Scrapbook of My World, Thoughts & Fancies

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Saturday, August 24, 2024

एन॰ आई॰ आर॰ एफ॰ रैंकिंग में फिसड्डी हरियाणा


 एन॰ आई॰ आर॰ एफ॰ रैंकिंग में फिसड्डी हरियाणा

हाल ही में नैशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एन॰आई॰आर॰एफ॰) द्वारा उच्च शैक्षिक संस्थानों की रैंकिंग, इंडिया रैंकिंग 2024 के नाम से प्रकाशित हुई। गौरतलब हो की एन॰आई॰आर॰एफ॰ द्वारा हर साल देश के टॉप 100 संस्थानों की सूची प्रकाशित होती है, इसमें विभिन्न कैटेगरी में देश के टॉप 100 महाविद्यालय (कॉलेज) एवं विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी) शामिल होते हैं जैसे ओवरऑल, इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, मैनज्मेंट, फ़ार्मसी, शोध संस्थान, राज्य यूनिवर्सिटी इत्यादि। इन रैंकिंग में हरियाणा राज्य विगत वर्ष के अनुरूप और भी फिसड्डी साबित हुआ। हरियाणा राज्य के उच्च शैक्षिक संस्थानों जैसे महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों का रैंकिंग सूची में ना होना राज्य के लिए बेहद शर्म की बात है।

एन॰आई॰आर॰एफ॰ द्वारा प्रकाशित ओवरऑल कैटेगॉरी के टॉप 100 सूची में हरियाणा राज्य का एक भी संस्थान नहीं है। यह बेहद शर्म की बात है। जहां एक ओर हरियाणा राज्य दिल्ली से तीन तरफ से घिरा हुआ है, वहीं इसका लाभ लेने से राज्य बिल्कुल वंचित है। दिल्ली के अनेकों महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय इस रैंकिंग में शीर्ष पर शामिल हैं, परंतु हरियाणा राज्य इस मामले में बिल्कुल फिसड्डी है। विश्वविद्यालय कैटेगॉरी रैंकिंग में हरियाणा के दो विश्वविद्यालय जिसमें महर्षि मारकंडेश्वर (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी) अंबाला 71 वें स्थान पर एवं मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज फरीदाबाद 92 वें स्थान पर हैं। गौरतलब रहे कि यह दोनों निजी (प्राइवेट) संस्थान हैं, इस कैटेगॉरी में एक भी सरकारी विश्वविद्यालय शामिल नहीं हैं।

कॉलेज (महाविद्यालय) कैटेगॉरी में शीर्ष 100 संस्थानों में एक भी संस्थान शामिल नहीं है जो हरियाणा राज्य से हो। रीसर्च इन्स्टिटूट कैटेगॉरी में भी कुछ यही हाल है, इसमें भी हरियाणा राज्य के किसी भी संस्थान का नाम सूची में शामिल नहीं है। इंजीनियरिंग कॉलेज कैटेगॉरी में सिर्फ़ एक संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग कुरुक्षेत्र 81 वें स्थान पर है। इसके अलावा कोई भी इंजीनियरिंग कॉलेज सूची में अपनी जगह नहीं बना पाया। पिछले वर्ष जे॰सी॰बोस॰वाई॰एम॰सी॰ए॰ फ़रीदाबाद इस सूची में शामिल था परंतु इस वर्ष यह भी फिसड्डी साबित हुआ एवं इस वर्ष सूची से ही बाहर हो गया। विधि (लॉ) संस्थानों की सूची में हरियाणा से सिर्फ़ एकमात्र संस्थान ही अपनी जगह बना पाया है, यह है एमिटी यूनिवर्सिटी गुरुग्राम, यह सूची में ३३ स्थान पर है। यह भी एक निजी संस्थान है, यहाँ भी कोई सरकारी संस्थान कामयाब नहीं हो सका। आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग कैटेगॉरी में हरियाणा से एक भी संस्थान नहीं है। इनोवेशन कैटेगॉरी में भी राज्य से कोई संस्थान नहीं है।

राहत की खबर स्किल यूनिवर्सिटी के क्षेत्र में रही जहां श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय पलवल ने तीन संस्थानों की श्रेणी में दूसरा स्थान प्राप्त किया। फ़ार्मसी कैटेगॉरी में हरियाणा के 4 संस्थान टॉप 100 में अपनी जगह बना पाए, जिसमें महर्षि मारकंडेश्वर (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी) अंबाला 26 वें स्थान पर, महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक 38 वें स्थान पर, गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइयन्स एंड टेक्नॉलजी हिसार 55 वें स्थान एवं कॉलेज ऑफ फार्मेसी पंडित भगवत दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस रोहतक 100 वें स्थान पर रही। मैनज्मेंट कैटेगॉरी में एम॰डी॰आई॰ गुरुग्राम 11 वें स्थान पर, आई॰आई॰एम॰ रोहतक 12 वें स्थान पर, ग्रेट लेक्स इन्स्टिटूट आफ़ मैनज्मेंट गुरुग्राम 35 वें स्थान पर एवं बी॰एम॰एल॰ मुंजाल यूनिवर्सिटी गुरुग्राम 83 वें स्थान पर रहे।

मेडिकल संस्थान कैटेगॉरी में मात्र 2 संस्थान ही सूची में अपनी जगह बना पाए यह है महर्षि मारकंडेश्वर (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी) अंबाला 35 वें स्थान पर एवं पंडित भगवत दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस रोहतक 50 वें स्थान पर। डेंटल संस्थान कैटेगॉरी में प्रदेश के 2 संस्थान शामिल हुए – पोस्ट ग्रेजुएट इन्सटियूट ऑफ़ डेंटल साइयन्स रोहतक 23 वें स्थान पर एवं मानव रचना इन्स्टिटूट ऑफ़ रिसर्च एंड स्टडीज फ़रीदाबाद 38 वें स्थान पर।

एग्रीकल्चर एंड एलाइड सेक्टर कैटेगॉरी में राज्य ने उत्कृष्ट परिणाम पाए इसमें आई॰सी॰ए॰आर॰ नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट करनाल द्वितीय स्थान पर रहा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार 7वें स्थान पर, नैशनल इन्स्टिटूट ऑफ़ फ़ूड टेक्नॉलजी, एंटेरप्रेनौरशिप एंड मैनज्मेंट सोनीपत 21 वें स्थान पर तथा लाला लाजपत राय यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेटरनरी एंड एनिमल साइयन्स हिसार 34 वें स्थान पर रहे।

स्टेट यूनिवर्सिटी कैटेगॉरी में हरियाणा की चार यूनिवर्सिटी अपना स्थान बना पाई, जिसमें महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक 35 वें स्थान पर, कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी 41 वें स्थान पर, गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी ऑफ साइयन्स एंड टेक्नॉलजी हिसार 47 वें स्थान पर एवं चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी हिसार 48 वें स्थान पर रहीं।

जिस प्रदेश में सत्ता पर दस साल एकमुश्त एक ही पार्टी की सरकार ने राज किया हो एवं डबल इंजन की सरकार होने का दम भरा हो वहाँ उच्च शिक्षण संस्थानों का अपनी ही सरकार द्वारा की गयी रैंकिंग में फिसड्डी रहना दुर्भाग्य की बात है। जहां एक ओर हरियाणा राज्य को नम्बर वन राज्य बनने की बात करते हो वहाँ ये कैसे सम्भव है की कोई राज्य बिना गुणवत्ता की शिक्षा के नम्बर वन हो जाए?

हरियाणा में 61 विश्वविद्यालय कार्यरत हैं (जिसमें 8 सेंट्रल यूनिवर्सिटी, एक एम्स, 2 जनरल यूनिवर्सिटी एवं एक डीम्ड यूनिवर्सिटी है)। 22 स्टेट यूनिवर्सिटी, 2 पब्लिक यूनिवर्सिटी, 8 डीम्ड यूनिवर्सिटी और 21 प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं। 18 सरकारी संस्थान (विश्वविद्यालय) ऐसे हैं जो इंजीनियरिंग की डिग्री प्रदान कर रहे हैं जिनसे सैकड़ों कॉलेज एफिलिएटेड हैं। ऐसे में ओवरऑल रैंकिंग में एक भी संस्थान/कॉलेज का ना होना प्रदेश के लिए बेहद खेद की बात है। थोड़ा बहुत मुँह दिखाने लायक़ काम सिर्फ़ निजी विश्वविद्यालयों ने किया है वरना सरकारी संस्थान तो रैंकिंग सूची से नदारत ही दिखे।

आने वाले महीनों में प्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में उच्च शिक्षा भी एक अहम मुद्दा होना चाहिए जिससे प्रदेश की छवि सुधर सके एवं विद्यार्थियों का जीवन सुगम हो सके।

- जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)



Sunday, June 16, 2024

अंतरराष्ट्रीय पिता दिवस पर विशेष/International Father's Day

 


शिव तत्व है पिता

आज 16 जून को समस्त विश्व, अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस (इंटर्नैशनल फादर्स डे) मना रहा है। यह दिवस सभी पिताओं का उनके परिवारों के प्रति समर्पणलगन, मेहनत एवं बलिदान को पहचानने एवं सम्मान देने का अवसर है। आज पिता, दादा एवं पिता तुल्य हर व्यक्ति के प्रति आभार प्रकट करने का सुअवसर है।        

इंटर्नैशनल फादर्स डे का इतिहास भी कुछ कम रोचक नहीं है, विश्व भर में माताओं की मनुष्य जीवन में अनुदान एवं उनकी कड़ी मेहनत को बहुत पहले ही मान्यता मिल गयी थी, इंटर्नैशनल मदर्स डे बहुत पहले ही संसार में स्वीकार्य हो चुका था। पिताओं के महत्व को दर्शाने का वर्ष 1900 तक ऐसा कोई दिन नहीं था। अमेरिका के वॉशिंटॉन शहर में रहने वाली स्पोकैन सोनोरा ने पहली बार 1910 में अपने पिता विल्यम जैक्सन स्मार्ट जो की एक भूतपूर्व सैनिक थे उनके सम्मान में इंटर्नैशनल मदर्स डे की तर्ज पर इंटर्नैशनल फादर्स डे मनाया। गौरतलब है कि विल्यम जैक्सन स्मार्ट ने अपनी पत्नी के देहांत के बाद अपनी छह संतानो का लालन पालन स्वयं किया। इस दिन को ख्याति तब प्राप्त हुई जब तब के अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कूलिज ने 1924 में इसकी अधिकारिक पुष्टि करी। तब से हर वर्ष जून के तीसरे रविवार को इस दिन को मनाने का प्रचलन प्रारम्भ हुआ।  

यूँ तो भारत में माता-पिता के महान स्थान को पहचानने के लिए किसी दिन विशेष की ज़रूरत नहीं, मगर फिर भी भारत की सनातन समावेशी संस्कृति विश्व की हर सकारात्मकता को अपने आँचल में जगह दे देती है। आज भारत में फादर्स डे भी खूब उमंग के साथ मनाया जा रहा है। इक्कीसवीं सदी का आधुनिक युवा वर्ग आज के दिन अपने पिता की तस्वीर व्हाट्सएप के स्टेटस पर साझा कर उनके प्रति अपने समर्पण भाव को प्रदर्शित करता है। पिता के प्रति प्रेम एवं सम्मान को विभिन्न आधुनिक माध्यमों द्वारा जैसे केक काटना, गिफ्ट देना इत्यादि से प्रकट किया जा रहा है। 

भारतीय दर्शन के अनुसार पिता शिव तत्व को दर्शाता है। पिता परिवार के लिए हर सर्वोच्च बलिदान देने को सदैव तत्पर रहता है। संतान एवं परिवारजनों के भरण पोषण के लिए हर पिता अपना जीवन खपा देता है। अपने निजी सुख का त्याग कर पिता अपनी संतान के लिए संसाधन जुटाता है। ऐसा करके उसको एक सुखद अनुभव की प्राप्ति होती है, यह अनुभव ही शिव तत्व का पूरक है। जिस प्रकार महादेव शिव ने समुंदर मंथन के दौरान, संसार की समस्त उपयोगी एवं भोग तुल्य वस्तुएं अपनी संतान देव और दानवों को ग्रहण करने दी एवं हलाहल विष स्वयं सहर्ष प्राप्त किया, उसी प्रकार पिता जीवन की हर अच्छी वस्तु अपनी संतान एवं परिवार को मोहिया करवाना चाहता है और विष रूपी हर मुसीबत अपने आप वरन करता है। पिता परिवार की रीढ़ के समान होता है, वह परिवार को संभल एवं प्रज्ञा प्रदान करने वाला होता है। पिता ही अपने बच्चों का पहला दोस्त, आदर्श एवं प्रेरणा स्रोत होता है। हर पिता अपने बच्चों के लिए नायक स्वरूप होता है। निरंतर काम की चक्की में पिसता बाप, सबसे पहले अपने बच्चों के सुख एवं देखभाल का ख़याल करता है, सबकी जरूरतों की पूर्ति के बाद ही वह अपनी ज़रूरतों का आभास करता है।  

घर एवं काम की दोहरी जटिलताओं को झेलता हर पिता, योग्य है कि वर्ष में एक दिन ऐसा हो जब उसके प्रति संतान कृतज्ञ रहे एवं सम्मान व्यक्त करे। हर पिता, दादा एवं पिता तुल्य व्यक्ति को अंतरराष्ट्रीय पिता दिवस (इंटर्नैशनल फादर्स डे) की शुभकामनाएँ। फादर्स डे की शुभकामनाएं उन माताओं को भी जिन्होंने पिता के ना होने पर खुद ही पिता का फ़र्ज़ निभाया और अपने बच्चों को उज्जवल भविष्य प्रदान किया। ऐसी साहसी माताएँ, पिताओं से कम नहीं, जिन्होंने अन्नपूर्णा होते हुए भी शिव तत्व को साकार किया। 

जगदीप सिंह मोर, शिक्षाविद

Sunday, February 4, 2024

एक परीक्षा ऐसी भी हो जिसमें बच्चे फेल हो सकें


 

एक परीक्षा ऐसी भी हो जिसमें बच्चे फेल हो सकें 



नए साल की अभी शुरुआत ही हुई है कि पहले ही महीने में भारत की कोचिंग कैपिटल कहे जाने वाले कोटा शहर में दो बच्चों ने मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या कर ली। हाल ही की इन घटनाओं ने हर भारतवासी के दिल को झकझोर कर रख दिया है। अठारह वर्षीय निहारिका सिंह सोलंकी कोटा में आई॰आई॰टी॰ जे॰ई॰ई॰ परीक्षा की तैयारी कर रही थी। परीक्षा से पहले ही उसने अपने घर के रोशनदान से फांसी लगा आत्महत्या कर ली। निहारिका का हस्तलिखित सुसाइड नोट मिला जिस पर उसने लिखा था, ”मम्मी पापामैं जे॰ई॰ई॰ नहीं कर सकतीइसलिए मैं आत्महत्या कर रही हूँ। मैं हार गई हूँमैं सबसे ख़राब बेटी हूँ। मुझे माफ़ कर देना मम्मी पापा। यही आखिरी विकल्प है।“ चार पंक्ति के इस छोटे से सुसाइड नोट ने पूरे शिक्षा जगत को रसातल पर लाकर खड़ा कर दिया है। यदि प्रतियोगिता की तैयारी करने वाला एक छात्र यह कहे कि आत्महत्या ही आखिरी विकल्प हैतब यह समझ लेना चाहिए कि शिक्षा का यह सम्पूर्ण तंत्र भीतर से सड़ चुका हैऔर अब इसमें से दुर्गंध उठने लगी है।


एक नज़र अगर विगत वर्षों में अकेले कोटा में हुई आत्महत्या के आँकड़ों पर डाली जाए तो हर माता-पिता एवं शिक्षक का दिल बैठ जाए। साल 2024 में पहले महीने में दोगत वर्ष 2023 में 23 (औसतन हर महीने में दो)साल 2022 में 152021 में एक2020 में चार (कोविड के कारण कोचिंग संस्थान बंद थे)2019 में 82018 में 12 और 2017 में दस। पुलिस द्वारा जांच में ज्यादातर यह निकल के आया कि टेस्ट में कम अंक आने के कारण बच्चे तनाव में थे इसलिए उन्होंने यह आख़िरी विकल्प’ चुना।       


आज समय की यह मांग है की प्रतियोगिता के इस पूरे ढाँचे में मूलभूत परिवर्तन किए जाएँ। इसकी शुरुआत स्कूली शिक्षा से की जानी चाहिए। जहां एक ओर स्कूल में कक्षा आठ तक नो डिटेन्शन पॉलिसी हैवहीं कक्षा दसवीं एवं बारहवीं में बोर्ड हर साल नॉर्मलाइजेशन कर अंकों में बढ़ोतरी करता है। असली झटका बच्चों को तब लगता है जब वे प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठते है जहां एक-एक अंक की लड़ाई अपने चर्म पर होती हैउसके बाद मेरिट में आने के लिए जातीय श्रेणी अनुसार कट-ऑफ भी क्वालीफाई करनी पड़ती है। किसी प्रतियोगिता में दो चरण की परीक्षा होती है तो किसी किसी में तीन चरण की। जिस अनुपात में भारत की जनसंख्या बढ़ीउस अनुपात में शैक्षणिक संस्थानों एवं उनकी सीटों में बढ़ोतरी नहीं हो पायीजिस कारण यह दबाव साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। सोने पर सुहागा हुआ कोचिंग संस्थानों की बाढ़ आ जानाइन संस्थानों ने लुभावने विज्ञापनों से शहर के शहर पाट दिए। अभिभावकों एवं बच्चों के मन में यह विचार घर कर गया कि अगर कोचिंग के इन मंदिरों में नहीं गए तो शिक्षा रूपी भगवान मिलेगा ही नहीं। लाखों रुपये फीस लेकर इन संस्थानों ने बच्चों को सिर्फ रोबोट बनाने का ठेका ले लियाऐसा जटिल रूटीन बनाया जिससे नादान छात्रों के साधारण से मस्तिष्क में चिंगारियां उठने लगेया तो छात्र रोबोट बन जाए या फिर अपने को लूजर समझ आखिरी विकल्प चुनने लगे। 


स्कूल में एक परीक्षा ऐसी ज़रूर हो जिसमें बच्चे फेल हो सकें। बाल्यकाल से ही उनको यह समझाया जाए की फेल होना बहुत ही साधारण सी बात हैअसल ज़िंदगी में सौ बटा सौ नम्बर नहीं मिलते। फेल हो गए तो कोई पहाड़ नहीं टूट गया। एक परीक्षा में पास या फेल होने से जिंदगी निर्धारित नहीं होतीजीवन अपने आप में एक निरंतर होने वाली प्रतियोगिता ही हैइसमें कोई पास कोई फेल नहीं हैरोज़ होने वाला अनुभव ही तो वास्तव में जीवन है। माँ-बापशिक्षकदोस्तसमाज एक ऐसा अदृश्य दबाव बना देते हैं जिसमें आई॰आई॰टी॰मेडिकलसी॰ए॰ अथवा आई॰ए॰एस॰ नहीं बने तो जीवन ख़राब हैइनके अलावा मानो बाक़ी सारे रोजगार छोटे हैं और इन रोजगारों को करने वाले सभी फेलीयर। माँ-बाप बच्चों के रिपोर्ट कार्ड को अपना विजिटिंग कार्ड बनाने लगते हैं। हर माँ-बाप अपने बच्चे से यह कहता है कि जब तू छोटा था तब फर्स्ट आता था। इसलिए ज़िंदगी भर हर बच्चा फर्स्ट ही आता रहे। अभिभावक तनिक देर ठहर ये सोचें कि अगर सभी बच्चे प्रथम आ गए तो द्वितीय कौन आएगाशिक्षकों को भी अपनी कक्षा में सभी बच्चे सौ प्रतिशत वाले चाहिएँकोचिंग संस्थानों को अपना हर छात्र आई॰आई॰टी॰ तथा एम्स में चाहिए। 


आज एक नई दौड़ चल पड़ी है जहां सभी को मोटिवेशनल स्पीकर बनना है। बहुत जल्दी यह समय आ जाएगा जब सभी मोटिवेट करने वाले होंगेहोने वाला कोई ना बचेगा। कदाचित विद्यालयों को यह चाहिए कि वे बच्चों को बताएं कि अगर सभी डॉक्टर हो जाएंगे तो मरीज कौन होगा?


अगर आई॰आई॰टी॰आई॰आई॰एम॰ सफलता की कुंजी होते तो ऐसा क्यूँ है कि आज ऐसे प्रतिष्ठित संस्थानों को भी अपने छात्रों की प्लेसमेंट करने में दाँतों तले उँगलियाँ दबानी पड़ रहीं हैं। अनेकों डॉक्टरइंजीनियर डिग्री लेने के बावजूद कुछ और कर रहे हैं और सफलता के शीर्ष तक पहुँच रहे हैंशायद अगर वे अपनी प्रथम डिग्री के पेशे को अपनाते तो आज उन्हें कोई ना जानता। संगीत सम्राट एल॰ सुब्रमण्यम की प्रथम डिग्री एम॰बी॰बी॰एस॰ हैउन्हें यह डिग्री पूरी करनी पड़ी क्यूँ कि उनकी माता जी नहीं चाहती थी कि वे डिग्री छोड़ संगीत की पढ़ाई करें। आज के दौर के मशहूर लेखकफ़िल्म निर्देशक एवं कमीडीयन वरुण ग्रोवर की पहली डिग्री इंजीनियरिंग है। प्रसिद्ध कवयित्रीलेखिका एवं संपादक श्रीमती अनिता सुरभि दक्षिण हरियाणा के एक साधारण से शहर से पढ़ कर निकलीजिस समय ज्यादातर लड़कियाँ स्नातक की पढ़ाई कर शिक्षिका बनने तक को ही अपने जीवन का धेय समझती थीउन्होंने अपने लेखन के जुनून को अपनाया और आज हिंदी संपादक के क्षेत्र में उनका नाम प्रथम पंक्ति में लिया जाता है। अनेकों ऐसे उदाहरणों से यह समझा जा सकता है कि कोई भी प्रतियोगितापरीक्षा एवं डिग्री इंसान की सफलता की गारंटी नहीं है। उसकी सफलता की गारंटी है उसका मनोबलउसका जुनून एवं उसके हृदय की प्रसन्नता।


यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होना चाहिए कि स्कूल में हर कक्षा में यदा-कदा बच्चों को किसी ना किसी विषय के इम्तिहान में फेल भी किया जाना चाहिए। 15 साल की स्कूली शिक्षा में कम से कम 10 से  12 बार हर छात्र को यह अनुभव मिलना चाहिए। जब बच्चे यह समझ जाएंगे कि फेल होना जीवन में एक साधारण सी घटना है और इसको सुधारा भी जा सकता है। तब वे कभी भी आत्महत्या जैसे कुंठित विचार को अपने जीवन का आखिरी विकल्प नहीं बनने देंगे। अमृत काल में भारतवर्ष के हर बालक का मनोबल वज्र के समान कठोर हो जिस से वे नकारात्मक विचार तथा अवसाद (डिप्रेशन) जैसी बीमारियों को अपने पास भटकने ना दें। 

 

-    जगदीप सिंह मोरशिक्षाविद 

 

Tuesday, January 9, 2024

Teacher: A 15-minute refresher

 Teacher: A 15-minute refresher

-       Jagdeep S. More, Educationist 



Teaching has been considered a noble profession since time immemorable. Of late, the incidents of Muzaffarnagar, Kathua and Kota have done enough wrong to malign this noble profession and have stirred the hornets’ nest forcing teachers to revisit the preambles of teaching-learning. 

 

Forcing classmates to beat a child for not learning homework lessons, beating a child for writing a religious slogan on a blackboard and pressurising children to the extent of committing suicide are the greatest sins happening to this pious institution of implanting education. It’s high time teachers should unlearn their age-old definition of being a teacher where they can do anything left, right and centre with a child and relearn the new modern definition of being a teacher where she/he is a facilitator cum counsellor and is responsible for the overall development of a child not merely confined to her/his subject. Teachers should come out of their preconceived notions of being hard taskmasters and governing by the rule of the stick. 

 

Teachers can use this talisman whenever they are in doubt. In the school where I worked last, a Physical Education teacher, (although a very efficient employee) hit a student who was misbehaving and the issue went up to the director of the school. The septuagenarian director called the PHE teacher and asked for an explanation. After hearing his passionate justification, the director asked politely, “Sir, are you a bigger authority than the Supreme Court of India?”. The PHE teacher was speechless and understood his wrongdoing. The magnanimous director preserved an efficient teacher and also gave him a lesson for life. 

 

All the teachers can ask themselves the Yaksha Prashna of the director, “Are they a bigger authority than the Supreme Court of India?” If not, then why do they want to cross the Lakshman Rekha?      

 

Let all of us teachers take fifteen precious minutes from our daily schedule and revisit the guidelines ordained by the Hon’ble Supreme Court of India in eliminating corporal punishments in schools and some important laws concerned with child safety to make ourselves better teachers.


Physical punishment is understood as any action that causes pain, hurt/injury and discomfort to a child, however light. Examples of physical punishment include but are not restricted to the following: 

1.     Causing physical harm to children by hitting, kicking, scratching, pinching, biting, pulling the hair, boxing ears, smacking, slapping, spanking or with any implement (cane, stick, shoe, chalk, dusters, belt, whip, giving electric shock etc.); 

2.     Making children assume an uncomfortable position (standing on a bench, standing against the wall in a chair-like position, standing with a schoolbag on the head, holding ears through legs, kneeling etc.); 

3.     Forced ingestion of anything (for example washing soap, mud, chalk, hot spices etc.); 

4.     Detention in the classroom, library, toilet or any closed space in the school. 


Mental harassment is understood as any non-physical treatment that is detrimental to the academic and psychological well-being of a child. It includes but is not restricted to the following: 

1.     Sarcasm that hurts or lowers the child’s dignity; 

2.     Calling names and scolding using humiliating adjectives, intimidation; 

3.     Using derogatory remarks for the child, including pinning of slogans; 

4.  Ridiculing the child with regard to her background or status or parental occupation or caste; 

5.  Ridiculing the child with regard to her health status or that of the family – especially HIV/AIDS and tuberculosis; 

6.   Belittling a child in the classroom due to his/her inability to meet the teacher’s expectations of academic achievement; 

7.    Punishing or disciplining a child not recognising that most children who perform poorly in academics are actually children with special needs. Such children could have conditions like learning disability, attention deficit hyperactivity disorder, mild developmental delay etc.; 

8.     Using punitive measures to correct a child and even labelling him/her as difficult; such as a child with attention deficit hyperactivity disorder who may not only fare poorly in academics but also pose a problem in the management of classroom behaviours; 

9.     ‘Shaming’ the child to motivate the child to improve his performance; 

10.  Ridiculing a child with developmental problems such as learning difficulty or a speech disorder, such as stammering or speech articulation disorder. 

Discrimination is understood as prejudiced views and behaviour towards any child because of her/his caste/gender, occupation or region and non-payment of fees or for being a student admitted under the 25% reservation to disadvantaged groups or weaker sections of society under the RTE, 2009. It can be latent; manifest; open or subtle. It includes but is not restricted to the following: 

1.   Bringing social attitudes and prejudices of the community into the school by using belittling remarks against a specific social group or gender or ability/disability; 

2.  Assigning different duties and seating in schools based on caste, community or gender prejudices (for example, cleaning of toilets assigned by caste; the task of making tea assigned by gender); admission through 25% reserved seats under the RTE; or non-payment of any prescribed fees; 

3.     Commenting on academic ability based on caste or community prejudices; 

4.     Denying mid-day meals or library books or uniforms or sports facilities to a child or group of children based on caste, community, religion or gender;

5.     Deliberate/wanton neglect.    


THE JUVENILE JUSTICE (CARE AND PROTECTION OF CHILDREN) ACT, 2015

 

Chapter IX of the JJ Act 2015 clearly mentions that no report in any newspaper, magazine, news sheet, audio-visual media or other forms of communication regarding any investigation or judicial procedure, shall disclose the name, address or school’s name or any other particular, which may lead to the identification of a child in conflict with law or a child in need of care and protection or a child victim or witness of a crime, involved in such matter, under any other law for the time being in force, nor shall the picture of any such child be published. 

Any person contravening the above provisions shall be punishable with imprisonment for a term which may extend to six months or a fine which may extend to two lakh rupees or both.


This is a very important provision and every teacher should understand the importance and implication of this section. Any casual act of uploading a picture/video of a child on social media platforms can severely impact the well-being of a child. Teachers should resist being social media activists/influencers in matters of child safety. 

Teachers should understand the sanctity of their position by reading Section 23 of the JJ Act which covers the actions of anyone who has “actual charge or control over” a child. While Section 23 is likely to be applied most often to personnel in childcare institutions regulated by the JJ Act, it arguably applies to cruelty by anyone in a position of authority over a child, which would include parents, guardians, teachers and employers. 


THE PROTECTION OF CHILDREN FROM SEXUAL OFFENCES (POCSO) ACT, 2012


Chapter II: Sexual Offences Against Children:- A person is said to commit "penetrative sexual assault" if: 

(a)   he penetrates his penis, to any extent, into the vagina, mouth, urethra or anus of a child or makes the child to do so with him or any other person; 

(b)  he inserts, to any extent, any object or a part of the body, not being the penis, into the vagina, the urethra or anus of the child or makes the child to do so with him or any other person;

(c)   he manipulates any part of the body of the child so as to cause penetration into the vagina, urethra, anus or any part of body of the child or makes the child to do so with him or any other person;

(d)  he applies his mouth to the penis, vagina, anus, urethra of the child or makes the child to do so to such person or any other person.

Whoever commits penetrative sexual assault shall be punished with imprisonment of either description for a term which shall not be less than seven years but which may extend to imprisonment for life, and shall also be liable to fine.

 

SEXUAL ASSAULT AND PUNISHMENT THEREFORE

Whoever, with sexual intent touches the vagina, penis, anus or breast of the child or makes the child touch the vagina, penis, anus or breast of such person or any other person, or does any other act with sexual intent which involves physical contact without penetration is said to commit sexual assault.

Whoever commits sexual assault, shall be punished with imprisonment of either description for a term which shall not be less than three years but which may extend to five years, and shall also be liable to fine.

 

SEXUAL HARASSMENT AND PUNISHMENT THEREFORE

A person is said to commit sexual harassment upon a child when such person with sexual intent,— 

(i)            utters any word or makes any sound, or makes any gesture or exhibits any object or part of body with the intention that such word or sound shall be heard, or such gesture or object or part of body shall be seen by the child;  

(ii)            makes a child exhibit his body or any part of his body so as it is seen by such person or any other person;

(iii)           shows any object to a child in any form or media for pornographic purposes; 

(iv)           repeatedly or constantly follows or watches or contacts a child either directly or through electronic, digital or any other means;

(v)            threatens to use, in any form of media, a real or fabricated depiction through electronic, film or digital or any other mode, of any part of the body of the child or the involvement of the child in a sexual act; 


Whoever commits sexual harassment upon a child shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three years and shall also be liable to fine.

 

The teachers who are indulged in coaching and mentoring students for competitive examinations should refrain from portraying that there is no life beyond these examinations. Either you make it into the merit list or perish should not be the gospel truth.


Vikas Attry who is a renowned psychologist and counsellor postulates that teachers should involve parents at every point of school life. For parents, they have one/two children but for teachers, they have forty/fifty children in a classroom as their own. A teacher can’t be with a student for 24 hours but she/he has to be vigilant enough to notice a slight change in a child’s behaviour. S/he should bring it immediately to the notice of the school management and parents. It is not the job of a school counsellor exclusively to notice such changes. Every teacher has to be proactive and diligent enough to take the bull by its horns.    

 

Teachers should not emphasise the supremacy of their own religious beliefs and ideology over the students. S/he should try to be neutral and refrain from showing her/his inclinations towards any faith/sect/belief or rituals. Every child has a right to practice the religion of his/her choice. Religious talks inside the classroom should be to promote harmony, brotherhood and the rich culture of the country rather than breeding hatred.

 

Higher secondary teachers and the mentors of coaching classes should also understand the adolescent factors and relationship concerns arising at that age. Teachers should hold back from indulging in grapevine and promoting rumour-mongering within the campus. They should not stigmatise students but rather make them aware of the larger consequences of the same on their education, examination results, future career, family status and society.      

 

Teachers must understand the fact that any wrongdoing on their part can severally malign the brand image of the institution. The management would not like to be a part of media trials, social media mockery, police actions and court cases. Recent cases like the arrest of Symbiosis Pune teacher Ashok Sopan Dhole and the sacking of Unacademy teacher Karan Sangwan prove the point. The management would prefer to show the doors to such teachers (no matter how good they are) rather than indulging in prolonged actions.

परीक्षा भी एक उत्सव : मोदी का मंत्र

 परीक्षा भी एक उत्सव मोदी का मंत्र 


केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी॰बी॰एस॰ई॰) ने कक्षा दसवीं एवं बारहवीं की बोर्ड परीक्षा की तिथियों की घोषणा कर दी है। परीक्षा 15 फरवरी 2024 से आरम्भ हो जाएँगी। भारतवर्ष के लिए 2024 बहुत ही अहम साल हैइसी साल लोकसभा के लिए आम चुनाव भी होने हैं। यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि सी॰बी॰एस॰ई॰ ने अपनी सारी अहम परीक्षाएं मार्च तक पूरी करने का लक्ष्य रखा है। प्रैक्टिकल परीक्षा की तिथि 1 जनवरी से 14 फरवरी 2024 तक निर्धारित की गयी है। कक्षा दसवीं के प्रैक्टिकल आंतरिक शिक्षकों द्वारा ही लिए जाएँगे एवं कक्षा बारहवीं के प्रैक्टिकल बाह्य परीक्षकों द्वारा सम्पन्न किए जाएँगे। 


कक्षा दसवीं

कक्षा बारहवीं

21 फरवरी 

हिंदी

19 फरवरी

हिंदी 

26 फरवरी

अंग्रेजी

22 फरवरी

अंग्रेजी 

2 मार्च 

विज्ञान

27 फरवरी

केमिस्ट्री 

7 मार्च

सामाजिक विज्ञान 

4 मार्च

फिजिक्स

11 मार्च

गणित 

9 मार्च

गणित 

13 मार्च

आई॰टी॰/कम्प्यूटर 

12 मार्च

फिजिकल एजुकेशन 

 

18 मार्च

अर्थशास्त्र 

19 मार्च

बायआलॉजी

22 मार्च

राजनीति विज्ञान  

23 मार्च

अकाउंटन्सी

27 मार्च

बिज़्नेस स्टडीज़

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि छात्रों के लिए बोर्ड परीक्षा की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है। जहां प्रैक्टिकल परीक्षा के लिए मात्र 10 दिन ही बचे हैंवहीं मुख्य परीक्षा के लिए दो महीने का समय शेष रह गया है। ज्यादातर विद्यालयों में प्री-बोर्ड परीक्षाएं 31 दिसम्बर 2023 तक समाप्त हो जाएँगी, तत्पश्चात विद्यार्थियों की सेल्फ प्रिपरेटरी लीव (स्वयं तैयारी करने हेतु अवकाश) प्रारम्भ कर दी जाएँगी। यह समय विद्यार्थियों के लिए करो या मरो वाली स्थिति सा होता है। जहां एक ओर उन पर अभिभावकों एवं शिक्षकों का दबाव होता है वहीं आज कल पीयर प्रेशर भी छात्रों पर अतिरिक्त बोझ डाल देता है। यह बात सत्य है की प्री-बोर्ड रिज़ल्ट छात्रों की साल भर के मेहनत का आइना होता है परंतु ऐसे अनेकों उदाहरण है जहां बच्चों ने इन दो महीनों में अच्छी मेहनत करी और बोर्ड रिजल्ट में एक लम्बी छलांग लगा सबको चौंका दिया।


आखिरी के इन दिनों में विद्यार्थियों को योजनाबद्ध अध्यन्न की ज़रूरत है। सभी छात्र अपना एक टाइम-टेबल अवश्य बनाये एवं पाँचों विषयों को बराबर का समय दें। रोज़ कम से कम छः से आठ घंटे ज़रूर पढ़ें। टाइम-टेबल इस प्रकार बना हो जिसमें आठ घंटे की नींद का भी पूर्ण प्रावधान हो। छात्रों को यह पूर्ण ज्ञात हो कि हर विषय में पाठ अनुसार कितने अंक का सवाल परीक्षा में पूछा जाएगा। ज़्यादा अंक वाले पाठ पहले तैयार किए जाएँ। सबसे पहले हर विषय का अंक अनुसार आधा सिलेबस अच्छे से पूरा करेंउसे याद करेंफिर बाकी का सिलेबस पूरा करेंछात्र सिर्फ मौखिक रूप से पढ़ने पर निर्भर न रहेंउसे लिख कर सुनिश्चित करें कि जो उन्होंने जो पढ़ा है वो अच्छे से तैयार भी हुआ है या नहींइस तरह पढ़ने से बच्चों का विषय के प्रति डर भी दूर होगा एवं उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा


ज्यादातर छात्र इन दिनों कुधारणा का शिकार हो जाते हैंजिससे उनके ऊपर निराशा हावी होने लगती है। सभी छात्र सेल्फ डाउट में आने से बचें एवं अपने मनोबल को उच्चतम स्थान पर रखें। सिर्फ तीन मुख्य विषयों पर ही अपना सारा ध्यान केंद्रित ना करें अपितु पांचों विषयों का ख़्याल रखें। छात्र सबसे अधिक इंग्लिश (भाषाविषय को नजरअंदाज करते हैं, उन्हें लगता है कि इंग्लिश तो आसान है आखिरी समय में देख लेंगे। इसी कारण उनकी परसेंटेज कम रह जाती है। अंग्रेजी विषय एक चौथाई अंक समेटे हुए है एवं 12वीं के बाद के लगभग सभी कोर्सेज इसी भाषा में हैं। 

दसवीं एवं बारहवीं कक्षा के पेपर पैटर्न में सी.बी.एस.ई. ने कुछ बदलाव किये हैं। केस स्टडी के आधार पर प्रश्न सम्मिलित किए गए हैंजिनको पूरा पाठ पढ़े बिना हल करना जटिल होगा। छात्र हर विषय में सी.बी.एस.ई. के ब्लू प्रिंट के अनुरूप ही तैयारी करें| विद्यार्थी सी.बी.एस.ई. द्वारा प्रकाशित सैंपल पेपर ज़रूर हल करें। यह सी.बी.एस.ई. की वेबसाइट पर मुफ्त उपलब्ध हैं। सैंपल पेपर निर्धारित समय में ही पूरा हल करनें की कोशिश करें,  जिससे अपनी खामियों का अंदाजा लगाया जा सकें। सी.बी.एस.ई. की वेबसाइट पर गत वर्षों के प्रश्न पत्र भी मुफ्त उपलब्ध हैंसभी विद्यार्थी कम से कम पिछले दस वर्षों के प्रश्न पत्र ज़रूर हल करें


मनोवैज्ञानिक श्री विकास अत्री कहते हैं कि इस आखिरी समय पर बारीकी से की गई पढ़ाई ही मेरिट सूची में बदलाव लाती है| जहाँ कुछ बच्चे रात भर जाग-जाग कर पढ़ रहे हैं वहीं कुछ छात्र अपने ऊपर परीक्षा का दबाव भी महसूस कर रहे हैंछात्रों के ऊपर दोस्तोंपरिवारविद्यालय एवं समाज का दबाव हमेशा रहता है जिस कारण कई बार वे घबराहट भी महसूस करने लग जाते हैंप्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने हर साल की तरह  इस साल भी बच्चों से अपील करी हैं की वो इन परीक्षाओं को एक उत्सव के रूप में स्वीकार करें| जिस प्रकार हम त्यौहार मानते हैं उसी तरह परीक्षाएँ भी त्यौहार ही हैंतो क्यूँ ना इनकी तैयारी भी धूम धाम से की जायेछात्र परीक्षा के परिणाम की बिल्कुल भी चिंता ना करें बल्कि तैयारी में अपना शत प्रतिशत देंऐसे में मोबाइल फ़ोन एवं सोशल मीडिया का सम्पूर्ण त्याग रामबाण साबित हो सकता है। इन दो महीने सिर्फ़ किताबें ही विद्यार्थियों की सच्ची दोस्त साबित होंगी।

    

इस समय अभिभावक का उत्तरदायित्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है| अभिभावकगण बच्चों के ऊपर नकारात्मक दबाव बनाने से बचेंउनकी तुलना दूसरे बच्चों से बिल्कुल ना करेंमौसमी बदलाव से भी छात्र अपने को बचाएंपरीक्षा के दिनों में बीमार पड़ना परिणाम पर असर दिखा सकता हैं

 

-       जगदीप सिंह मोरशिक्षाविद