Posts

क्या व्यावहारिक हैं इतने बड़े आयोजन?

Image
  इस लेख का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति/वर्ग की धार्मिक मान्यताओं को चुनौती देना कदापि नहीं है, वरन परिस्थितियों को प्रशासनिक एवं व्यावहारिक नजरिए से देखने हेतु है।  महाकुंभ 2025 वर्तमान कालखंड का ध्रुव तारा बना हुआ है। धरती के एक छोटे से भूखंड पर एक समय में इतने मनुष्यों का एक साथ जमावड़ा अपने आप में असाधारण है। इतने बड़े मेले का आयोजन अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। इसकी तैयारियों में असंख्य लोगों का परिश्रम, अगणित घंटों का पुरुषार्थ शामिल है। उत्तर प्रदेश सरकार एवं मेला प्रशासन इसके लिए प्रशंसा के पात्र हैं। परंतु मौनी अमावस्या की रात्रि पर हुई भगदड़ एवं पुण्यात्माओं की क्षति ने इस महान उत्सव की शान में धब्बा लगा दिया। इसके उपरांत विभिन्न विवेचनाओं का जन्म हुआ और छींटा-कशी का दौर भी प्रारम्भ हुआ। जहां एक ओर मृतकों की संख्या को लेकर असमंजस है वहीं यह भी आरोप है कि सरकार ने क्षति का सटीक अवलोकन आमजन के समक्ष नहीं रखा है। इसी प्रक्षेप में यह दक्ष प्रश्न उठता है कि, क्या हमें इतने बड़े आयोजन करने चाहिए? क्या प्रशासनिक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण से ऐसे आयोजन सम्भव हैं? आइए एक नज़र महाकुंभ 2...

बचपन बचाओ क़ानून : ऑस्ट्रेलिया से सीखे भारत

Image
  अपनी संसद में यह कानून पास कर ऑस्ट्रेलिया संसार का पहला देश बना जिसने बच्चों के लिए सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। यह निर्णय सम्पूर्ण जगत के लिए ऐतिहासिक है। ऑस्ट्रेलिया के राजनेताओं की दूर दृष्टिता सराहनीय है जिस ने बच्चों के बचपन को बचाने के लिए ऐसा अहम कदम उठाया। इस प्रतिबंध से ना सिर्फ़ बच्चों का बचपन बचा रहेगा अपितु समाज में होने वाले अपराध भी कम होंगे एवं ऑस्ट्रेलिया अपनी संस्कृति को भी सहेज पाएगा। इस कानून के मुताबिक  16  वर्ष से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया ऐप्लिकेशन पर अपना अकाउंट नहीं बना पाएँगे। इस हिसाब से फ़ेस्बुक, इन्स्टग्रैम, एक्स (भूतपूर्व ट्विटर), टिक-टॉक, स्नैपचैट, रेडइट इत्यादि बच्चों की पहुँच से बाहर हो जाएँगी। विशेष बात यह है कि इस कानून में बच्चों को नहीं बल्कि सोशल मीडिया कंपनियों को कटघरे में खड़ा करने का प्रावधान है। इन सोशल मीडिया कंपनियों को अब यह सुनिश्चित करना पड़ेगा की कोई भी  16  वर्ष से कम उम्र का बालक इन वेब्सायट पर अपना अकाउंट नहीं बना सके। अगर यह कंपनियां सुचारू रूप से ऐसा करने में विफल होती हैं तो इनको  33 ...

सूचना और मीडिया एक्सपोजर का तर्कसंगत विश्लेषण

  सूचना और मीडिया एक्सपोजर का तर्कसंगत विश्लेषण आज के डिजिटल युग में मीडिया का प्रभाव हर पहलू में महसूस होता है। चाहे वह समाचार चैनल  हो  सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हो या फिर इंटरनेट पर वायरल होने वाली खबरें , सभी जगह हम लगातार  सूचनाओं से घिरे होते हैं। इन सूचनाओं के माध्यम से हम न केवल दुनिया की घटनाओं से अवगत  होते हैं , बल्कि ये हमारे सोचने और समझने के तरीके को भी प्रभावित करती हैं। खासकर विद्यार्थियों  के लिए , मीडिया और सूचना का सही और तर्कसंगत विश्लेषण करना अत्यंत आवश्यक है। भारतीय मीडिया का प्रभाव भारतीय मीडिया का दायरा बहुत विस्तृत है। यहाँ विभिन्न भाषाओं में समाचार चैनल , अखबार , रेडियो  और इंटरनेट आधारित प्लेटफॉर्म उपलब्ध हैं। ये सभी माध्यम समाज में हो रही घटनाओं , राजनीतिक  विचारों , सामाजिक मुद्दों , और यहां तक कि व्यक्तिगत जीवन के बारे में सूचनाएँ प्रदान करते हैं।  हालांकि , भारतीय मीडिया का एक बड़ा हिस्सा कभी-कभी पक्षपाती हो सकता है या सूचनाओं में गड़बड़ी  कर सकता है। इसलिए मीडिया का तर्कसंगत विश्लेषण करना और खबरों की सं...

बाल दिवस: बचपन की सार्थकता और उसकी रक्षा

Image
  बाल दिवस विशेषांक बाल दिवस: बचपन की सार्थकता और उसकी रक्षा भारत में 14 नवम्बर को बाल दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती के रूप में मनाया जाता है , जो बच्चों के प्रति अपनी विशेष स्नेहभावना के लिए प्रसिद्ध थे। उनके लिए बच्चों का विकास और उनका उत्थान राष्ट्रीय प्रगति का प्रमुख हिस्सा था। बाल दिवस का उद्देश्य बच्चों के अधिकारों , उनके कल्याण और उनकी खुशहाली के बारे में समाज को जागरूक करना है। हालांकि , आधुनिक समय में बच्चों का बचपन अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। आधुनिकता के प्रभाव के कारण बचपन की हानि हो रही है। आजकल के बच्चों का जीवन बहुत बदल चुका है। जहां एक समय में बच्चों का बचपन खेल-कूद , मित्रों के साथ समय बिताने और प्राकृतिक वातावरण में घुमने-फिरने में गुजरता था , वहीं अब यह तकनीकी दुनिया और सोशल मीडिया के दबाव में फंस गया है। स्मार्टफोन , कंप्यूटर , और अन्य डिजिटल गैजेट्स ने बच्चों की दुनिया को बहुत सीमित कर दिया है। वे अब मानसिक और शारीरिक रूप से पहले से कहीं अधिक दबाव महसूस करते हैं। स्कूलों म...

एन॰ आई॰ आर॰ एफ॰ रैंकिंग में फिसड्डी हरियाणा

Image
 एन॰ आई॰ आर॰ एफ॰ रैंकिंग में फिसड्डी हरियाणा हाल ही में नैशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एन॰आई॰आर॰एफ॰) द्वारा उच्च शैक्षिक संस्थानों की रैंकिंग, इंडिया रैंकिंग 2024 के नाम से प्रकाशित हुई। गौरतलब हो की एन॰आई॰आर॰एफ॰ द्वारा हर साल देश के टॉप 100 संस्थानों की सूची प्रकाशित होती है, इसमें विभिन्न कैटेगरी में देश के टॉप 100 महाविद्यालय (कॉलेज) एवं विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी) शामिल होते हैं जैसे ओवरऑल, इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, मैनज्मेंट, फ़ार्मसी, शोध संस्थान, राज्य यूनिवर्सिटी इत्यादि। इन रैंकिंग में हरियाणा राज्य विगत वर्ष के अनुरूप और भी फिसड्डी साबित हुआ। हरियाणा राज्य के उच्च शैक्षिक संस्थानों जैसे महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों का रैंकिंग सूची में ना होना राज्य के लिए बेहद शर्म की बात है। एन॰आई॰आर॰एफ॰ द्वारा प्रकाशित ओवरऑल कैटेगॉरी के टॉप 100 सूची में हरियाणा राज्य का एक भी संस्थान नहीं है। यह बेहद शर्म की बात है। जहां एक ओर हरियाणा राज्य दिल्ली से तीन तरफ से घिरा हुआ है, वहीं इसका लाभ लेने से राज्य बिल्कुल वंचित है। दिल्ली के अनेकों महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय इस रैंकिंग ...

अंतरराष्ट्रीय पिता दिवस पर विशेष/International Father's Day

Image
  शिव तत्व है पिता आज  16  जून को समस्त विश्व, अंतर्राष्ट्रीय पिता दिवस (इंटर्नैशनल फादर्स डे) मना रहा है। यह दिवस सभी पिताओं का उनके परिवारों के प्रति समर्पण ,  लगन, मेहनत एवं बलिदान को पहचानने एवं सम्मान देने का अवसर है। आज पिता, दादा एवं पिता तुल्य हर व्यक्ति के प्रति आभार प्रकट करने का सुअवसर है।         इंटर्नैशनल फादर्स डे का इतिहास भी कुछ कम रोचक नहीं है, विश्व भर में माताओं की मनुष्य जीवन में अनुदान एवं उनकी कड़ी मेहनत को बहुत पहले ही मान्यता मिल गयी थी, इंटर्नैशनल मदर्स डे बहुत पहले ही संसार में स्वीकार्य हो चुका था। पिताओं के महत्व को दर्शाने का वर्ष  1900  तक ऐसा कोई दिन नहीं था। अमेरिका के वॉशिंटॉन शहर में रहने वाली स्पोकैन सोनोरा ने पहली बार  1910  में अपने पिता विल्यम जैक्सन स्मार्ट जो की एक भूतपूर्व सैनिक थे उनके सम्मान में इंटर्नैशनल मदर्स डे की तर्ज पर इंटर्नैशनल फादर्स डे मनाया। गौरतलब है कि विल्यम जैक्सन स्मार्ट ने अपनी पत्नी के देहांत के बाद अपनी छह संतानो का लालन पालन स्वयं किया। इस दिन ...

एक परीक्षा ऐसी भी हो जिसमें बच्चे फेल हो सकें

Image
  एक परीक्षा ऐसी भी हो जिसमें बच्चे फेल हो सकें  नए साल की अभी शुरुआत ही हुई है कि पहले ही महीने में भारत की कोचिंग कैपिटल कहे जाने वाले कोटा शहर में दो बच्चों ने मानसिक दबाव में आकर आत्महत्या कर ली। हाल ही की इन घटनाओं ने हर भारतवासी के दिल को झकझोर कर रख दिया है। अठारह वर्षीय निहारिका सिंह सोलंकी कोटा में आई॰आई॰टी॰ जे॰ई॰ई॰ परीक्षा की तैयारी कर रही थी। परीक्षा से पहले ही उसने अपने घर के रोशनदान से फांसी लगा आत्महत्या कर ली। निहारिका का हस्तलिखित सुसाइड नोट मिला जिस पर उसने लिखा था , ” मम्मी पापा ,  मैं जे॰ई॰ई॰ नहीं कर सकती ,  इसलिए मैं आत्महत्या कर रही हूँ। मैं हार गई हूँ ,  मैं सबसे ख़राब बेटी हूँ। मुझे माफ़ कर देना मम्मी पापा। यही आखिरी विकल्प है। “  चार पंक्ति के इस छोटे से सुसाइड नोट ने पूरे शिक्षा जगत को रसातल पर लाकर खड़ा कर दिया है। यदि प्रतियोगिता की तैयारी करने वाला एक छात्र यह कहे   कि आत्महत्या ही आखिरी विकल्प है ,  तब यह समझ लेना चाहिए कि शिक्षा का यह सम्पूर्ण तंत्र भीतर से सड़ चुका है ,  और अब इसमें से दुर्गंध उठने लगी है। एक नज...