में पिरोता है सनातन धर्म l इसी सनातन धर्म को हिन्दू धर्म भी कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि सनातन काल से ही यह धर्म रहा है, विद्वान तो यह मानते हैं कि हिन्दू एक धर्म नहीं बल्कि जीवन जीने की शैली है l शास्त्र अनुसार आज से तथा सृष्टि संवत 1,96,08,53,119 वर्ष पुर्व सूर्योदय के साथ ईश्वर ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। जिस दिन ईश्वर ने सृष्टि की रचना की उस दिन को समस्त हिंदू नववर्ष के रूप में मनाते हैं l यह शुभ दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के रूप में प्रसिद्ध है l इस दिन नए संवत् की भी शुरूवात होती है l इस वर्ष यह विक्रमी संवत् 2075 के अनुसार 18 मार्च - रविवार की तिथि को पड़ रहा है l

देश भर में विभिन्न प्रांतों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है l महाराष्ट्र में यह गुडी पड़वा के नाम से प्रसिद्ध है तो आँध्र प्रदेश, टेलाँगना एवं कर्नाटक में यह उगादी या युगादि के नाम से जाना जाता है, मणिपुर में इसे चेराओबा कहते हैं तो जम्मू कश्मीर में इसे नवरह या नवरात्र भी कहा जाता है l सिंधी लोग इसे छेती चाँद भी कहते हैं l इस दिन नवीन वस्त्र, आभूषण, बर्तन व साज़ोसज्जा के सामान को ख़रीदने का भी प्रावधान है l मराठी में प्रसिद्ध कहावत है कि – “आरंभ होई चैत्रमासिचा गुढ़या तोरणे सण उत्साहाचा, कवल मुखी घालू गोडाचा, साजरा दिन हो गुढ़ीपाढव्याचा” l   

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के कुछ ऐतिहासिक महत्व इस प्रकार हैं – इतिहासकार धर्मेंद्र भारद्वाज बताते हैं कि प्रभु श्री रामचंद्र जी के राज्याभिषेक का दिन यही था । सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है। 143 वर्ष पूर्व स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन को आर्य समाज की स्थापना दिवस के रूप में चुना। विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ ।

इस दिन का प्राकृतिक महत्व भी कुछ कम नहीं है l वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है । इस दिन औपचारिक रूप से शीतऋतु का गमन हो जाता है एवं ग्रीष्मऋतु का प्रादुर्भाव होता है l मौसम सुहावना हो जाता है एवं चहुंओर फूल ही फूल दिखाई देते हैं, वृक्ष नयी कोपालों के साथ नवीन वस्त्र धारण करते हैं l फल वाले वृक्ष भी फूल व बौर से लद जाते हैं l चारोंओर सकारात्मक ऊर्जा का फैलाव हो जाता है तथा मनुष्य नयी उमंगों के साथ अपने जीवन में एक नए वर्ष का स्वागत करता है l 

प्रसिद्ध मनोवज्ञानिक विकास अत्रि कहते हैं कि आज समय की यह माँग है की हम अपने बच्चों को इस दिन का महत्व बतायें l आधुनिकता के इस दौर में हम अंग्रेज़ी कलेंडेर (ग्रेगरोरीयन कलेंडेर) अनुसार ही एक जनवरी को नववर्ष मनाते हैं l वो कहते हैं की एक जनवरी को नववर्ष मनाने पर कोई ऐतराज़ नहीं है पर हमारे नौजवान अपनी संस्कृति को ना भुलाएँ l

सनातन धर्म को मानने वाले हिन्दू नववर्ष कुछ इस प्रकार मनाते हैं – सभी परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ देते हैं एवं आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजते हैं l आज के इस आधुनिक युग में शुभ संदेश वहट्सऐप द्वारा भेजे जाते हैं l इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फेहरातें हैं, महाराष्ट्र में इसे गुड़ी भी कहते हैं l एक मान्यता अनुसार जिस घर में गुड़ी झांकती दिखायी देती है वहाँ लक्ष्मी जी व सरस्वती जी का वास होता है l ज्ञानी पुरुष इस दिन वेद आदि शास्त्रो के स्वधयाय का संकल्प लेते हैं घरों एवं धार्मिक स्थलों में हवन यज्ञ के प्रोग्राम का आयोजन किया जाता है समाज के हर वर्ग के लोग इ अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते हैं अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं आर्य समाज की शाखाएँ  देश भर में इ दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित करतीं हैं l

आज यह ज़रूरत है कि हम सब मिलकर अपनी सनातन संस्कृति को पुनः जीवित करें एवं अपने त्योहारों पर गर्व करें l विद्यालयों में इस दिन को धूम-धाम से मनाया जाए तथा अपनी युवा पीढ़ी को इस ओर जागरुक किया जाए l "हिन्दू नववर्ष" हर्षोउल्लास के साथ मनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सज्जनों को प्रेरित करना भी ज़रूरी है l सभी को इस दिन की हार्दिक शुभकामनाएं l

जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

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